जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: अब राज्यसभा की कमान किसके हाथों में?
देखिए, भारतीय राजनीति का यह साल भी बड़े उलटफेर लेकर आया है। 10 जुलाई 2024 को जगदीप धनखड़ ने अचानक ही उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति पद से इस्तीफा दे दिया – स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए। अब यहाँ दिलचस्प बात ये है कि ये फैसला इतना अचानक भी नहीं था। पिछले कुछ महीनों से उनकी तबीयत को लेकर खबरें आ रही थीं, हालाँकि इस्तीफे की बात को वो खुद ही खारिज कर चुके थे। सवाल ये है कि अब राज्यसभा की कुर्सी पर कौन बैठेगा? क्योंकि ये सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि पूरे सदन की दिशा तय करने वाली कुंजी है।
पूरा मामला समझिए
धनखड़ जी ने 2022 में यह पद संभाला था, और संविधान के अनुच्छेद 64 के मुताबिक उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति भी होते हैं। यानी एक पत्थर से दो शिकार – पर अब दोनों पदों पर संकट! उन्होंने अपने कार्यकाल में काफी अच्छा काम किया, ये तो सभी मानते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से उनकी सेहत ने साथ नहीं दिया। असल में, ये स्थिति ऐसी ही है जैसे किसी क्रिकेट टीम का कप्तान मैच के बीच में ही रिटायर हो जाए – अब बैटन किसे मिलेगा?
तो अब क्या होगा?
संविधान की धारा 89 कहती है कि अभी राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह यह जिम्मेदारी संभालेंगे। ये तब तक चलेगा जब तक नया उपराष्ट्रपति नहीं चुन लिया जाता। हरिवंश जी कोई नौसिखिया नहीं हैं, वो पहले से ही सदन की कार्यवाही में सक्रिय रहे हैं। लेकिन सच कहूँ तो, ये अस्थायी व्यवस्था है – असली गेम तो अब शुरू होगा नए उपराष्ट्रपति के चुनाव को लेकर!
और हाँ, राष्ट्रपति को अगले 30 दिनों में ये चुनाव कराना होगा। चुनाव आयोग पहले से ही तैयारियों में जुट गया है। पर आप और मैं जानते हैं कि यहाँ सिर्फ संविधान नहीं, राजनीति भी चलेगी। सरकार और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने दावेदारों को आगे करेंगे – ये तो तय है!
राजनीतिक हलचल तेज
इस्तीफे पर प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने धनखड़ जी के योगदान की तारीफ की है, वहीं कांग्रेस के जयराम रमेश ने पारदर्शिता की माँग की है। मजे की बात ये है कि कुछ सदस्यों ने नए सभापति की नियुक्ति में हो रही देरी पर सवाल भी उठाए हैं। ये सब वही पुराना खेल है – हर पार्टी अपना रोटा सेकने में लगी है!
अब आगे क्या?
असली एक्शन तो अब शुरू होगा। नए उपराष्ट्रपति का चुनाव न सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया है, बल्कि ये राजनीतिक चालबाजियों का भी मैदान बनेगा। जब तक नया चुनाव नहीं होता, हरिवंश जी ही सदन संभालेंगे। पर याद रखिए, ये समय सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण है – कोई भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देगा!
धनखड़ जी का ये इस्तीफा निश्चित तौर पर दिल्ली की राजनीति में नए समीकरण लाएगा। अब बस देखना ये है कि आने वाले दिनों में ये खेल किस तरह खेला जाता है। क्योंकि जैसा कि हम जानते हैं – दिल्ली की सियासत में कुछ भी अंतिम नहीं होता, जब तक कि वो पूरी तरह खत्म न हो जाए!
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com