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“SAARC की जगह नया गुट बनाने की कोशिश में भी चीन-पाक-बांग्लादेश क्यों फेल हो जाएंगे? जानें पूरी सच्चाई”

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SAARC की जगह नया गुट बनाने की कोशिश: चीन-पाक-बांग्लादेश का खेल क्यों फेल होगा?

देखिए न, दक्षिण एशिया की राजनीति में हमेशा से ही ड्रामा चलता रहता है। पर अब तो चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश वाला नया सीरियल शुरू हो गया है! हाल में इन तीनों के बीच जो गुप्त बैठकें हुईं, उन्होंने सबको हैरान कर दिया। असल में, ये सब SAARC को कमज़ोर करने और भारत को अलग-थलग करने की चीन की चाल है। लेकिन सवाल यह है – क्या ये तिकड़ी सच में कामयाब हो पाएगी? मेरी राय में, बिल्कुल नहीं।

SAARC का हाल और चीन की ‘बड़े भैया’ वाली भूख

SAARC तो पिछले 10 साल से लगभग मर चुका है। भारत-पाकिस्तान की लड़ाई ने इसे बेकार बना दिया। 2016 के बाद तो कोई समिट भी नहीं हुआ। और अब चीन, जो कि SAARC का मेंबर भी नहीं है, इस खाली जगह को भरने की फिराक में है। मजे की बात है न?

चीन की स्ट्रैटजी दो तरफ से चल रही है – एक तरफ तो CPEC के ज़रिए पाकिस्तान को अपनी जेब में डाल चुका है, वहीं बांग्लादेश को भी फंसाने की कोशिश कर रहा है। पर बांग्लादेश की हिचकिचाहट इस पूरे प्लान में सबसे बड़ी रुकावट है। ढाका भारत के साथ अपने रिश्तों को लेकर इतना बेवकूफ नहीं है।

गुप्त मीटिंग्स और ‘भारत को बाहर रखो’ पॉलिसी

मीडिया रिपोर्ट्स कह रही हैं कि चीन ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ कई चुपके-चुपके मीटिंग्स की हैं। मकसद? SAARC का विकल्प बनाना। पर सबसे मज़ेदार बात ये कि इन मीटिंग्स में भारत को जानबूझकर इनवाइट ही नहीं किया गया। ये तो वही बात हुई कि पड़ोसी मिलकर पार्टी प्लान करें और आपको न बताएं!

बांग्लादेश की पोजीशन सबसे दिलचस्प है। वो अभी तक पूरी तरह हाँ नहीं कह पाया है, क्योंकि उसे पता है कि भारत के साथ उसके आर्थिक और सुरक्षा के रिश्ते कितने अहम हैं। नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों ने भी अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। तो चीन का ये गेम पहले ही फ्लॉप होता दिख रहा है।

भारत की रणनीति और एक्सपर्ट्स की राय

भारत ने इसे “क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा” बताया है। मतलब साफ है – हमें पता है तुम क्या कर रहे हो! विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने (जो नाम नहीं बताना चाहते) कहा कि ये सब SAARC जैसे संगठनों को कमज़ोर करने की साजिश है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि ये चीन की “String of Pearls” स्ट्रैटजी का हिस्सा है – भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश।

दिल्ली के एक थिंक टैंक वाले ने मुझे बताया, “चीन समझता है कि SAARC के ज़रिए भारत पर दबाव नहीं बनाया जा सकता। इसलिए वो नया प्लेटफॉर्म बनाना चाहता है। पर बिना बांग्लादेश और अन्य देशों के सपोर्ट के ये प्लान पानी में ही डूब जाएगा।” सच कहा न?

आगे क्या? और भारत के पास क्या विकल्प हैं?

मान लीजिए ये गुट बन भी गया (जो कि मुश्किल ही है), तो भी इसके सामने कई दिक्कतें होंगी। SAARC पहले ही फेल हो चुका है, और एक नया डिवाइडेड ग्रुप स्थिति को और खराब करेगा। मेरे ख्याल से भारत को BIMSTEC जैसे प्लेटफॉर्म्स पर फोकस करना चाहिए – जहाँ पाकिस्तान है ही नहीं!

चीन के लिए सबसे बड़ी प्रॉब्लम ये होगी कि पाकिस्तान के अलावा उसे और किसी का सपोर्ट नहीं मिल पाएगा। ज्यादातर देश भारत के साथ अपने रिश्तों को तरजीह देंगे। सीधे शब्दों में कहूँ तो – चीन की ये चाल उल्टी पड़ने वाली है।

असल में, दक्षिण एशिया में शांति और तरक्की के लिए सबको साथ लेकर चलना ही एकमात्र रास्ता है। कोई भी ग्रुप जो क्षेत्र के सबसे बड़े देश (यानी भारत) को बाहर रखकर बनेगा, वो लंबे समय तक टिक ही नहीं पाएगा। और यही वजह है कि चीन-पाक-बांग्लादेश का ये नाटक शुरू होने से पहले ही फ्लॉप हो चुका है।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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