फ्लाइट टिकटों के दाम आसमान छू रहे हैं – क्या PAC की सख्ती से एयरलाइंस की मनमर्जी पर लगाम लगेगी?
अरे भाई, अब तो हालात ये हो गए हैं कि घरेलू फ्लाइट का टिकट बुक करते वक्त दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं! सार्वजनिक लेखा समिति (PAC) ने भी इस बारे में गंभीर सवाल उठाए हैं। सच कहूं तो, एयरलाइंस का ये टिकट प्राइसिंग का खेल अब बिल्कुल हाथ से निकलता दिख रहा है। PAC ने सरकार से साफ कहा है – “भईया, अब बस करो ये मनमानी!” और नागरिक उड्डयन मंत्रालय से जवाब-तलबी भी हो चुकी है। असल में, ये सिर्फ एक पॉलिसी मामला नहीं रहा – अब तो ये middle class के जेब पर सीधा हमला बन चुका है।
क्यों हो रहा है ये सब? टिकटों के दाम आसमान पर कैसे पहुंचे?
देखिए ना, कोविड के बाद से तो हालात और भी खराब हो गए। एयरलाइंस वाले fuel prices और operational costs का रोना रोते हैं – जो सच भी है। लेकिन सच ये भी है कि अक्सर weekend पर या last minute में टिकट की कीमतें देखकर लगता है जैसे कोई highway robbery चल रही हो! और तो और, जिन रूट्स पर competition कम है, वहां तो एयरलाइंस वाले मानो खुलेआम लूट मचा रहे हैं। एक तरफ तो हम ‘उड़ान’ स्कीम की बात करते हैं, दूसरी तरफ टिकट के दाम देखकर लगता है कि पैरों पर चलना ही बेहतर!
PAC ने क्या कहा? क्या कोई राहत मिलेगी?
अब PAC ने जो रिपोर्ट पेश की है, उसमें साफ-साफ कहा गया है – “ये नहीं चलेगा!” समिति ने ‘fair price band’ का सुझाव दिया है। मतलब साफ है – एक तय सीमा से ऊपर एयरलाइंस दाम नहीं बढ़ा सकेंगी। हालांकि, सरकार अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है। पर एक बात तय है – अब pressure बढ़ रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि अब कुछ तो होना चाहिए?
किसका क्या स्टैंड? एयरलाइंस vs यात्री
इस पूरे मामले में दोनों पक्षों के तर्क सुनिए:
– यात्री संघ: “साहब, ये तो दिनदहाड़े लूट है!”
– एयरलाइंस वाले: “अरे भई, market economy है ना? Demand-supply का खेल है!”
दिलचस्प बात ये है कि कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर सरकार ज्यादा दखल देगी तो छोटी एयरलाइंस तो बंद ही हो जाएंगी। पर सवाल ये है कि क्या यात्रियों को लूटना इसका समाधान है?
अब आगे क्या? क्या होगा अगला मूव?
अब सबकी नजरें सरकार पर हैं। क्या वो PAC की सिफारिशें मानेगी? क्या टिकट प्राइस पर cap लगेगा? अगर ऐसा हुआ तो:
– क्या यात्रियों को सस्ती फ्लाइट्स मिल पाएंगी?
– या फिर एयरलाइंस service quality को कम कर देंगी?
एक बात तो तय है – ये मामला अब सिर्फ economics का नहीं रहा। जब एक middle class परिवार का सालाना ट्रिप इसलिए कैंसिल हो जाए क्योंकि टिकट के दाम बहुत ज्यादा हैं, तो ये सामाजिक मुद्दा बन जाता है। क्या सरकार इस बार सही कदम उठाएगी? वक्त ही बताएगा।
फिलहाल तो हमें यही करना है – टिकट बुक करते वक्त दिल को मजबूत रखना और एयरलाइंस वालों के ‘डायनामिक प्राइसिंग’ के नाम पर चल रहे इस खेल को सहना… या फिर ट्रेन का विकल्प चुनना!
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Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com