गांधारी: महाभारत की वो औरत जिसने दुख को गले लगा लिया
असल में, महाभारत पढ़ते वक्त एक सवाल मन में आता है – किसका दर्द सबसे ज्यादा था? मेरी नजर में तो गांधारी का नाम सबसे ऊपर आता है। सोचिए, एक औरत जिसने पति के अंधेपन को अपनी आँखों पर पट्टी बाँधकर स्वीकार किया, फिर सौ बेटों को एक-एक कर खोया… ये कोई साधारण बात नहीं है। Tragedy तो बहुत देखी, पर गांधारी की कहानी तो दिल को झकझोर देती है।
शादी से पहले की गांधारी: राजकुमारी से अंधे राजा की पत्नी तक
देखा जाए तो गांधारी की जिंदगी में पहला मोड़ तब आया जब उनकी शादी धृतराष्ट्र से तय हुई। सुनकर हैरानी होती है न? एक सामान्य लड़की होती तो शायद रोना धोना मचाती, लेकिन गांधारी ने तो वो फैसला लिया जिसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है – आँखों पर पट्टी बाँध ली! ये कोई छोटा decision नहीं था भाई। आज के जमाने में तो लोग पार्टनर के छोटे-छोटे faults पर रिश्ता तोड़ देते हैं।
माँ बनने का सफर: खुशियाँ और फिर दुख की शुरुआत
कहानी का सबसे हैरान करने वाला हिस्सा तो यह है कि गांधारी को दो साल तक गर्भ धारण करना पड़ा! और फिर… एक मांस के पिंड से 100 बेटे और एक बेटी? सुनने में अजीब लगता है, पर महाभारत है ही ऐसी। पर मजा तो तब खराब हुआ जब दुर्योधन जैसा बेटा पैदा हुआ। माँ का दिल तो टूटा होगा न? अपने बेटे को गलत रास्ते पर जाते देखकर भी कुछ न कर पाने का दर्द… शायद हम सोच भी नहीं सकते।
युद्ध के दिन: जब एक-एक कर बेटे मरते गए
सबसे दर्दनाक हिस्सा तो युद्ध का था। गांधारी ने तो मना किया था दुर्योधन को, पर कौन सुनता है माँ की बात? और फिर… अठारह दिनों तक एक-एक कर अपने बेटों की मौत की खबर सुनना। दुःशासन की हत्या, द्रौपदी का बदला… हर घटना ने उनके दिल पर चोट की। सच कहूँ तो, इससे ज्यादा दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आखिरी दिन: वन में जलकर खत्म हुई दुख भरी कहानी
युद्ध के बाद की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। पांडवों के साथ रहना, फिर वनवास… और अंत में जंगल की आग में जलकर मरना। एक तरह से देखें तो ये मौत ही शायद उनके लिए आराम थी। इतना सब कुछ झेलने के बाद।
आज के जमाने में गांधारी से क्या सीखें?
सच बात तो ये है कि आज के समय में गांधारी जैसा बर्ताव शायद ही कोई कर पाए। Rights की बात करने वाले इस जमाने में, उनकी sacrifice और patience की मिसाल देना मुश्किल है। पर एक बात तो सच है – जिंदगी में दुख आते हैं, पर उनका सामना करने का हौसला गांधारी से सीखा जा सकता है। थोड़ा सा ही सही।
अंत में बस इतना कहूँगा – गांधारी की कहानी सिर्फ एक पौराणिक चरित्र नहीं, बल्कि दुख को जीते जी जी लेने की मिसाल है। और हाँ, थोड़ा रुकिए… क्या आपको नहीं लगता कि आज के समय में ऐसी sacrifice की उम्मीद करना भी गलत है? पर ये बहस फिर कभी।
गांधारी की कहानी सुनते हुए कभी आपका दिल भारी हो गया? मेरा तो हो जाता है। सोचिए, एक माँ जिसने अपने सौ बेटों को खोया, एक पत्नी जिसने पूरी ज़िंदगी अंधे पति की सेवा की… ये कोई साधारण दुख नहीं है। और फिर भी, उनकी कहानी सिर्फ़ दुख की दास्तान नहीं है।
असल में, गांधारी हमें जीवन का वो कड़वा सच दिखाती हैं जिससे हम अक्सर आँखें चुराना चाहते हैं – कि कर्म ही सब कुछ नहीं होता। कभी-कभी भाग्य के आगे सबसे बड़े वीर भी बेबस हो जाते हैं। पर यहाँ सवाल यह है कि क्या हम इसका मतलब नियति के सामने घुटने टेकने से निकालें?
महाभारत का ये पात्र आज भी इतना प्रासंगिक क्यों है? शायद इसलिए कि गांधारी का दर्द किसी ज़माने की बात नहीं। आज भी हर माँ, हर पत्नी के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब वो खुद से पूछती है – “मैंने ऐसा क्या किया?”
और सच कहूँ तो, यही तो है जीवन की नश्वरता की सबसे बड़ी सीख। हम चाहे कितने भी planning कर लें, कर्मों का फल तो भगवान के हाथ में है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम प्रयास करना छोड़ दें। गांधारी ने भी तो नहीं छोड़ा था न?
एक तरफ जहाँ उनकी कथा हमें मानवीय पीड़ा की गहराई दिखाती है, वहीं ये सवाल भी छोड़ जाती है – क्या हम अपने दुखों को अपनी पहचान बनने देते हैं, या फिर उनसे ऊपर उठकर जीवन को एक नया अर्थ देते हैं?
सोचने वाली बात है…
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com