मणिपुर के उग्रवादी AK-47 क्यों छोड़ रहे? क्या कोई नया और खतरनाक हथियार मिल गया?
अरे भाई, मणिपुर में एक अजीबोगरीब ट्रेंड चल रहा है जिसने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। सोचो, जिस AK-47 को ये उग्रवादी अपना ‘गोद लिया हुआ बेटा’ समझते थे, अब उसे ही छोड़ रहे हैं! है ना कमाल की बात? लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो इन्हें अपने पुराने भरोसेमंद हथियार से मोहभंग हो गया?
मामले की पृष्ठभूमि: एक पुरानी कहानी, नए ट्विस्ट के साथ
देखिए, मणिपुर में उग्रवाद की कहानी कोई नई नहीं है। बरसों से चला आ रहा यह संघर्ष अब नए रंग-ढंग में सामने आ रहा है। AK-47 तो हमेशा से इनका ‘गो-टू वेपन’ रहा – सस्ता, भरोसेमंद, और हर मौसम में चलने वाला। पर अब? अब तो चीन और म्यांमार से आने वाले हथियारों ने गेम ही बदल दिया है। ऐसा लगता है जैसे कोई पुराने Nokia 1100 को छोड़कर नया smartphone ले रहा हो!
नए हथियार: टेक्नोलॉजी का डार्क साइड
अब ये लोग क्या इस्तेमाल कर रहे हैं? ड्रोन, ग्रेनेड लॉन्चर, हाई-टेक राइफल्स… यानी पूरा एक ‘किलिंग मशीन’ का सेटअप! सच कहूं तो AK-47 अब इनके लिए वही हालत में है जैसे हमारे लिए टाइपराइटर। और सबसे डरावनी बात? इन हथियारों की सप्लाई चेन अब पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गई है। म्यांमार बॉर्डर पर तो जैसे ‘हथियारों का मेला’ लगा हुआ है!
प्रतिक्रियाएं: चिंता का विषय या पॉलिटिकल ड्रामा?
सरकार ने तो ‘हम देख रहे हैं’ वाला रुख अपना लिया है। अतिरिक्त फोर्सेस भेजी जा रही हैं, बॉर्डर पर निगरानी बढ़ाई जा रही है। पर सच पूछो तो, क्या ये काफी होगा? मणिपुर के कुछ नेताओं की चिंता समझ आती है – नए हथियार, नई मुसीबतें। और हमारे ‘मानवाधिकार वाले भाई’ तो मानो बैठे हैं ‘हमने तो कहा था’ वाली मुद्रा में!
आगे क्या? एक जटिल पहेली
सरकार की योजनाएं तो बड़ी-बड़ी हैं – सप्लाई चेन तोड़ना, अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना। पर असली सवाल तो यह है कि जब ये उग्रवादी और ज्यादा हिंसक हो जाएंगे, तो शांति वार्ता का क्या होगा? ये ऐसा ही है जैसे आप किसी को शांत करने जाएं और वो और जोर से चिल्लाने लगे!
आखिर में, यह पूरा मामला एक बात तो साफ कर देता है – उग्रवाद से लड़ना कोई क्रिकेट मैच नहीं जहां नियम तय हों। यह तो एक ऐसा गेम है जहां नियम हर पल बदलते रहते हैं। और हमें? हमें तो हर बार नई स्ट्रैटेजी के साथ खेलना पड़ता है। थोड़ा डरावना है, है ना?
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1. मणिपुर के उग्रवादी AK-47 क्यों छोड़ रहे हैं? क्या यह अच्छी खबर है?
देखिए, यहाँ बात समझनी ज़रूरी है। उग्रवादी AK-47 छोड़ तो रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे शांत हो रहे हैं। असल में? उन्हें इससे भी ज़्यादा खतरनाक हथियार मिल गए हैं। सोचिए – अगर कोई पुराना मोबाइल छोड़कर नया स्मार्टफोन ले ले, तो क्या वह कम खतरनाक हो जाता है? बिल्कुल नहीं!
2. क्या उग्रवादियों के हाथ में अब कोई नया ‘खिलौना’ आ गया है?
हालांकि official reports कुछ और कहती हैं, पर ground sources की मानें तो हां! अब उनके पास M4 carbines जैसे modern weapons हैं जो AK-47 से कहीं ज़्यादा precise हैं। और सबसे डरावना? Drones! जी हाँ, अब तो वे हवा से भी हमला कर सकते हैं। ईमानदारी से कहूं तो, यह टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल है।
3. ये नए हथियार आते कहाँ से हैं? कोई ‘अंडरग्राउंड शॉपिंग’ चल रही है?
अरे भाई, यह कोई local market तो है नहीं! Illegal arms smuggling का पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। Myanmar border तो जैसे एक ‘मिनी अमेज़न’ बन गया है हथियारों का। और dark web? उसकी तो बात ही अलग है – वहाँ तो कुछ भी मिल जाता है, बस credit card चाहिए! China से आने वाले कुछ consignments पर भी सवाल उठ रहे हैं।
4. क्या मणिपुर अब और ज़्यादा खतरनाक जगह बन गया है?
सच कहूँ? हालात वाकई डरावने हैं। पहले जहाँ security forces को सिर्फ ground attacks का डर था, अब तो drones और advanced grenades का खतरा भी है। एक तरफ तो technology हमारी मदद कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ यही उग्रवादियों के हाथ में भी जा रही है। सरकार को अब नए rules के साथ-साथ, smarter strategies की भी ज़रूरत है। वरना… आप समझ ही गए होंगे।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com