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“भारत में MBBS की फीस इतनी महंगी क्यों? 50,000 करोड़पति ने पूछा- वियतनाम में ₹4 लाख, यहाँ ₹1 करोड़!”

भारत में MBBS की फीस इतनी महंगी क्यों? 50,000 करोड़पति ने पूछा- वियतनाम में ₹4 लाख, यहाँ ₹1 करोड़!

अरे भाई, सच में हैरान कर देने वाली बात है ये! हाल ही में एक बड़े उद्योगपति ने सोशल मीडिया पर एक सवाल उछाला जिसने सबका ध्यान खींच लिया। सोचिए, वियतनाम जैसे देश में पूरी MBBS की पढ़ाई सिर्फ ₹4 लाख में हो जाती है, और हमारे यहाँ के निजी कॉलेज ₹1 करोड़ तक की फीस वसूल रहे हैं। ये कोई मजाक थोड़े ही है! असल में तो ये आँकड़ा देखकर मेरे जैसे आम आदमी का तो सिर चकरा जाता है। और सच कहूँ तो ये सिर्फ एक उद्योगपति का सवाल नहीं, बल्कि हर उस मध्यमवर्गीय परिवार की चीख है जिसका बच्चा डॉक्टर बनने का सपना देखता है।

मामले की पृष्ठभूमि: एक चिंताजनक असमानता

देखिए, समस्या की जड़ तो यहाँ है कि हमारा मेडिकल एजुकेशन सिस्टम दिन-ब-दिन और असमान होता जा रहा है। सरकारी कॉलेज? उनकी सीटें तो गिनती की हैं, और NEET की competition देखिए – जैसे कोई युद्ध जीतना हो! और निजी कॉलेजों का खेल? अरे, वो तो पूछिए मत। NMC के मुताबिक 80% से ज्यादा MBBS सीटें इन्हीं के पास हैं, जहाँ फीस का सिलसिला ₹10 लाख से शुरू होकर… हैंग ऑन… ₹1 करोड़ तक पहुँच जाता है! सच कहूँ तो अब समझ आता है कि क्यों इतने सारे students रूस, फिलीपींस या वियतनाम की तरफ भाग रहे हैं। क्या करें, जेब तो हर किसी की इतनी गहरी नहीं होती न!

प्रमुख घटनाक्रम: सरकार की प्रतिक्रिया और प्रस्ताव

तो अब सवाल यह उठता है कि सरकार इस बारे में क्या कर रही है? वैसे तो स्वास्थ्य मंत्रालय ने फीस कैप पर चर्चा शुरू की है, लेकिन ये चर्चाएँ कब तक चलेंगी, कोई नहीं जानता। कुछ राज्यों ने तो education loan के दायरे को बढ़ाने की बात कही है, पर सच पूछो तो ये तो वैसा ही है जैसे घाव पर बैंडेड लगा देना। असली इलाज तो तब होगा जब फीस पर सख्त कंट्रोल आएगा। लेकिन कब आएगा? ये तो भगवान ही जाने!

विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रियाएँ

इस पूरे मामले में सबकी अपनी-अपनी बातें हैं। छात्रों का कहना साफ है – “ये निजी कॉलेज तो MBBS को business बना बैठे हैं।” और अभिभावक? उनकी तो बेचारगी देखिए – “सारी जिंदगी की कमाई सिर्फ एक साल की फीस में उड़ जाती है।” वहीं दूसरी तरफ, निजी कॉलेजों का तर्क है कि उनका infrastructure, faculty और equipment मेन्टेन करने का खर्चा बहुत ज्यादा है। पर सवाल ये है कि क्या ये सारे खर्चे students की जेब पर डालना जायज़ है? मेरे हिसाब से तो बिल्कुल नहीं!

भविष्य की संभावनाएँ: क्या बदलाव आएगा?

अब आगे क्या? सच तो ये है कि अगर जल्दी कुछ नहीं किया गया, तो हालात और बिगड़ने वाले हैं। सरकार को चाहिए कि वो फीस पर कड़े नियम लाए, ज्यादा सरकारी सीटें बनाए, और scholarship को बढ़ावा दे। वरना देखते-देखते हमारे सारे होनहार students विदेशों की तरफ पलायन कर जाएँगे। और फिर? हमारा medical sector लंबे समय तक इसका खामियाजा भुगतेगा। सोचिए, क्या हम ये चाहते हैं?

आखिर में बस इतना कहूँगा – ये सिर्फ फीस का मसला नहीं, बल्कि हमारे देश के भविष्य का सवाल है। अगर आज हमने अपने युवाओं को quality education से वंचित रखा, तो कल को हमारा पूरा स्वास्थ्य तंत्र ही डगमगा जाएगा। समय आ गया है कि सरकार और शिक्षा संस्थान मिलकर कोई ठोस कदम उठाएँ। वरना… खैर, बाकी आप समझदार हैं!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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