चुनाव से पहले नीतीश सरकार को ‘बिहार के दूसरे प्रेमचंद’ क्यों याद आए? जानिए असली वजह!
अरे भई, 28 जुलाई को कटिहार में एक दिलचस्प मंजर होने वाला है। नीतीश कुमार जी समेली प्रखंड में पहुंच रहे हैं – और किसके लिए? अनूप लाल मंडल की प्रतिमा का अनावरण करने! अब आप सोच रहे होंगे, ये अनूप लाल मंडल कौन थे? तो सुनिए, इन्हें ‘बिहार का दूसरा प्रेमचंद’ कहा जाता था। और हां, 2025 के चुनाव से ठीक पहले यह कदम… सिर्फ संयोग है क्या? चलिए, गहराई से समझते हैं।
अनूप लाल मंडल: जिनकी कलम में थी गाँव की आवाज
ईमानदारी से कहूं तो, अनूप लाल मंडल वो rare साहित्यकार थे जो गाँव की मिट्टी की खुशबू अपनी कहानियों में लाते थे। प्रेमचंद की तरह ही उन्होंने गरीबों के दर्द को शब्द दिए। एक तरफ तो उनकी रचनाएँ साहित्य की दुनिया में मील का पत्थर हैं, वहीं दूसरी तरफ ये बिहार के सामाजिक ताने-बाने को समझने की चाबी भी हैं। सच कहूँ तो, आज के दौर में ऐसे लेखकों को याद करना और भी ज़रूरी हो जाता है।
अब राजनीति की नज़र से देखें तो… कटिहार, जहाँ मंडल जी का जन्म हुआ, वो तो पिछड़े वर्गों का stronghold रहा है। तो क्या ये सिर्फ एक साहित्यिक सम्मान है या फिर… आप समझ गए न? चुनावी चालें तो हर पार्टी चलती है, लेकिन कम से कम इस बहाने तो एक महान लेखक को याद किया जा रहा है।
28 जुलाई वाला दिन: क्या-क्या होगा?
तो 28 तारीख को कटिहार में क्या होने वाला है? नीतीश जी प्रतिमा का अनावरण करेंगे, ये तो ठीक है। लेकिन असल मज़ा तो तब होगा जब स्थानीय नेता, साहित्यकार और बुद्धिजीवी एक साथ जमा होंगे। एनडीए वाले इसे ‘सांस्कृतिक विरासत’ का सम्मान बता रहे हैं। सच्चाई? आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं।
लोग क्या कह रहे हैं? मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ
भाजपा वाले तो तालियाँ बजा रहे हैं – “बहुत सुंदर पहल!” वहीं राजद जैसे दलों का कहना है, “चुनावी स्टंट है ये।” और स्थानीय लोग? उनकी बात सबसे सीधी है – “मंडल जी को सम्मान देना अच्छी बात है, पर सड़क-बिजली का क्या?” साहित्यकारों में भी मतभेद हैं – कुछ खुश हैं, तो कुछ कह रहे हैं कि सिर्फ मूर्ति से काम नहीं चलेगा, और योजनाएँ चाहिए।
आगे क्या? राजनीति या संस्कृति?
एक्सपर्ट्स की राय? ये पिछड़े वर्गों को खुश करने की चाल हो सकती है। पर देखिए न, अगर ऐसे और कार्यक्रम हों तो बिहार की संस्कृति को फायदा तो होगा ही। फिलहाल तो सवाल यही है – ये सच्ची सांस्कृतिक पहल है या फिर वोट बैंक की चाल? वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है – अनूप लाल मंडल जैसे लेखकों को याद करना कभी बुरा नहीं होता।
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चुनाव और ‘बिहार के दूसरे प्रेमचंद’ – सारे जवाब, बिना लाग-लपेट के!
1. नीतीश सरकार को चुनाव से पहले ‘बिहार के दूसरे प्रेमचंद’ की याद क्यों सताने लगी?
देखिए, यह कोई नई बात तो नहीं। चुनाव आते ही हर पार्टी को अपनी ‘संस्कृति’ याद आने लगती है। असल में, यह एक चाल है – educated voters को खुश करने की। जैसे हमारे दोस्त अमित हमेशा कहता है, “जब कुछ समझ न आए तो literature की बात करो!” लेकिन सच पूछो तो, क्या वोटर इतना भोला है? शायद नहीं।
2. कौन हैं ये ‘बिहार के दूसरे प्रेमचंद’? और क्यों?
अरे भई, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ जी की बात हो रही है! उन्हें यह title इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने गाँव की कहानियाँ ऐसे लिखीं, जैसे किसी ने बिहार के गाँवों की एक live streaming कर दी हो। प्रेमचंद की तरह ही, बस थोड़ा सा बिहारी फ्लेवर के साथ। सच कहूँ तो, उनकी ‘मैला आँचल’ पढ़ते वक्त लगता है मानो आप बिहार के किसी गाँव में घूम रहे हों।
3. क्या यह मुद्दा चुनाव में कुछ बदल देगा? सच-सच बताइए!
ईमानदारी से? शायद नहीं। सुनने में अच्छा लगता है, पर जब तक रोटी-रोजगार का सवाल है, तब तक लोग साहित्य से ज्यादा अपने बच्चों के school fees की परवाह करेंगे। हालाँकि, पटना के कुछ coffee shop में बैठे intellectuals को यह बात जरूर impress करेगी। पर उनका वोट कितना मायने रखता है? वही जाने!
4. नीतीश जी ने यह चाल क्यों चली? असली मकसद क्या है?
एक तरफ तो यह बिहार की culture को highlight करने की कोशिश है। पर दूसरी तरफ… थोड़ा सा image makeover भी है न? सिर्फ roads और bridges बनाने वाली सरकार नहीं, बल्कि ‘संस्कृति प्रेमी’ सरकार। Smart move है, पर कामयाब होगा या नहीं? वो तो EVM ही बताएगा। एक बात तो तय है – कम से कम TV debates में तो इस पर खूब बहस होगी!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com