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दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट किसने बनाई और कहाँ लगी? जानें रोचक इतिहास!

दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट: क्या आप जानते हैं ये मजेदार कहानी?

अरे भाई, आज तो हर चौराहे पर ट्रैफिक लाइट्स दिख जाएंगी – लाल, पीली, हरी… पर सोचो तो, ये सब शुरू कैसे हुआ? किसी ने पहली बार ये आइडिया कैसे निकाला होगा? और वो भी 100 साल पहले! असल में, ये कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितना कि कोई बॉलीवुड मूवी का प्लॉट। चलिए, आज थोड़ा टाइम मशीन में घूम आते हैं।

1912 का वो ऐतिहासिक दिन: जब एक पुलिसवाले ने बदल दी गेम

तो बात है 1912 की। अमेरिका के क्लीवलैंड शहर में एक पुलिस ऑफिसर लेस्टर वायर को लगा कि “यार, ये हाथ से ट्रैफिक संभालना तो बहुत जंगली बात है!” और फिर क्या? उन्होंने दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट बना डाली। सोचो तो – आज के स्मार्ट सिग्नल्स के मुकाबले वो कितना बेसिक रहा होगा! लोहे का बना हुआ, मोटा-मोटा डिज़ाइन… पर उस जमाने के लिए तो ये भी कम नहीं था। एक तरह से देखें तो ये वही टेक्नोलॉजी थी जो आज हमें सड़क पर जाम लगने से बचाती है। कमाल की बात है न?

दो रंगों वाला जादू: लाल और हरा

अब ये तो आप जानते ही होंगे कि आजकल ट्रैफिक लाइट्स में तीन रंग होते हैं। लेकिन उस पहले वर्जन में? बस दो ही रंग! लाल मतलब रुको, हरा मतलब चलो – बिल्कुल सीधा-सादा। पीले रंग का तो कोई कांसेप्ट ही नहीं था! और हां, उसमें incandescent बल्ब लगे थे जो उस वक्त की सबसे हॉट टेक्नोलॉजी थी। पर एक मजेदार बात – दिन में तो ये अच्छे से दिखते थे, मगर रात को थोड़े धुंधले। फिर भी, उस जमाने के लिए तो ये भी किसी चमत्कार से कम नहीं था!

हाथ से चलाना पड़ता था: कोई ऑटोमेटिक नहीं!

सुनकर हैरान हो जाओगे – वो पहली ट्रैफिक लाइट पूरी तरह मैन्युअल थी! मतलब एक पुलिसवाले को हाथ से बटन दबाकर रंग बदलने पड़ते थे। आज की तरह कोई टाइमर या सेंसर नहीं। और तो और, सिग्नल बदलने में भी 2-3 सेकंड का टाइम लगता था। सोचो तो, आज तो हमें 1 सेकंड की देरी पर भी हॉर्न बजाने की आदत पड़ गई है! हालांकि, उस वक्त के हिसाब से ये भी कम बड़ी बात नहीं थी।

बिजली गई तो सिस्टम गया!

एक और मजेदार बात – उस ट्रैफिक लाइट में कोई बैकअप नहीं था। मतलब अगर बिजली चली गई तो… खत्म! पूरा सिस्टम डाउन। पर हैरानी की बात ये कि उस वक्त के incandescent बल्ब आज के LED लाइट्स के मुकाबले कम बिजली खाते थे। क्या आप यकीन करेंगे कि ये उस जमाने में भी एनर्जी एफिशिएंट माने जाते थे?

क्या अच्छा था, क्या बुरा?

असल में देखा जाए तो इस छोटे से आविष्कार ने पूरी दुनिया को बदल दिया। एक तरफ तो इसने सड़क दुर्घटनाएं कम कीं, वहीं दूसरी तरफ टेक्नोलॉजी के नए रास्ते खोल दिए। हालांकि, शुरुआती दिक्कतें भी कम नहीं थीं – हर समय एक आदमी की जरूरत, मेंटेनेंस का खर्च… पर ये तो हर नई चीज के साथ होता है न?

आखिर में बस इतना…

देखा जाए तो वो 1912 की छोटी सी ट्रैफिक लाइट आज के स्मार्ट सिटी सिस्टम्स की दादी है! शुरुआत छोटी थी, पर असर बहुत बड़ा। अगर वो पुलिस ऑफिसर आज अपनी ही बनाई ट्रैफिक लाइट को देखता, तो शायद खुद को यकीन नहीं होता कि उसके छोटे से आइडिया ने कितनी बड़ी क्रांति ला दी। है न मजेदार बात?

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दुनिया की पहली इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट: कुछ रोचक बातें जो शायद आप नहीं जानते!

1. किसने बनाई थी ये जादुई लाइट?

सोचिए, 1912 में एक पुलिस वाले ने दुनिया बदल दी! Lester Wire नाम का ये अमेरिकन ऑफिसर वो शख्स था जिसने पहली इलेक्ट्रिक ट्रैफिक लाइट बनाई। असल में ये एक प्रोटोटाइप था – बस red और green lights का कॉम्बिनेशन। सोचने वाली बात है ना, आज जिस चीज़ को हम रोज़ देखते हैं, उसकी शुरुआत कितनी सिंपल थी?

2. कहाँ लगी थी ये ऐतिहासिक लाइट?

तो कहानी ये है कि 5 August 1914 को अमेरिका के Cleveland में एक चौराहे पर मैजिक हुआ। Euclid Avenue और East 105th Street का वो इंटरसेक्शन इतिहास बन गया। American Traffic Signal Company ने इसे install किया था। सच कहूँ तो आज वहाँ जाने का मन करता है – जहाँ से ये सफर शुरू हुआ!

3. Colors की कहानी

शुरुआत में तो बस दो ही रंग थे – red मतलब ‘रुको’, green मतलब ‘चलो’। फिर 1920 में Detroit वालों ने थोड़ा twist दिया। उन्होंने बीच में yellow जोड़ दिया – जैसे कह रहे हों ‘भाई जल्दी करो, लाइट बदलने वाली है!’ एकदम ज़बरदस्त आइडिया था।

4. भारत में कब आई ये टेक्नोलॉजी?

अब बात करें अपने देश की। 1950s में कोलकाता (तब कलकत्ता) में पहली बार ट्रैफिक लाइट देखने को मिली। पर ये हैरानी की बात है कि exact date और location का कोई ठोस रिकॉर्ड नहीं मिलता। शायद उस ज़माने में लोगों ने इतना अहमियत नहीं दी होगी। आज तो हर छोटे-बड़े शहर में ये नज़ारा आम है!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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