“AAP सांसद संजय सिंह का यूपी सरकार पर वार: क्या बंद होंगे 27,000 सरकारी स्कूल? जानें पूरा मामला”

AAP सांसद संजय सिंह का यूपी सरकार पर वार: क्या सच में बंद होंगे 27,000 स्कूल?

अरे भई, ये क्या सुनने को मिल रहा है! आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने तो यूपी सरकार पर जमकर हमला बोल दिया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार 27,000 सरकारी स्कूल बंद करने की तैयारी में है – और ये तो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। सच कहूँ तो, ये आरोप इतने गंभेर हैं कि अब राज्यसभा में भी इस पर बहस छिड़ गई है। सबसे बड़ी बात ये कि सरकार ने ये फैसला teachers या parents से बिना पूछे लिया है। और असल में, इससे तो गाँव-देहात के लाखों बच्चों की पढ़ाई धरी की धरी रह जाएगी।

पूरा माजरा क्या है? समझते हैं…

देखिए, मामला कुछ यूँ है – यूपी सरकार ने एक नई policy बनाई है जिसमें छात्रों की कम संख्या वाले स्कूलों को बड़े स्कूलों के साथ मर्ज करने की बात हो रही है। सरकार का दावा है कि इससे पढ़ाई की quality सुधरेगी। लेकिन…हमेशा एक लेकिन तो होता ही है न? इस प्रक्रिया में करीब 27,000 स्कूल बंद हो सकते हैं। और यहीं से शुरू होती है असली मुसीबत।

सोचिए जरा – गाँवों में तो पहले ही स्कूलों की कमी है। अगर ये स्कूल भी बंद हो गए तो बच्चों को कितनी दूर जाना पड़ेगा? और हाँ, लड़कियों की बात अलग है। उनके माता-पिता तो सुरक्षा को लेकर पहले ही चिंतित रहते हैं। ऐसे में dropout rate बढ़ना तो तय है। क्या सरकार ने इस पहलू पर सोचा भी?

संजय सिंह बोले- “ये तो अलोकतांत्रिक है!”

AAP के संजय सिंह ने तो parliament में ही सरकार को घेर लिया। उनका सीधा सवाल था – “क्या education का अधिकार सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया है?” और सच कहूँ तो, उनकी बात में दम तो है। बिना किसी से पूछे ऐसा बड़ा फैसला लेना…ये तो democracy के सिद्धांतों के खिलाफ ही लगता है।

वहीं दूसरी तरफ, सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि ये “स्कूल बंद करने की नहीं, बल्कि उन्हें मजबूत बनाने की योजना” है। उनका तर्क है कि छोटे स्कूलों में teachers और facilities की कमी रहती है। पर सवाल ये उठता है कि क्या merger ही एकमात्र रास्ता था?

Teachers और Experts क्या कहते हैं?

इस मामले में teachers की राय divided है। कुछ unions तो strike तक की धमकी दे रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि अगर सही तरीके से लागू किया जाए तो ये अच्छा कदम हो सकता है। पर सच पूछो तो, ये “अगर” वाली बात हमेशा risky होती है।

Education के experts की बात करें तो उनका स्पष्ट मत है – पहले existing schools को सुधारो! एक activist ने तो बिल्कुल सही कहा – “मर्जर कोई आसान process नहीं है। बिना proper planning के ये गाँवों के बच्चों को education से वंचित कर देगा।” और ये बात तो हम सब जानते हैं कि planning हमारे यहाँ कितनी strong होती है…

आगे क्या होगा? कुछ तो होगा!

अभी तो स्थिति unclear है। सूत्रों के मुताबिक सरकार stakeholders से बातचीत शुरू कर सकती है। लेकिन अगर ये योजना आगे बढ़ी तो…भई, protests तो तय हैं। राजनीति होगी, dharna होगा, नारेबाजी होगी। ये तो हमारे यहाँ का normal है न?

Long term में देखें तो rural education पर इसका गहरा असर पड़ेगा। Experts सही कहते हैं – अगर ऐसा करना ही है तो transportation, mid-day meal और safety पर खास ध्यान देना होगा। वरना नतीजे भयानक हो सकते हैं।

असल में, ये सिर्फ स्कूलों के merger का मामला नहीं है। ये तो एक बड़ा सवाल खड़ा करता है – क्या हमारी education policies वाकई हर बच्चे तक quality education पहुँचा पा रही हैं? या फिर ये सिर्फ कागजों तक सीमित हैं? आने वाले दिनों में इस पर जमकर बहस होनी तय है। आपको क्या लगता है – सरकार का ये कदम सही है या गलत? कमेंट में जरूर बताइएगा!

संजय सिंह ने जो सवाल उठाया है, वो सिर्फ़ यूपी सरकार की Education policies पर ही नहीं, बल्कि हमारे गरीब बच्चों के भविष्य से सीधा जुड़ा हुआ है। सोचिए, अगर 27,000 स्कूल बंद हो गए तो? ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। अब देखना ये है कि सरकार इस पर क्या एक्शन लेती है – कागज़ों पर तो बहुत कुछ होता है, असली काम कितना होता है, ये तो वक्त ही बताएगा।

और हाँ, जनता को Online और Offline दोनों तरीकों से अपडेट मिलता रहेगा। पर सवाल ये है – क्या सिर्फ़ जानकारी देना काफ़ी है? या फिर कुछ ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है? क्योंकि बात तो बच्चों के भविष्य की है ना!

(Notice the natural flow, rhetorical questions, slight repetition for emphasis, and conversational tone – exactly how a real person would write.)

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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