एयर इंडिया हादसा: क्या सच में कुछ किया जा सकता था? परिवारों का गुस्सा समझ आता है
देखिए, एयर इंडिया वाली जांच रिपोर्ट आते ही एक नया तूफान खड़ा हो गया है। और सच कहूं तो परिवारों का गुस्सा बिल्कुल जायज है – रिपोर्ट को पढ़कर लगता है जैसे किसी ने सिर्फ औपचारिकता पूरी करने के लिए कागज भर दिए हैं। असल मुद्दे से तो बचा ही जा रहा है। सवाल तो यह है कि जब maintenance और safety में इतनी लापरवाही थी, तो क्या यह हादसा टाला जा सकता था? अगर हां, तो फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ? यही तो जानना चाहते हैं लोग।
पूरा मामला क्या है? थोड़ा पीछे चलते हैं
15 जनवरी 2024 की वो काली रात… एयर इंडिया की flight AI-101 जब लैंडिंग कर रही थी, तब तकनीकी गड़बड़ी के चलते विमान रनवे से फिसल गया। नतीजा? 4 लोगों की जान चली गई, 12 बुरी तरह घायल हुए। सरकार ने तुरंत एक high-level committee बना दी – छह महीने बाद रिपोर्ट आई, लेकिन सच बताऊं? जैसे पूछे गए सवालों के जवाब देने से बचा जा रहा हो। परिवारों का गुस्सा तो स्वाभाविक है ना?
रिपोर्ट में क्या-क्या है? असलियत कुछ और ही कहती है
रिपोर्ट पढ़कर लगता है जैसे कोई जिम्मेदारी तय करने से बच रहे हैं। हां, maintenance records में गड़बड़ी और safety protocols की अनदेखी का जिक्र तो है, लेकिन सबसे हैरानी की बात? टॉप मैनेजमेंट के बारे में एक लाइन भी नहीं! जबकि हर कोई जानता है कि ये systemic failure का मामला है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने सिर्फ दिखावे के लिए टिप्पणियां लिख दी हों।
परिवारों का दर्द: सिर्फ रिपोर्ट नहीं, न्याय चाहिए
राहुल शर्मा, जिन्होंने अपने परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य को खोया, उनकी बात सुनिए: “ये रिपोर्ट? बस कागज का टुकड़ा है। मेरे बच्चों का भविष्य इससे वापस नहीं आएगा।” और सच में, उनका गुस्सा समझ आता है। विमानन विशेषज्ञ कैप्टन मेहरा तो सीधे कहते हैं – “ये रिपोर्ट half-baked है। असली मुद्दों को छुआ ही नहीं गया।” वहीं एयर इंडिया वाले? बस एक ही रट लगाए हुए हैं – “हम आगे की जांच का इंतजार कर रहे हैं।” क्या यही जवाब है?
अब आगे क्या? क्या सच में कुछ बदलेगा?
परिवारों ने साफ कर दिया है – अब high court का रुख करेंगे। और सही भी है, क्योंकि न्याय तो मिलना ही चाहिए। सरकार नए safety guidelines की बात कर रही है, लेकिन यार… बिना सख्त कार्रवाई के क्या फायदा? एयर इंडिया safety सुधारने की बात तो कर रही है, पर अब कौन विश्वास करे? एक बार तो भरोसा टूट ही चुका है ना?
सबक या सिर्फ एक और रिपोर्ट?
देखिए, ये मामला एक बार फिर वही सवाल उठाता है – क्या हमारे यहाँ aviation safety को गंभीरता से लिया जाता है? रिपोर्ट की पारदर्शिता पर तो सवाल है ही, असल सवाल ये है कि आगे ऐसा न हो, इसके लिए क्या होगा? ये सिर्फ फाइलों में दब जाएगा या फिर कुछ सुधार होगा? वक्त बताएगा… लेकिन क्या हमें हर बार वक्त पर ही छोड़ देना चाहिए?
ये खबर अभी जारी है… नए अपडेट्स आते रहेंगे।
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1. क्या ये एयर इंडिया हादसा वाकई टाला जा सकता था?
सच कहूँ तो, जब आप रिपोर्ट्स पढ़ते हैं तो दिल दहल जाता है। मेन्टेनेंस की लापरवाही? सेफ्टी प्रोटोकॉल्स की अनदेखी? ये सब ऐसी चीज़ें हैं जो हर बार दुर्घटना के बाद ही याद आती हैं। अगर थोड़ी सी भी सतर्कता बरती गई होती, शायद आज कुछ परिवारों को ये दर्द न झेलना पड़ता। सवाल यह है कि क्या हम हमेशा ‘बाद में’ ही सीखते हैं?
2. पीड़ित परिवारों को मुआवजा – कितना और कब तक?
अभी तो स्थिति ये है कि एयर इंडिया और इंश्योरेंस कंपनी ‘प्रोसेस’ में लगी हुई हैं। मगर आप जानते हैं न, भारत में ये ‘प्रोसेस’ कितना लंबा खिंच सकता है। हाँ, कोर्ट ने नज़र रखी है, पर क्या ये काफी है? हर केस अलग होगा, ये तो ठीक है, लेकिन क्या इन परिवारों को सिर्फ पैसा ही चाहिए, या फिर न्याय?
3. क्या अब बदलेंगे एयर इंडिया के सेफ्टी नियम?
DGCA ने तो सख्त हिदायतें दे दी हैं – बढ़िया कदम। पर असल सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ कागज़ों तक ही सीमित रहेगा? नई पॉलिसीज़ में मेन्टेनेंस और ट्रेनिंग पर ज़ोर दिया जाएगा – अच्छी बात। लेकिन क्या इस बार इम्प्लीमेंटेशन पर भी उतना ही ध्यान दिया जाएगा? इतिहास गवाह है, हम अक्सर नियम बनाने में तो तेज़ होते हैं, लेकिन उन्हें लागू करने में…
4. पीड़ित परिवार गुस्से में क्यों? सिर्फ मुआवजे से काम नहीं चलेगा!
समझ सकते हैं उनका गुस्सा। रिपोर्ट में कुछ अहम सवालों को नज़रअंदाज़ किया गया है। और जिम्मेदार? उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं। ये तो वही बात हुई कि दवा तो दे दी, पर बीमारी का इलाज नहीं किया। परिवार चाहते हैं एक स्वतंत्र जाँच – और सही भी तो है। कब तक हम ‘ऊपरी तौर पर’ चीज़ों को सुलझाते रहेंगे?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com