2047 तक हर गांव में बनेगी सहकारी समिति – अमित शाह का बड़ा ऐलान!

2047 तक हर गांव में सहकारी समिति? अमित शाह का बड़ा वादा!

आज एक बड़ी खबर सुनने को मिली – हमारे गृहमंत्री अमित शाह ने ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ा ऐलान किया है। और ईमानदारी से कहूं तो, अगर यह सच में लागू हो जाए, तो गांवों की तस्वीर बदल सकती है। उन्होंने नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति पेश की है जिसमें 2047 तक हर गांव में सहकारी समिति बनाने का टारगेट रखा गया है। सुनने में तो यह बहुत अच्छा लगता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक और सरकारी वादा है या कुछ ठोस होगा?

सहकारिता की कहानी: पुरानी बातें, नए इरादे

असल में सहकारिता की कहानी हमारे देश में बहुत पुरानी है। 1904 से चली आ रही है यह परंपरा – जब अंग्रेजों ने पहला सहकारी कानून बनाया था। मजे की बात यह कि आजादी के बाद से यह आंदोलन और मजबूत हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि देश में 8.5 लाख से ज्यादा सहकारी समितियां हैं जिनसे 29 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं! लेकिन अब सरकार क्या चाहती है? गांव-गांव तक सहकारिता पहुंचाना, किसानों की आय बढ़ाना और इन संस्थाओं को डिजिटल बनाना। 83 पॉइंट्स की यह नीति… जिसमें से 58 पर काम शुरू भी हो चुका है।

नीति के मुख्य मुद्दे: सिर्फ बातें या कुछ खास?

तो इस नीति में क्या-क्या है? सबसे पहले तो यह कि हर गांव में सहकारी समिति बनेगी। अच्छी बात है। लेकिन सिर्फ समिति बना देने से काम नहीं चलेगा न! साथ ही इन्हें पूरी तरह डिजिटल और technology-based बनाने पर जोर दिया जाएगा। किसान क्रेडिट कार्ड, सहकारी बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करना… ये सब तो ठीक है। पर एक सबसे दिलचस्प बात – एक राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बनेगा जो पूरे देश की सहकारी गतिविधियों पर नजर रखेगा। क्या यह सच में काम करेगा? देखना होगा।

लोग क्या कह रहे हैं? – प्रतिक्रियाओं का मिक्सचर

अमित शाह जी तो कह ही रहे हैं कि “सहकारिता आत्मनिर्भर भारत की कुंजी है”। ठीक है, मान लेते हैं। लेकिन कृषि विशेषज्ञ डॉ. गुलाटी का कहना है कि अगर ठीक से लागू हुआ तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। यह तो बहुत बड़ी बात हुई! वहीं सहकारी संघ के लोग भी खुश हैं। पर मेरा सवाल – क्या यह सब सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगा? पिछले कितने ही ऐसे वादे हमने सुने हैं जो धरातल पर नहीं उतरे।

आगे की राह: संभावनाएं और चुनौतियां

अब आगे क्या? अगले छह महीनों में राज्य सरकारों के साथ बैठकें होंगी। 2025 तक 50,000 नई समितियां बनाने का लक्ष्य है। एक डिजिटल पोर्टल भी आने वाला है। अच्छी बात यह कि अगले बजट में इसके लिए अलग से फंड भी मिल सकता है। अगर सब कुछ ठीक से हो गया तो… गांवों में नौकरियां बढ़ेंगी, अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। लेकिन बड़ा ‘अगर’ है यहाँ!

अंत में बस इतना – यह नीति वाकई में अगर ठीक से लागू हो जाए, तो गेम-चेंजर साबित हो सकती है। पर हम भारतीय तो जानते ही हैं न – योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। क्या इस बार सच में कुछ अलग होगा? वक्त बताएगा।

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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