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“बिहार वोटर लिस्ट समीक्षा में अनुच्छेद 326 का महत्व – चुनाव आयोग की बड़ी चाल!”

बिहार वोटर लिस्ट की धांधली और अनुच्छेद 326 – क्या ये चुनाव आयोग का गेम-चेंजर मूव है?

अरे भई, चुनाव आयोग ने तो बिहार में बवाल मचा दिया है! हाल में उन्होंने वोटर लिस्ट के रिव्यू का जो फैसला लिया है, उसने पूरे राजनीतिक गलियारों को हिलाकर रख दिया। असल में बात ये है कि इस पूरी प्रक्रिया में अनुच्छेद 326 को केंद्र में रखा गया है – वही जो हम सबको ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ का हक देता है। चुनाव आयोग का दावा है कि ये सब पारदर्शिता के लिए किया जा रहा है… लेकिन सच क्या है? क्योंकि विपक्ष तो इसे लेकर सवाल खड़े कर ही रहा है।

देखिए, बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर तो हमेशा से ही विवाद रहा है। आपको याद होगा – फर्जी वोटर्स का मामला, गलत डिटेल्स वाले कार्ड… ये सब तो जैसे बिहार चुनावों का हिस्सा बन चुका था। मजे की बात ये है कि अब चुनाव आयोग ने 2003 की वोटर लिस्ट को अपनी official website पर डाल दिया है। सोचिए, अब आप घर बैठे अपना और अपने परिवार का नाम चेक कर सकते हैं। क्या ये अनुच्छेद 326 की असली भावना को पूरा नहीं करता? वो जो कहता है कि 18 साल से ऊपर का हर भारतीय बिना किसी भेदभाव के वोट डाल सकता है।

एक दिलचस्प बात – चुनाव आयोग ने हाल में जारी अपने एक पोस्ट में अनुच्छेद 326 को खास तौर पर हाइलाइट किया है। मतलब साफ है न? वो चाहते हैं कि जितने भी पात्र वोटर हैं, सबकी एंट्री हो। और 2003 की लिस्ट को online करने से नए वोटर्स को फायदा ये होगा कि वो अपना नाम अपने माता-पिता के नाम से लिंक कर पाएंगे। चुनाव आयुक्त साहब तो इसे ‘पारदर्शिता का क्रांतिकारी कदम’ बता रहे हैं। सच कहूं तो, अगर ये सही तरीके से लागू होता है तो वाकई गेम-चेंजर साबित हो सकता है।

लेकिन… हमेशा एक लेकिन होता ही है न? राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रियाएं तो बंटी हुई हैं। विपक्ष वालों का कहना है कि ये सब दिखावा है और सरकार चुनावी फायदा उठाना चाहती है। वहीं दूसरी तरफ, कुछ सिविल सोसाइटी ग्रुप्स इसकी तारीफ कर रहे हैं। हालांकि, कुछ लोगों को डेटा privacy को लेकर चिंता है – जो वाजिब भी है।

तो अब सवाल ये है कि आगे क्या? अगर ये मॉडल बिहार में काम कर गया तो फिर तो पूरे देश में लागू हो सकता है। पर विपक्ष शायद कोर्ट का दरवाजा खटखटाए। और सच बताऊं? जैसे-जैसे बिहार चुनाव नजदीक आएंगे, ये मुद्दा और गरमा जाएगा। फिलहाल तो हमें यही देखना है कि चुनाव आयोग का ये डिजिटल एक्सपेरिमेंट कितना कामयाब होता है। क्या ये हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाएगा? वक्त बताएगा।

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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