BLS की ही तरह U.K. भी डेटा की गड़बड़ियों से परेशान – क्या है पूरा माजरा?
अरे भाई, ब्रिटेन का Office for National Statistics (ONS) इन दिनों खूब चर्चा में है। पर अच्छे कारणों से नहीं! रोजगार के आंकड़ों को लेकर जो हंगामा मचा है, उसने न सिर्फ एजेंसी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि ये तो पूरी अर्थव्यवस्था की समझ को ही प्रभावित कर सकता है। और हैरानी की बात ये कि ये समस्या सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं। अमेरिका का Bureau of Labor Statistics (BLS) भी कुछ महीने पहले ठीक ऐसी ही मुसीबत में फंसा था। साफ है कि ये कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक वैश्विक डेटा संकट का हिस्सा है।
ONS का काम और बढ़ती मुश्किलें
देखिए, ONS ब्रिटेन का वो आधिकारिक संस्थान है जो GDP, मुद्रास्फीति और रोजगार जैसे अहम आर्थिक आंकड़े जारी करता है। पुराने जमाने में ये Labour Force Survey (LFS) के जरिए घर-घर जाकर डेटा इकट्ठा करता था। लेकिन अब? लोग सर्वे में हिस्सा लेना कम कर चुके हैं। COVID-19 ने तो जैसे आग में घी का काम किया – लॉकडाउन में सर्वे करना नामुमकिन सा हो गया। नतीजा? आंकड़े इतने अजीब हो गए कि असली आर्थिक हालात समझना मुश्किल हो रहा है। सच कहूं तो, ये वैसा ही है जैसे बिना चश्मे के धुंध में देखने की कोशिश करना!
आलोचनाओं का दौर और सरकार की चाल
अब तो एक्सपर्ट्स भी खुलकर बोलने लगे हैं। कुछ तो ONS के आंकड़ों को ‘भ्रम पैदा करने वाला’ तक कह चुके हैं। मुख्य समस्या ये कि पुराने तरीके आज के बदलते लेबर मार्केट को समझ ही नहीं पा रहे। सरकार ने हालांकि नए तरीके अपनाने का ऐलान किया है – जैसे real-time payroll डेटा, टैक्स रिकॉर्ड और online जॉब पोर्टल्स की मदद लेना। अमेरिका ने भी कुछ ऐसा ही किया था। पर सवाल ये कि क्या ये नए तरीके काम कर पाएंगे? वक्त ही बताएगा।
उद्योग और राजनीति में हड़कंप
बिजनेस लोगों की नींद उड़ चुकी है। उनका कहना है कि गलत आंकड़े निवेशकों का भरोसा तोड़ सकते हैं। राजनीति की बात करें तो विपक्ष सरकार पर जमकर हमला कर रहा है। उनका आरोप – डेटा में पारदर्शिता की कमी से गरीबों तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा। और सच कहें तो, इन आरोपों में दम भी दिखता है।
आगे का रास्ता: टेक्नोलॉजी ही भविष्य?
ONS ने 2024 तक बड़े बदलावों की योजना बनाई है। AI, machine learning और big data analytics जैसी चीजों का इस्तेमाल हो सकता है। अगर ब्रिटेन ये कर दिखाता है, तो ये दूसरे देशों के लिए मिसाल बन सकता है। पर तब तक? तब तक तो निवेशकों और नीति निर्माताओं को बहुत सावधान रहना होगा। क्योंकि अधूरे आंकड़ों पर लिया गया फैसला, वैसा ही होता है जैसे अंधेरे में तीर चलाना!
BLS और U.K. की Data चुनौतियाँ: जानिए वो सवाल जो आप पूछना चाहते हैं!
1. भईया, BLS और U.K. को Data के मामले में इतनी दिक्कत क्यों आ रही है?
सच कहूँ तो, ये दोनों ही संस्थाएँ आजकल टेक्नोलॉजी के साथ छुपन-छुपाई खेल रही हैं। पुराने सिस्टम, अचानक आने वाले technical glitches, और बढ़ती data की माँग – ये सब मिलकर एक ऐसा घालमेल बना रहे हैं जिससे सही और समय पर रिपोर्ट्स देना मुश्किल हो रहा है। ठीक वैसे ही जैसे पुराने मोबाइल पर नए-नए apps चलाने की कोशिश करें!
2. यार, ये सब data की उलझनें हम जैसे आम लोगों को कैसे प्रभावित करती हैं?
देखिए न, जब data में गड़बड़ होती है तो economic reports, नौकरी के trends और सरकारी policies सब late हो जाते हैं। सोचिए – एक स्टूडेंट job market का हाल जानना चाहता है, या कोई बिज़नेस नया प्लान बना रहा है, लेकिन उन्हें सही जानकारी नहीं मिल पा रही। बिना सही data के लिए decisions लेना ठीक वैसा ही है जैसे अँधेरे में तीर चलाना!
3. सुनो, क्या इन संस्थाओं ने इन problems का कोई हल निकाला है?
हाँ भई, अब ये लोग भी smart हो रहे हैं! BLS और U.K. दोनों ही अपने सिस्टम्स को upgrade करने में जुटे हैं। AI और machine learning जैसी चीज़ों को अपना रहे हैं। पर ये process उतनी ही तेज़ है जितनी दिल्ली की सड़कों पर traffic! मतलब, धीरे-धीरे ही सही, पर काम तो चल रहा है।
4. सबसे बड़ा सवाल – क्या हम इनकी reports पर अब भी भरोसा कर सकते हैं?
ईमानदारी से कहूँ तो… हाँ। पर एक ‘लेकिन’ के साथ। ये संस्थाएँ data की सच्चाई जाँचने के लिए कई layers में काम करती हैं। पर हमें भी थोड़ा smart बनना होगा – reports के साथ-साथ updates और corrections भी check करते रहना चाहिए। वैसे भी, कोई भी system 100% perfect तो होता नहीं, है न?
Source: Dow Jones – Social Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com