BRICS Summit का असली ड्रामा: क्या ये ग्रुप अब टूटने वाला है?
अरे भई, इस बार का BRICS Summit तो किसी सास-बहू सीरियल से कम नहीं था! जहां एक तरफ नेताओं की गैरहाजिरी ने बवाल मचाया, वहीं दूसरी तरफ सदस्य देशों के बीच बढ़ते तनाव ने सबको हैरान कर दिया। सच कहूं तो, नए देशों के जुड़ने के बाद तो ये ग्रुप और भी उलझ गया लगता है। ऐसे में सवाल यही है – क्या ये समिट BRICS के भविष्य के लिए टर्निंग पॉइंट साबित होगा? या फिर ये सब दिखावा ही है?
BRICS की कहानी: शुरुआत से लेकर आज तक
देखिए, 2009 में जब BRICS बना था, तो इसका मकसद साफ था – विकासशील देशों की आवाज़ बुलंद करना। उस वक्त तो सब ठीक-ठाक था, economic cooperation पर फोकस था। लेकिन अब? अब तो चीन और रूस का दबदबा बढ़ता जा रहा है। भारत और ब्राजील जैसे देश बीच-बीच में संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं, पर कामयाबी मिलती है या नहीं, ये अलग सवाल है। और अब तो सऊदी, ईरान जैसे नए खिलाड़ी भी आ गए हैं। अच्छा हुआ या बुरा? असल में, दोनों। एक तरफ तो BRICS का दायरा बढ़ा है, लेकिन दूसरी तरफ झगड़े भी बढ़े हैं। Typical Indian family drama की तरह!
इस बार के Summit की हाइलाइट्स: क्या हुआ खास?
इस बार तो दो बड़ी बातें हुईं। पहली – पुतिन और शी जिनपिंग ने तो वर्चुअल ही आना मुनासिब समझा। अब भई, जब बॉस लोग ही नहीं आएंगे, तो meeting का असर कैसा होगा? दूसरी बात – economic और political मुद्दों पर सबके अपने-अपने ढोल। डॉलर के विकल्प पर बात तो हुई, पर कोई फैसला? जीरो। नतीजा? बस बैठक के बाद एक अच्छा सा फोटो शूट और प्रेस रिलीज।
और हां, तनाव तो और भी थे। चीन-भारत border issue तो है ही, उस पर रूस और West के बीच चल रही ठन-ठन भी माहौल को और गरमा रही थी। कुल मिलाकर? एक बेहद उबाऊ reality show जिसमें कोई winner नहीं था।
किसने क्या कहा? Reactions का खेल
समिट के बाद तो सबने अपने-अपने राग अलापने शुरू कर दिए। भारत ने कहा – “हमें एकजुट रहना चाहिए, लेकिन… (हमेशा की तरह एक ‘लेकिन’ जरूर होता है न?) सबकी संप्रभुता का ख्याल रखना चाहिए।” रूस ने तो बिना किसी शर्म के कह दिया – “हम West के दबाव में नहीं आएंगे!” अरे भाई, ये तो वही पुरानी रट है।
Experts की राय? वो तो और भी मजेदार है। कुछ का कहना है कि नए members के आने से ग्रुप कमजोर होगा। क्यों? क्योंकि हर कोई अपनी रोटी सेकने में लगा है। और analysts तो यहां तक कह रहे हैं कि चीन का बढ़ता प्रभाव और रूस की महत्वाकांक्षाएं भारत के लिए मुसीबत बन सकती हैं। सच कहूं? ये तो हम पहले से जानते थे!
आगे क्या? BRICS का भविष्य
अब सवाल ये है कि ये ग्रुप आगे क्या करेगा? नए members को manage करना, झगड़े कम करना – ये सब तो ऐसा है जैसे किसी joint family में शांति बनाए रखना। मुश्किल, पर नामुमकिन नहीं।
और हां, भारत के लिए तो ये बेहद नाजुक मोड़ है। एक तरफ चीन, दूसरी तरफ रूस – बीच में अपने हितों की रक्षा करनी है। जैसे दो ससुरालियों के बीच बहू की स्थिति! Diplomacy के experts कहते हैं कि भारत को बहुत समझदारी से कदम उठाने होंगे। पर हम भारतीयों को तो ये आता ही है – हजारों सालों से हम balancing act करते आए हैं न?
एक बात तो तय है – 2009 वाला BRICS अब रहा नहीं। नए members, बदलती global politics – इन सबके बीच इसकी relevance इसकी unity पर ही निर्भर करेगी। अगले कुछ साल तो बताएंगे कि ये ग्रुप वाकई कुछ कर पाता है या फिर सिर्फ एक ‘टॉक शॉप’ बनकर रह जाता है। आपको क्या लगता है?
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BRICS समिट की बात करें तो इस बार कुछ नेताओं की गैर-मौजूदगी और अंदरूनी मतभेदों ने सवाल खड़े किए हैं। सच कहूँ तो, यह दिखाता है कि BRICS को अभी भी चुनौतियाँ तो हैं, लेकिन साथ ही यह भी साबित होता है कि G7 जैसे समूहों से टक्कर लेने की ताकत इसमें अब भी बाकी है। है न दिलचस्प बात?
असल में, आगे चलकर इसकी कामयाबी पूरी तरह इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश कितना एकजुट होकर काम कर पाते हैं। एक तरफ तो अलग-अलग राय होना स्वाभाविक है, लेकिन दूसरी तरफ साझा हितों पर ध्यान देना भी उतना ही ज़रूरी है।
और हाँ, एक बात तो तय है – BRICS का वैश्विक मंच पर बढ़ता प्रभाव अब नज़रअंदाज़ करने वाली बात नहीं रही। थोड़ा सा ध्यान दें तो पता चलता है कि यह समूह धीरे-धीरे कितना अहम होता जा रहा है। क्या आपको नहीं लगता?
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BRICS Summit का असली ड्रामा: क्या हो रहा है और क्यों?
अरे भाई, इस बार का BRICS Summit तो किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं! सबसे बड़ा सवाल ये कि – क्या ये ग्रुप अभी भी एकजुट है, या सब अपने-अपने एजेंडे में उलझे हुए हैं? चलिए, बिना किसी फॉर्मल बकवास के सीधे मुद्दे पर आते हैं।
कौन नहीं आया और क्यों? असली वजह जानते हैं आप?
सुनिए, China के Xi Jinping और Russia के Putin ने तो इस बार physical attend करने से ही मना कर दिया। Virtual mode में ही दिखे ये दोनों बड़े खिलाड़ी। अब आप सोच रहे होंगे – “यार, इतना बड़ा summit और ये लोग फिजिकली नहीं आए?” असल में, Xi के लिए तो domestic issues बताए जा रहे हैं… लेकिन Putin का case तो सबको पता है – Ukraine वॉर की वजह से उनका foreign travel लगभग बंद सा हो गया है। थोड़ा अजीब लगता है न? BRICS का मकसद तो एक साथ बैठकर बातचीत करना था!
आपसी झगड़े: कहाँ फंस गए ये देश?
देखिए, BRICS के नाम पर तो बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन हकीकत ये है कि ये पांचों देश (Brazil, Russia, India, China, South Africa) आपस में ही उलझे हुए हैं। India-China का border tension तो जैसे नया नॉर्मल बन चुका है। Russia पश्चिमी देशों से उलझा हुआ है। Trade imbalances की बात करें तो… सच कहूँ तो सब China के पक्ष में ही जाता दिखता है। क्या ये ग्रुप सच में काम कर पाएगा? शक होने लगता है।
नए मेम्बर्स: क्या ये सच में बदलाव लाएगा?
अच्छी खबर ये कि 6 नए देशों (Argentina, Egypt, Ethiopia, Iran, Saudi Arabia, UAE) को invite किया गया है। 2024 से ये जॉइन करेंगे। लेकिन सवाल ये उठता है – क्या सदस्य बढ़ाने से असली समस्याएं हल हो जाएंगी? मेरा मानना है कि… नहीं। बल्कि और ज्यादा opinions आने से और उलझन बढ़ सकती है। हालांकि, Global South की आवाज मजबूत होगी, ये तो तय है।
भारत की चाल: बैलेंसिंग एक्ट!
अब हमारे मोदी जी क्या कर रहे हैं? देखिए, ये तो कमाल के tightrope walker हैं! एक तरफ तो China के साथ tensions को manage करना, दूसरी तरफ Russia के साथ relations maintain करना। बीच में sustainable development और Global South की बातें करके image भी बनाई जा रही है। मजे की बात ये कि भारत इस पूरे समिट में वो rare बैलेंस बना पाया है जो बाकी देश नहीं बना पा रहे। थोड़ा tricky है, लेकिन effective भी।
तो कुल मिलाकर? BRICS अभी भी एक कामचलाऊ ग्रुप लगता है। बड़ी-बड़ी बातें, लेकिन एक्शन कम। क्या आपको नहीं लगता?
Source: Financial Times – Global Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com