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“चीन को मिर्ची लगी! रिजिजू के दलाई लामा समर्थन पर बौखलाया बीजिंग, कहा- ‘घरेलू मामलों में दखल न दें'”

चीन को मिर्ची लग गई! रिजिजू के दलाई लामा वाले बयान ने बीजिंग की नींद उड़ा दी

अरे भई, किरण रिजिजू साहब ने तो बम फोड़ दिया! उनका यह बयान कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी वर्तमान लामा की मर्जी से ही चुना जाए – सुनकर चीन का तो बुरा हाल है। सच कहूं तो यह तनाव नया नहीं है, बस अब फिर से सर उठा लिया है। और चीन? वो तो ऐसे बौखलाया है जैसे किसी ने उसके चावल में नमक डाल दिया हो! बीजिंग तो भारत को डांटने पर उतर आया – “तिब्बत हमारा घरेलू मामला है” वाली रट लगा रहा है। पर सच तो यह है कि यह मुद्दा कभी शांत होता ही नहीं।

तिब्बत वाला पुराना झगड़ा – समझिए पूरा माजरा

देखिए, बात असल में बहुत सीधी है। तिब्बत को लेकर चीन और भारत की सोच में जमीन-आसमान का फर्क है। दलाई लामा? वो तो तिब्बती बौद्धों के लिए भगवान जैसे हैं, और अभी भारत में ही रह रहे हैं। चीन की बात करें तो उन्हें तो बस एक ही बात समझ आती है – “तिब्बत हमारा है, और हम जो कहेंगे वही होगा!” पर भारत? हमने तो हमेशा दलाई लामा का साथ दिया है। और यही तो चीन को चुभता है, है न?

रिजिजू ने क्या कहा जिसने चीन को इतना गुस्सा दिलाया?

असल मामला तो यह है कि रिजिजू ने साफ-साफ कह दिया – “नए दलाई लामा का चुनाव मौजूदा लामा की इच्छा से ही होगा।” और बस! चीन का तो जैसे बुखार चढ़ गया। उनका विदेश मंत्रालय तुरंत भड़क गया – “भारत दखल न दे!” वाली पुरानी रिकॉर्ड बजाने लगा। चीन का तो यहां तक दावा है कि उत्तराधिकारी चुनने का हक सिर्फ उन्हीं को है। मतलब साफ है – कोई और राय रखने की इजाजत नहीं!

किसकी क्या प्रतिक्रिया? जानिए सबकी राय

दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक जवाब नहीं दिया है। शायद सोच-विचार चल रहा है। पर चीन? वो तो अपनी पुरानी टेप ही चला रहा है – “तिब्बत हमारा, दखल न दो!” वाली। पर तिब्बती समुदाय? उनके लिए तो रिजिजू का बयान मानो ऑक्सीजन जैसा है! उनका तो मानना है कि नए लामा का चुनाव पूरी तरह आध्यात्मिक प्रक्रिया होनी चाहिए, न कि चीन की राजनीतिक मर्जी से।

आगे क्या होगा? कुछ अंदाज़ा लगाइए!

अब सवाल यह है कि यह झगड़ा कहां तक जाएगा? सीमा पर तनाव? व्यापार पर असर? देखिए, भारत को तो अब बहुत सोच-समझकर चलना होगा। एक तरफ अपने सिद्धांत, दूसरी तरफ डिप्लोमेसी का नाजुक खेल। पर एक बात तो तय है – तिब्बत मुद्दा फिर से सुर्खियों में है। और चीन-भारत की इस चालबाजी को देखना तो अब और भी दिलचस्प होगा। क्या नहीं?

आखिर में, सच तो यह है कि यह विवाद नया नहीं है, बस नए अंदाज में सामने आया है। भारत अपनी बात पर अड़ा रहेगा, चीन अपनी धुन में। और बीच में फंसे हैं तिब्बती लोग। पर यह तो तय है कि अगले कुछ दिनों की राजनीति बड़ी मसालेदार होने वाली है। क्या आपको नहीं लगता?

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देखा जाए तो चीन की यह प्रतिक्रिया किसी सरप्राइज से कम नहीं थी। मतलब, दलाई लामा का मुद्दा उनके लिए हमेशा से ही एक नाजुक मुद्दा रहा है – ऐसा क्यों? शायद इसलिए क्योंकि यह सीधे-सीधे उनकी ‘एक चीन’ वाली नीति पर सवाल खड़ा करता है। और फिर किरेन रिजिजू जी ने तो बिल्कुल सही वक्त पर बयान देकर बीजिंग वालों की नींद ही उड़ा दी! वैसे भी, चीन को तो बस ‘घरेलू मामलों’ का रट्टा लगाने की आदत सी हो गई है न?

अब सच बात तो यह है कि यह पूरा घटनाक्रम भारत और चीन के बीच के उन गहरे मतभेदों को फिर से उजागर कर देता है जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। और सबसे दिलचस्प बात? तिब्बत के मसले पर भारत का रुख अब पहले से कहीं ज़्यादा स्पष्ट हो चुका है। पर सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इस चेसबोर्ड पर यह टकराव आगे भी जारी रहेगा? क्योंकि अगर हम पिछले कुछ सालों को देखें तो…

[Note: I’ve maintained the original HTML paragraph tags while completely rewriting the content to sound more human-like and conversational. The text now includes rhetorical questions, casual phrasing, sentence fragments (“वैसे भी…”), and a more natural flow while preserving the original meaning. I’ve also kept the English words in Latin script as instructed.]

चीन vs रिजिजू: दलाई लामा विवाद पर वो सारे सवाल जो आप पूछना चाहते थे!

1. चीन का रिएक्शन इतना ज़्यादा क्यों? सच में, इतना बौखलाने की क्या ज़रूरत थी?

देखिए, चीन का तिब्बत पर कब्ज़ा है और ये बात उनके लिए बहुत सेंसिटिव है। अब जब किरण रिजिजू जी ने दलाई लामा का समर्थन कर दिया, तो चीन को लगा कि कोई उनके ‘प्यारे’ आंतरिक मामलों में दखल दे रहा है। वैसे भी, चीन को तो हर चीज़ में दिक्कत होती है – चाय पीने में भी और बयान देने में भी!

2. भारत की तरफ से क्या रुख है? क्या हम चीन से डर रहे हैं?

असल में बात ये है कि भारत ने हमेशा दलाई लामा को एक आध्यात्मिक गुरु माना है। उन्हें यहां शरण देना हमारी संस्कृति का हिस्सा है। लेकिन साथ ही, सरकार ये भी कह रही है कि ये रिजिजू जी का निजी विचार है। मतलब साफ है – हम चीन को खुश रखना चाहते हैं, लेकिन अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे। Smart move, है न?

3. क्या ये झगड़ा हमारे चीन के साथ रिश्ते बिगाड़ देगा? सच बताऊं?

अभी तक तो ये एक छोटी सी टकराहट है। पर चीन के तीखे बयान देखकर लगता है कि ये आगे बढ़ सकता है। हालांकि, हमारे और चीन के बीच तो पहले से ही इतने issues पड़े हुए हैं – LAC पर तनाव, trade imbalance, और न जाने क्या-क्या! इसलिए इस एक बयान पर सब कुछ खराब हो जाएगा, ऐसा नहीं लगता। फिर भी… देखते हैं!

4. क्या ये पहली बार हुआ है? या फिर दलाई लामा को लेकर पहले भी ऐसा हंगामा हुआ है?

अरे भई! ये तो पुरानी कहानी है। 1959 से चल रही है ये सीरियल। जब दलाई लामा भारत आए थे, तभी से चीन को हम पर शक हो गया था। तब से लेकर आज तक – कोई 5-10 साल छोड़ दें – तो हर दशक में चीन ने इस मुद्दे पर भारत को घेरने की कोशिश की है। क्या करें, उनकी आदत सी हो गई है हमें परेशान करने की!

Source: Aaj Tak – Home | Secondary News Source: Pulsivic.com

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