शिक्षा मंत्रालय का बड़ा फैसला: अब बाबुओं की चाय पार्टी में भूचाल! ‘नो ऑयल, नो शुगर’ का स्ट्रिक्ट मोड
अरे भई, सरकारी दफ्तरों में चाय के साथ समोसे-जलेबी खाने का जो मजा था, वो अब खत्म! शिक्षा मंत्रालय ने तो बिल्कुल सख्ती दिखाते हुए अपनी कैंटीन से तली-भुनी चीजों पर पूरी तरह रोक लगा दी है। सच कहूं तो मुझे लगता है ये फैसला PM मोदी के ‘फिट इंडिया’ वाले सपने को सच करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब कर्मचारियों को सिर्फ हेल्दी खाना मिलेगा – जैसे कोई स्कूल में बच्चों को डाइटिंग करा रहा हो!
आखिर क्यों उठाया गया ये कदम?
देखिए, बात सिर्फ समोसा-जलेबी की नहीं है। असल में तो ये पूरे सिस्टम को बदलने की कोशिश है। पिछले कुछ सालों में सरकारी कर्मचारियों में obesity और diabetes के मामले बढ़े हैं – और इसकी एक बड़ी वजह यही अनहेल्दी खानपान है। मजे की बात ये कि शिक्षा मंत्रालय की कैंटीन तो अपने लज़ीज समोसों के लिए मशहूर थी! अब सोचिए, जहां पढ़ाई-लिखाई की बातें होती हैं, वहां के लोग ही अनहेल्दी खा रहे थे – क्या आयरनी है न?
अब क्या-क्या बदलने वाला है?
तो सुनिए! नए menu में सिर्फ उबला, grilled या steamed खाना मिलेगा। अब न तो तेल में तले snacks, न कोल्ड ड्रिंक्स, न ही मिठाइयाँ! एक तरह से देखा जाए तो ये कैंटीन अब जिम के डाइट चार्ट जैसी हो गई है। लेकिन अच्छी बात ये है कि salad, sprouts और seasonal fruits जैसे हेल्दी ऑप्शन्स मिलेंगे। हालांकि मुझे यकीन है कि कुछ बाबू साहब अभी भी पास की दुकान से समोसे मंगवा लेंगे – आदतें जल्दी नहीं बदलती न!
लोग क्या कह रहे हैं?
शिक्षा मंत्री जी तो बड़े खुश हैं – उनका कहना है कि “हमारे कर्मचारी देश का भविष्य बनाते हैं, इसलिए उनका हेल्दी रहना जरूरी है।” लेकिन ground reality? कुछ कर्मचारी तो इस फैसले से खुश हैं, पर कुछ का मूड खराब है। एक सरकारी बाबू ने तो मजाक में कहा – “अब तो चाय भी बेस्वाद लगेगी!” वहीं nutrition experts इस कदम की तारीफ कर रहे हैं। सच बात तो ये है कि ये एक सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन इसे लागू करना आसान नहीं होगा।
आगे की रणनीति क्या है?
ये तो बस शुरुआत है दोस्तों! अब तो स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी तरह की पॉलिसी लाने पर विचार कर रहा है। monitoring team बनेगी, nutrition workshops होंगे – सब कुछ बहुत सिस्टमैटिक तरीके से। पर सवाल ये है कि क्या वाकई में लोग अपनी आदतें बदल पाएंगे? मेरा मानना है कि सख्ती के साथ-साथ awareness भी जरूरी है। वरना rules तो बन जाते हैं, पर follow कौन करता है?
अंत में बस इतना कहूंगा – ये फैसला निस्संदेह एक सही दिशा में उठाया गया कदम है। लेकिन जैसे हमारी माएं कहती हैं – “नई नई अच्छी बातें सबको पसंद आती हैं, पर टिकती कितनी हैं?” देखते हैं ये हेल्दी इनिशिएटिव कितना टिक पाता है!
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com