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ट्रंप के टैरिफ रोलर के आगे EU कैसे झुका? जानें पूरा विवाद

ट्रंप के टैरिफ रोलरकोस्टर और EU का सरेंडर – असली कहानी क्या है?

अरे भई, क्या आपने सुना? अमेरिका के उसी ‘ट्वीटर-हैरी’ पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वाले झमेले में EU ने आखिरकार हार मान ली है। सच कहूं तो, ये कोई साधारण समझौता नहीं है। एक तरफ तो यूरोपीय नेताओं के चेहरे पर राहत है कि व्यापार युद्ध टल गया, लेकिन दूसरी तरफ… वही ढाक के तीन पात! कुछ लोग तो मानो चुपके से दांत पीस रहे हैं। असल में, ये मामला सिर्फ स्टील-एल्युमिनियम तक सीमित नहीं है। बात तो यूरोप की ‘असली ताकत’ पर सवाल खड़ा कर देती है। समझ रहे हैं न मेरा इशारा?

बैकस्टोरी: जब ट्रंप ने EU को ‘टैरिफ’ का तोहफा दिया

याद है 2018 का वो दौर? जब ट्रंप ने अचानक EU के स्टील पर 25% और एल्युमिनियम पर 10% टैरिफ लगा दिया। उनका तर्क? “अमेरिकी उद्योगों को बचाना”। पर सच पूछो तो, यूरोप वालों को ये एकदम ‘बुलीइंग’ लगा। और फिर क्या? EU ने भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगा दिए। बस फिर क्या था, दोनों तरफ तनाव चरम पर!

जब बाइडेन आए तो सबने सोचा – अब तो शांति होगी। लेकिन… हुआ कुछ नहीं! हालांकि, बाइडेन प्रशासन ने बातचीत जरूर शुरू की। शायद उन्हें भी समझ आ गया था कि ये टैरिफ वाली लड़ाई किसी के हित में नहीं है।

समझौता: EU को मिली ‘छूट’, पर क्या सच में यही जीत है?

तो अब हालत ये है कि EU को कुछ सीमा तक टैरिफ-मुक्त निर्यात की छूट मिल गई है। साथ ही दोनों पक्षों ने GASSA (Global Arrangement on Sustainable Steel and Aluminium) नाम का एक फैंसी समझौता भी किया है। जिसमें जलवायु परिवर्तन और green transition जैसे मुद्दे शामिल हैं। अच्छी बात है न? पर…

यहां मजा खट्टा हो जाता है। EU के अंदर ही कुछ देश, खासकर फ्रांस और जर्मनी, बिल्कुल खुश नहीं हैं। उन्हें लगता है कि EU ने अमेरिका के आगे घुटने टेक दिए। मेरा मतलब, थोड़ा और सख्त रुख अपनाया जा सकता था न?

रिएक्शन्स: खुशी में मिलावट है ज़रा सी कसक!

EU आयुक्त वाल्डिस डोम्ब्रोव्स्किस तो इसे “संतुलित समाधान” बता रहे हैं। लेकिन उनकी बातों में एक अजीब सा एहतियात भी झलकता है। वहीं फ्रांस के वाणिज्य मंत्री तो सीधे-सीधे बोल रहे हैं – “हमें अपनी आर्थिक संप्रभुता बचानी होगी!” साफ-साफ।

जर्मन उद्योग संघ (German Industry Association) ने तो मानो पूरी बात समझ ली है। उनका कहना है – “अच्छा हुआ समझौता हो गया, पर अब EU को अपने उद्योगों को मजबूत बनाना चाहिए।” एकदम सही बात!

आगे का रास्ता: अब EU को क्या करना चाहिए?

देखिए, ये समझौता तो बस शुरुआत है। असली चुनौती अब है – एक तरफ तो GASSA के तहत जलवायु अनुकूल उद्योगों को बढ़ावा देना, दूसरी तरफ खुद को आत्मनिर्भर बनाना। और हां, चीन और दूसरे उभरते बाजारों के साथ भी संतुलन बनाए रखना होगा। मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं!

असल में, ये पूरा विवाद यूरोप के लिए एक सबक है। वैश्विक व्यापार के इस दौर में सही संतुलन बनाना ही असली कला है। और हां, अगर EU सच में अपनी ताकत दिखाना चाहता है, तो उसे अब कागजी घोड़ों से उतरकर असली कदम उठाने होंगे। क्या वो ऐसा कर पाएगा? वक्त बताएगा!

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ट्रंप के टैरिफ रोलर और EU विवाद – जानिए पूरी कहानी

अरे भाई, याद है वो दौर जब ट्रंप साहब ने टैरिफ की बारिश कर दी थी? EU से लेकर चीन तक सबकी छाती पर सांप लोट गया था। तो चलिए, आज इसी ड्रामे को समझते हैं – बिना बोर हुए, बिना ज्यादा तकनीकी जार्गन के।

1. ट्रंप ने EU को कैसे निशाना बनाया?

सुनिए, 2018 की बात है। ट्रंप ने अचानक EU के स्टील और एल्युमिनियम पर 25% का टैरिफ थोप दिया। ये उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ वाली फिलॉसफी का हिस्सा था। पर सवाल यह है कि क्या सच में अमेरिकी उद्योगों को फायदा हुआ? कुछ तो कहते हैं हां, कुछ का कहना है नहीं। असल में, ये एक बहुत ही कॉम्प्लेक्स गेम था।

2. EU ने कैसे काउंटर अटैक किया?

अब यूरोप वाले भी कोई बच्चे थोड़े ही हैं! उन्होंने तुरंत जवाबी कार्रवाई की – अमेरिकी व्हिस्की, जींस और यहां तक कि हार्ले डेविडसन बाइक्स पर भारी टैरिफ लगा दिए। मजे की बात ये कि इनमें से कई चीजें ट्रंप के अपने वोट बैंक को ही चोट पहुंचाने वाली थीं। चालाकी, है न? साथ ही WTO में भी शिकायत दर्ज करवा दी। पूरा चेस बोर्ड ही बदल गया।

3. आखिर EU ने झुक क्यों ही दिया?

देखिए, ट्रेड वॉर कोई क्रिकेट मैच नहीं होता जहां आप जीत या हार का इंतजार कर सकें। EU को अपनी इकॉनमी की चिंता थी। तो उन्होंने थोड़ा समझौता करना ही बेहतर समझा – जैसे अमेरिकी LNG खरीदने का फैसला। पर क्या आप जानते हैं? ये सिर्फ एक टैक्टिकल रिट्रीट था, असली गेम तो अभी चल ही रहा है।

4. भारत इस झगड़े में कहां फंसा?

अरे हमारा भारत भी इसकी चपेट में आया ना! हमारे स्टील एक्सपोर्टर्स की तो बदहाली हो गई। लेकिन हमारी सरकार ने भी कोई कम बाजीगरी नहीं दिखाई – अपने टैरिफ लगाए, WTO में केस किया। एक तरह से देखें तो ये हमारे लिए एक वेक-अप कॉल थी, जिससे हमने सीखा कि ग्लोबल ट्रेड में अकेले खेलना मुश्किल होता है।

तो ये थी ट्रंप और EU की टैरिफ वॉर की कहानी। क्या आपको लगता है ये सब अब खत्म हो गया है? मेरा तो मानना है, ये सिर्फ एक अध्याय का अंत है… पूरी किताब तो अभी बाकी है!

Source: Financial Times – Global Economy | Secondary News Source: Pulsivic.com

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