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“पूर्व सीएम का दर्द: ‘आंखों के सामने बह गया सब कुछ… अब हम कहां जाएं?’ – प्रभावितों की आवाज”

पूर्व सीएम का दर्द: ‘आंखों के सामने बह गया सब कुछ… अब हम कहां जाएं?’ – जब ज़मीन ही खिसक जाए

कभी सोचा है कि जब प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाए तो क्या होता है? हिमाचल का मंडी जिला इन दिनों इसी सवाल का जवाब बन गया है। भारी बारिश और बाढ़ ने ऐसी तबाही मचाई है कि पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर तक की आवाज़ दर्द से भर गई। उन्होंने रोपवे सुविधा को 24/7 रियायती दरों पर शुरू करने की मांग की है – और सच कहूं तो ये कोई मांग नहीं, बल्कि एक ज़रूरत बन चुकी है। कुकलाह और बाखली पुल तो बह ही गए, पर असल नुकसान तो उन सैकड़ों लोगों का हुआ है जो अब फंसे हुए हैं। प्रशासन के लिए ये सिर्फ चुनौती नहीं, एक इम्तिहान है।

पीछे की कहानी: जब बारिश ने ली भारी क़ीमत

मंडी में पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश कोई normal बारिश नहीं थी। नदियों का जलस्तर तो जैसे किसी फिल्म के सीन जैसा हो गया था – खतरनाक और डरावना। कुकलाह और बाखली पुल? अरे भई, ये तो जिले की जान थे! इनके बिना तो ऐसा लग रहा है जैसे शरीर से धमनियां ही कट गई हों। जयराम ठाकुर साहब पहले भी इस इलाके की infrastructure को लेकर आवाज़ उठाते रहे हैं, पर इस बार तो प्रकृति ने सबक सिखा दिया। उनका कहना सही है – ये सिर्फ पुलों के टूटने की बात नहीं, बल्कि हमारी पूरी system की फेलियर है।

अभी की स्थिति: हालात बदतर, उम्मीदें कम

सच तो ये है कि बाढ़ ने न सिर्फ घरों को, बल्कि लोगों की रोज़ी-रोटी को भी बहा दिया है। सैकड़ों परिवार? बेघर। प्रशासन की कोशिशें? नेक, पर नाकाफी। क्योंकि जब रास्ते ही नहीं हों, तो मदद कैसे पहुंचे? ठाकुर साहब ने केंद्र और राज्य सरकार से गुहार लगाई है – रोपवे सेवा शुरू करो भई! ये सिर्फ यातायात का मामला नहीं रहा, अब तो जान बचाने का सवाल है। पर सुनने वाला कोई है?

लोग क्या कह रहे हैं? – आवाज़ें ज़मीन से

जयराम ठाकुर का बयान तो खबरों में आ ही रहा है: “आंखों के सामने सब कुछ…” पर असली कहानी तो वो है जो स्थानीय लोग बता रहे हैं। एक बुजुर्ग का सीधा सा सवाल: “खाने को अनाज नहीं, सरकारी वादे क्या खाएंगे?” प्रशासन वालों का जवाब भी सुन लीजिए: “हम कोशिश तो कर रहे हैं…” बात साफ है – words से काम नहीं चलेगा, action चाहिए। और वो भी तुरंत।

आगे का रास्ता: अंधेरा घना या उम्मीद की किरण?

मौसम विभाग वालों ने तो और बारिश की चेतावनी दे दी है। NDRF की टीमें तैनात हैं, पर असल सवाल तो ये है कि long-term solution क्या होगा? रोपवे सेवा पर जल्द फैसला होगा – ये तो अच्छी खबर है। पर क्या ये काफी है? इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हमारी disaster management व्यवस्था में कितने छेद हैं। सच तो ये है कि infrastructure और preparedness – ये दोनों ही equally important हैं। पर हमने दूसरे वाले को हमेशा ignore किया है। नतीजा? आज का मंडी।

अंत में बस इतना – प्रकृति के आगे हम छोटे हैं, पर तैयारी से हम नुकसान को कम ज़रूर कर सकते हैं। मंडी की ये त्रासदी सिर्फ एक खबर नहीं, एक सबक है। पर सवाल ये है कि क्या हम सीखेंगे? या फिर अगली बार फिर वही रोना-धोना? समय बताएगा।

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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