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जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए सरकार बना रही है कमेटी, सूत्रों ने दी जानकारी

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जस्टिस वर्मा पर लगे आरोप: सरकार बना रही है जांच कमेटी, पर क्या यह सही कदम है?

देखिए, मामला कुछ ऐसा है – सरकार ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच के लिए एक कमेटी बनाने का फैसला किया है। और ये कदम आया है किरेन रिजिजू के उस बयान के ठीक बाद, जहां उन्होंने खुलासा किया कि impeachment के लिए 100 से ज़्यादा सांसदों के साइन जुटाए जा चुके हैं। सच कहूं तो, ये पूरा मामला न्यायपालिका और सरकार के बीच चल रही तनातनी को एक नए लेवल पर ले जाता है।

पूरा माजरा क्या है?

असल में, जस्टिस वर्मा पर पिछले कुछ महीनों से काफी गंभीर आरोप लग रहे हैं – न्यायिक प्रक्रिया में पक्षपात से लेकर नैतिक मानदंडों को ताक पर रखने तक। और सिर्फ विपक्ष ही नहीं, कानून के जानकार भी उनके फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं। मगर बात तब और गरमा गई जब रिजिजू ने रविवार को साफ-साफ कह दिया कि वो इस मुद्दे को संसद में उठाएंगे। सच बताऊं? उनके इस एक बयान ने दिल्ली की राजनीतिक गलियारों में भूचाल ला दिया!

अब तक क्या हुआ?

सूत्रों की मानें तो सरकार ने अब एक हाई-लेवल कमेटी बनाने का फैसला कर लिया है। इसमें सीनियर जज, कानूनी एक्सपर्ट और संसद के सदस्य शामिल होंगे। और हैरानी की बात ये कि उन्हें सिर्फ 30 दिनों में रिपोर्ट देनी है – यानी टाइम लिमिट तय है। हालांकि, impeachment पर अभी कोई आधिकारिक चर्चा तय नहीं हुई, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जल्द ही संसद में ये मुद्दा गरमा सकता है।

कौन क्या कह रहा है?

इस पूरे मामले पर अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय है। रिजिजू तो ये कहकर बचाव में हैं कि ये कदम जजों की जवाबदेही तय करने के लिए ज़रूरी है। वहीं विपक्ष वालों का कहना है कि ये सरकार की तरफ से न्यायपालिका पर दबाव बनाने की कोशिश है। कुछ तो इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई तक कह रहे हैं! कानून के जानकार भी दो गुटों में बंटे हुए हैं – एक तरफ जहां कुछ लोग इसे सही कदम मानते हैं, वहीं दूसरे पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं।

आगे क्या हो सकता है?

अगर कमेटी जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों को सही पाती है, तो impeachment की प्रक्रिया तेज़ हो सकती है। और यहीं से असली मुश्किल शुरू होगी – क्योंकि इससे सरकार और न्यायपालिका के बीच का तनाव और बढ़ेगा। राजनीतिक एक्सपर्ट्स की मानें तो अगले संसद सत्र में ये मुद्दा बड़ी बहस छेड़ सकता है। सोचिए, एक तरफ जहां न्यायपालिका की आज़ादी का सवाल है, वहीं दूसरी तरफ उसकी जवाबदेही का मुद्दा।

अंत में बस इतना कि ये मामला अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसके नतीजे बेहद गंभीर हो सकते हैं। आने वाले दिनों में ये पूरा प्रकरण न्यायपालिका और लोकतंत्र के रिश्तों को नए सिरे से परिभाषित कर सकता है। या फिर… क्या पता, ये सब सियासी दांव-पेंच ही निकले? वक्त ही बताएगा!

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Source: Hindustan Times – India News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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