हाईकोर्ट ने ED की जांच को हरी झंडी दिखाई, बिल्डर की याचिका धरी की धरी रह गई
दिल्ली हाईकोर्ट का ताजा फैसला सुनकर तो लगता है कि ED के हाथ और मजबूत हो गए हैं। कोर्ट ने IREO रेजिडेंसेज के खिलाफ चल रही जांच को जारी रखने की इजाजत दे दी है। और यही नहीं, याचिका दायर करने वाले गुलशन बब्बर पर तो कोर्ट ने सीधे 1.25 लाख रुपये का जुर्माना ठोक दिया! कारण? अदालत को पूरी जानकारी न देना। जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने साफ कहा कि यह कोई मामूली बात नहीं है – अगर आप कोर्ट को गुमराह करेंगे, तो सजा तो मिलेगी ही ना?
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। IREO पर मनी लॉन्ड्रिंग और निवेशकों को ठगने के आरोप लगे हैं। ED तो बस अपना काम कर रही थी। लेकिन गुलशन बब्बर ने कोर्ट में यही कहा कि ED पक्षपात कर रही है, इसलिए जांच पर नजर रखी जाए। पर कोर्ट को यह बात नहीं जमी। असल में, याचिकाकर्ता ने कुछ अहम बातें छुपाई थीं – और यही उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हुई।
हाईकोर्ट ने तो एक तरह से ED की पीठ थपथपाई है। जस्टिस अरोड़ा ने साफ कहा कि जांच पूरी तरह कानूनी है, और याचिकाकर्ता का मकसद सिर्फ जांच को रोकना था। 1.25 लाख का जुर्माना? यह तो एक संदेश है पूरे रियल एस्टेट सेक्टर के लिए। अब देखना यह है कि गुलशन बब्बर दो हफ्ते में यह रकम जमा करते हैं या नहीं।
ED वालों का तो मूड ही बदल गया होगा! उनके प्रवक्ता ने कहा भी कि यह फैसला उनकी पारदर्शिता को साबित करता है। वहीं दूसरी ओर, गुलशन बब्बर चुप्पी साधे हुए हैं – शायद अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे? और निवेशक? उनकी प्रतिक्रिया दिलचस्प है – कुछ खुश हैं, तो कुछ का IREO से भरोसा उठ गया लगता है।
अब सवाल यह है कि आगे क्या? ED के पास तो अब खुला खेलने का मौका मिल गया है। अगर जांच में कुछ बड़ा पकड़ में आया, तो IREO के टॉप लोगों को हाथकड़ी लगते देर नहीं लगेगी। या फिर प्रॉपर्टी सीज हो सकती है। सच कहूं तो, यह केस अब रियल एस्टेट सेक्टर में भूचाल ला सकता है। पारदर्शिता की बहस तो शुरू हो ही चुकी है।
तो समझ लीजिए, हाईकोर्ट ने ED को पूरी बैकिंग दे दी है। और याचिकाकर्ता? उन्हें तो भारी जुर्माने का झटका लगा है। अब सबकी नजर ED पर टिकी है – आखिरकार वे अगला कदम क्या उठाते हैं? और क्या यह मामला सेक्टर के नियम ही बदल देगा? वक्त ही बताएगा।
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ED जांच और हाईकोर्ट का फैसला: आपके सारे सवालों के जवाब, बिना लाग-लपेट के!
हाईकोर्ट ने ED जांच पर निगरानी की मांग क्यों ठुकरा दी?
देखिए, हाईकोर्ट ने याचिका इसलिए खारिज कर दी क्योंकि उन्हें लगा कि ED अपना काम ठीक से कर रही है। असल में, अभी तक ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला था जो बिल्डर के खिलाफ निगरानी की मांग को जायज़ ठहराता। सोचिए, अगर हर याचिका पर रोक लगाने लगेंगे तो investigative agencies काम कैसे करेंगी? लेकिन यहां एक बात गौर करने वाली है – अभी तक कोई सबूत नहीं मिला, इसका मतलब यह नहीं कि भविष्य में भी नहीं मिलेगा।
क्या अब बिल्डर ED की पकड़ से बच निकलेगा?
बिल्कुल नहीं! हाईकोर्ट के फैसले का मतलब सिर्फ इतना है कि जांच जारी रहेगी। अब ED और खुलकर काम कर सकती है। और अगर उन्हें कुछ गड़बड़ मिलती है – जैसे कि black money, benami deals या money laundering के सबूत – तो बिल्डर के लिए मुसीबत तय है। Legal action तो होगा ही, हो सकता है properties भी फ्रीज हो जाएं। एक तरह से देखें तो अभी गेम खत्म हुआ नहीं, बल्कि और इंटरेस्टिंग हो गया है!
ED जांच में असल में होता क्या है? समझिए आसान भाषा में
अरे भई, ED की जांच कोई साधारण income tax raid तो है नहीं! इसमें पूरी financial history उघड़कर सामने आती है। सोचिए जैसे कोई detective financial transactions, property deals और money laundering के सभी documents को microscope से देख रहा हो। और सबसे दमदार बात? ED को यह अधिकार है कि वो suspect के bank accounts, properties और other assets पर ताला जड़ सकती है। एकदम ज़बरदस्त। सच में।
क्या हाईकोर्ट के फैसले के बाद बिल्डर के पास कोई और विकल्प बचा है?
तकनीकी रूप से तो हां… Supreme Court में appeal का रास्ता खुला है। लेकिन यहां मामला इतना आसान नहीं। बिल्डर को यह साबित करना होगा कि हाईकोर्ट का फैसला गलत था या फिर कोई नया सबूत सामने आया है। ईमानदारी से कहूं तो, बिना मजबूत legal grounds के Supreme Court जाना तो बस पैसे और समय की बर्बादी होगी। पर अमीर लोगों के लिए तो यह भी एक strategy ही होती है ना – delay करने की!
Source: Times of India – Main | Secondary News Source: Pulsivic.com