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हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश का कहर: 15 दिन में 69 मौतें, 37 लापता, 495 करोड़ का नुकसान

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हिमाचल प्रदेश में बारिश का कहर: 15 दिन में 69 जानें, सैकड़ों करोड़ का नुकसान

अभी तो हिमाचल में बारिश का मौसम शुरू ही हुआ था, लेकिन प्रकृति ने ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि पूरा राज्य हिल गया। सच कहूं तो ये सिर्फ बारिश नहीं, एक तरह की प्राकृतिक आफत है। जून के आखिर से लेकर अब तक सिर्फ 15 दिनों में 69 लोगों की जान चली गई – ये आंकड़ा सुनकर दिल दहल जाता है। और हैरानी की बात ये कि अभी भी 37 लोग लापता हैं। मंडी जिले की हालत तो सबसे खराब है – वहां अकेले 20 मौतें!

असल में देखा जाए तो हिमाचल की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है। पहाड़ों पर बसा ये राज्य हमेशा से मॉनसून में संवेदनशील रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में तो मानो स्थिति बदतर ही होती जा रही है। क्यों? दो मुख्य वजहें हैं – एक तो climate change का असर, दूसरा बेतरतीब construction। अभी तो शिमला-कालका हाईवे समेत कई बड़े रास्ते बंद पड़े हैं। नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

राज्य आपदा प्रबंधन की रिपोर्ट पढ़कर तो लगता है जैसे कोई disaster movie का सीन देख रहे हों। 495 करोड़ से ज्यादा का नुकसान! ये सिर्फ एक आंकड़ा नहीं – इसके पीछे सैकड़ों परिवारों की जिंदगी बर्बाद हुई है। सड़कें, पुल, घर, खेत – सब कुछ तबाह। NDRF की टीमें दिन-रात मेहनत कर रही हैं, लेकिन मुश्किल ये कि कई इलाकों तक पहुंचना ही नामुमकिन हो रहा है।

सीएम सुक्खू जी ने कहा है कि वो पीड़ितों के साथ हैं। ठीक है, ये तो कहना ही होगा। लेकिन मंडी के एक गांव वाले का सवाल मुझे ज्यादा अहम लगा – “अब तो रास्ता ही नहीं बचा। क्या सरकार सिर्फ राहत देकर छोड़ देगी, या कोई स्थायी हल निकालेगी?” पर्यावरणविद् डॉ. राजीव शर्मा की बात तो और भी चौंकाने वाली है – उनका कहना है कि illegal construction और पेड़ों की कटाई ने इस मुसीबत को दावत दी है। सच्चाई ये है कि हम development और ecology के बीच संतुलन भूल गए हैं।

अब सवाल ये है कि आगे क्या? मौसम विभाग ने अगले दो दिन और भारी बारिश की चेतावनी दी है। सरकार मुआवजे और temporary shelter की बात कर रही है – ये तो ठीक है। लेकिन long term solution? वो अभी भी planning stage में ही लगता है। भूस्खलन रोकने के उपाय, better disaster management – ये सब बातें तो हर बार होती हैं। क्या इस बार कुछ अलग होगा? केंद्र से funds की उम्मीद है, पर क्या पैसा ही काफी है? सच तो ये है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की कीमत हमें चुकानी पड़ रही है।

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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