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यमन में निमिषा प्रिया की जान कैसे बचा सकता है शरिया कानून का ‘ब्लड मनी’ प्रावधान?

यमन में निमिषा प्रिया की जिंदगी की उम्मीद: क्या ‘Blood Money‘ चमत्कार कर पाएगा?

यमन की अदालत ने भारतीय नर्स निमिषा प्रिया को फांसी की सजा सुना दी थी… पर अभी थोड़ी राहत मिली है। सजा पर रोक लग गई है। अब बचने का एक ही रास्ता है – शरिया कानून के तहत ‘Blood Money’ यानी रक्त धन का भुगतान। सुनने में अजीब लगता है न? पर इस्लामी कानून में यह प्रावधान है कि पीड़ित परिवार को मुआवजा देकर सजा से बचा जा सकता है। ये केवल एक नर्स की जान का सवाल नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून की उलझनों को भी दिखाता है।

क्या हुआ था असल में? एक नर्स की कहानी

कहानी कुछ यूं है – निमिषा प्रिया यमन में नर्सिंग कर रही थीं। अचानक एक यमनी नागरिक की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद? फांसी की सजा! यमन में तो शरिया कानून चलता है, जहां हत्या के लिए ‘किसास’ यानी बदले की सजा होती है। लेकिन यहीं एक दिलचस्प बात – इसी कानून में ‘दिया’ यानी Blood Money का विकल्प भी है। पीड़ित वाले अगर माफ कर दें तो सजा टल सकती है। पर सवाल यह है कि क्या वे मानेंगे?

अभी क्या चल रहा है? रेस अगेंस्ट टाइम

फांसी पर रोक लगी है, यह तो अच्छी खबर है। भारत सरकार और यमन अधिकारियों की बातचीत का नतीजा। पर असली चुनौती अब शुरू होती है – Blood Money जुटाना। भारत सरकार से लेकर NRI समुदाय तक सभी जुटे हैं। पर याद रखिए, सिर्फ पैसा काफी नहीं। पीड़ित परिवार की मंजूरी जरूरी है। और यही सबसे मुश्किल हिस्सा है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं किसी को अपने प्रियजन की हत्या माफ करने के लिए मनाना कितना कठिन होगा?

कौन क्या कह रहा है?

भारत सरकार पूरे मामले को गंभीरता से ले रही है। विदेश मंत्रालय यमन से लगातार बात कर रहा है। निमिषा के परिवार ने तो सोशल मीडिया से लेकर हर जगह मदद की गुहार लगा दी है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन भी यमन सरकार पर दबाव बना रहे हैं। पर सच तो यह है कि यह केस कानून और इंसानियत के बीच झूल रहा है। क्या जीतेंगे कानून के कड़े नियम या मानवीय संवेदनाएं?

आगे क्या? एक अनिश्चित भविष्य

दो ही रास्ते हैं – या तो Blood Money का समझौता हो जाए और निमिषा बच जाएं, या फिर… नहीं सोचना चाहते। भारत सरकार पूरी कोशिश कर रही है, पर समय कम है। यमन की अदालतें जल्द फैसला सुनाने के लिए जानी जाती हैं। और तो और, यह मामला दो अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाओं के बीच फंसा हुआ है।

सच कहूं तो, यह पूरा मामला दिल दहला देने वाला है। एक तरफ एक मासूम नर्स की जिंदगी, दूसरी तरफ कानून की पेचीदगियां। अभी सभी की नजरें उस Blood Money पर टिकी हैं जो शायद निमिषा को दूसरा मौका दे सके। वक्त बहुत कम है, और हर पल कीमती। क्या हम इंसानियत की जीत देख पाएंगे? बस यही उम्मीद है।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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