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सिंधु जल समझौता रोकने से पाकिस्तान बौखलाया, भारत का नया प्लान – शहबाज सरकार फंसी!

सिंधु जल समझौता: भारत का पानी वाला गेम और पाकिस्तान की बौखलाहट!

अरे भाई, क्या बताऊं… भारत ने तो पाकिस्तान के साथ पानी का खेल शुरू कर दिया है! हाल ही में सिंधु जल समझौते के तहत जो पानी पाकिस्तान को जाता था, उस पर भारत ने ब्रेक लगा दिया है। और सच कहूं तो, इसका असर ऐसा हुआ है जैसे किसी की नसों में सुई चुभो दी हो। पाकिस्तानी सरकार तो मानो बैठे-बिठाए आग लगा बैठी। लेकिन यार, इतना ही नहीं… भारत ने किश्तवाड़ में चिनाब नदी पर क्वार बांध प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। 3119 करोड़ रुपये का ये प्रोजेक्ट पाकिस्तान की नींद उड़ा देगा, ये तो तय है। सीधा सा मतलब – अब भारत अपने पानी का पूरा हक लेने वाला है।

पानी की लड़ाई की असली कहानी

देखो यार, ये सारा झगड़ा 1960 के उस सिंधु जल समझौते से शुरू होता है। विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ ये समझौता… जिसमें पानी बांटने के नियम तय किए गए थे। पर सच तो ये है कि पाकिस्तान को हमेशा से ही भारत की जलविद्युत परियोजनाओं से दिक्कत रही है। चाहे बगलिहार बांध हो या किशनगंगा प्रोजेक्ट – हर बार वो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर रोना रोते हैं। लेकिन हैरानी की बात ये कि भारत हर बार ये साबित कर देता है कि वो नियमों के दायरे में ही काम कर रहा है। और अब ये क्वार बांध… ये तो जैसे चेकमेट जैसा मूव है!

अब तक क्या हुआ?

तो सुनो… अभी-अभी खबर आई है कि भारत सरकार ने क्वार बांध प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी है। 540 मेगावाट बिजली पैदा करने वाला ये प्रोजेक्ट… और जैसे ही ये खबर फैली, पाकिस्तान का रिएक्शन? “ये समझौते का उल्लंघन है!” वैसे हमारे वॉटर रिसोर्स मिनिस्ट्री का कहना है कि सब कुछ नियमों के हिसाब से है। पर सच पूछो तो… ये सिर्फ पानी की बात नहीं है। ये तो एक तरह का साइकोलॉजिकल वॉर है, है न?

किसका बढ़ेगा दबाव?

अब स्थिति ये है कि दोनों तरफ से बयानबाजी शुरू हो गई है। पाकिस्तान का कहना है कि वो इसे विश्व बैंक और ICJ में ले जाएगा। हमारा साफ जवाब – “हमारा प्रोजेक्ट पूरी तरह कानूनी है।” पर यार, एक मजेदार बात… कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये सब आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बातचीत के लिए मजबूर करने की रणनीति हो सकती है। सोचने वाली बात है न?

आगे क्या होगा?

तो अब सवाल ये उठता है कि आगे का गेम क्या होगा? पाकिस्तान तो अपनी रिकॉर्ड तोड़ आदत के मुताबिक ICJ का रुख करेगा। लेकिन याद रखो, भारत पहले भी ऐसे मामलों में अपनी बात रख चुका है। और हां… पाकिस्तान की आर्थिक हालत तो पहले से ही डांवाडोल है। ऊपर से अगर पानी का संकट आ गया तो? किसानों का क्या होगा? असल में ये पानी की लड़ाई से कहीं ज्यादा बड़ा मामला बन चुका है।

एक बात तो तय है – सिंधु जल समझौता अब सिर्फ कागजों की बात नहीं रहा। ये तो दोनों देशों के बीच तनाव का नया अध्याय बन गया है। भारत अपने हक की बात कर रहा है, पाकिस्तान रोना रो रहा है। पर ये तो वक्त ही बताएगा कि आखिरकार पानी किसके हिस्से आता है। वैसे मेरी निजी राय? जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर गंभीर नहीं होता, तब तक भारत को अपने हक से पीछे नहीं हटना चाहिए। आप क्या सोचते हैं?

यह भी पढ़ें:

सिंधु जल समझौता और पाकिस्तान की बौखलाहट – क्या है पूरा माजरा?

1. सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) – ये है हमारी जान!

देखिए, 1960 का वो agreement जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के पानी का बँटवारा तय किया। असल में, ये सिर्फ एक कागज नहीं, बल्कि दोनों देशों की agriculture और economy की रीढ़ है। सोचिए, अगर ये समझौता न होता तो? शायद आज हालात और भी खराब होते। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये समझौता आज भी उतना ही प्रासंगिक है?

2. भारत ने अचानक समझौते को लेकर ऐसा क्यों सोचा?

ईमानदारी से कहूं तो, ये कोई impulsive decision नहीं है। जब पाकिस्तान की तरफ से cross-border terrorism का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा, तो भारत के पास इसका जवाब देने के limited options हैं। और पानी… वो तो एकदम ज़बरदस्त हथियार है। सच कहूं तो, ये एक masterstroke है। लेकिन क्या ये सही है? इस पर बहस हो सकती है।

3. पाकिस्तान का बौखलाना – मजबूरी या नाटक?

अब यहां दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान की पूरी economy इस पानी पर टिकी है। सच पूछो तो, उनके खेत सूख जाएंगे, बिजली गुल हो जाएगी… समझदार लोग तो पहले ही कह रहे थे कि terrorism के खेल का यही अंजाम होगा। पर सवाल ये है कि क्या वाकई भारत पानी रोक देगा? या सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति है?

4. शहबाज शरीफ की मुश्किलें – गधे के सिर से सींग तोड़ना!

हालात देखिए – एक तरफ तो economy डूब रही है, दूसरी तरफ army और आतंकियों का दबाव। और अब ये पानी का संकट! शहबाज सरकार के लिए ये ऐसा है जैसे गधे के सिर से सींग तोड़ना। न तो वो भारत से बातचीत कर पा रहे हैं, न ही अपने लोगों को कोई ठोस आश्वासन दे पा रहे हैं। सच कहूं तो, ये उनकी खुद की बनाई हुई मुसीबत है।

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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