Site icon surkhiya.com

“भारत रूस से कौन-कौन से हथियार खरीद सकता है? अमेरिका की चिंता बढ़ी, क्या ट्रंप लगाएंगे प्रतिबंध?”

india russia arms deal usa sanctions trump reaction 20250630193052453514

भारत रूस से कौन-कौन से हथियार खरीद सकता है? अमेरिका की चिंता बढ़ी, क्या ट्रंप लगाएंगे प्रतिबंध?

देखिए, भारत और रूस का रक्षा गठजोड़ अब कोई नई बात नहीं है। पर हाल की बात करें तो राजनाथ सिंह और रूसी रक्षा मंत्री की मुलाकात ने चर्चाओं को नया मोड़ दे दिया है। नए हथियार? उन्नत टेक्नोलॉजी? बातचीत में ये सब शामिल था। लेकिन साथ ही, अमेरिका ने CAATSA का डंडा दिखाकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सच कहूं तो, यह मामला उतना सीधा नहीं जितना लगता है।

मामले की पृष्ठभूमि: थोड़ा पीछे चलते हैं

भारत-रूस रक्षा दोस्ती की कहानी तो 70 के दशक से चली आ रही है। S-400 हो या सुखोई विमान – ये सिर्फ हथियार नहीं, हमारी सुरक्षा का बैकबोन बन चुके हैं। पर अब अमेरिका का CAATSA वाला दबाव… समझने वाली बात ये है कि एक तरफ तो हम अपनी जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं, दूसरी तरफ अमेरिका के साथ संबंध भी महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में भारत ने जो ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की बात की है, वो सिर्फ शब्द नहीं, एक बड़ा स्टैंड है।

मुख्य अपडेट: अब तक क्या हुआ?

अभी हाल में क्या चल रहा है? भारत S-500 जैसी नई टेक्नोलॉजी पर नजर गड़ाए बैठा है। S-400 का बड़ा भाई समझ लीजिए। सुखोई विमानों की अगली खेप, कामोव हेलीकॉप्टर, और नौसेना के लिए नई टेक्नोलॉजी – ये सभी डिस्कशन टेबल पर हैं। पर यहां मजा खराब करने आया है अमेरिका का वही CAATSA वाला मुद्दा। हालांकि… और ये बड़ा हालांकि है… ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया है कि शायद छूट मिल जाए। शर्त? “अमेरिकी हथियारों को प्राथमिकता दो।” सीधे शब्दों में कहें तो – ‘हमारा सामान खरीदो, तो बात बने।’

प्रतिक्रियाएं: कौन क्या कह रहा है?

इस पूरे मामले पर अलग-अलग लोगों की क्या राय है? भारतीय रक्षा मंत्रालय का स्टैंड साफ है – “सुरक्षा पहले।” अमेरिका कह रहा है – “नियम तो नियम हैं, पर हम भारत को खोना नहीं चाहते।” रूस? वो तो भारत को अपना ‘विश्वसनीय साझेदार’ बता रहा है। एकदम मधुर संगीत की तरह। पर असली सवाल ये है कि दिल्ली में बैठे रक्षा विशेषज्ञ क्या सोचते हैं? उनका मानना है कि अमेरिकी दबाव में आने से हमारी तैयारियों को झटका लग सकता है। और ये झटका हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।

आगे की राह: क्या होगा अब?

अगले कुछ महीनों में क्या-क्या हो सकता है? पहला, भारत-रूस डील फाइनल हो सकती है। दूसरा, अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता है – जिसका मतलब F-21 और Apache हेलीकॉप्टर जैसी डीलों पर संकट। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण – भारत को एक ऐसी रणनीति चाहिए जो दोनों तरफ के रिश्तों को संभाल सके। थोड़ा नाजुक संतुलन है ये। पर जैसा कि हम जानते हैं, भारत ने पहले भी ऐसे मौकों पर सही कदम उठाए हैं। शायद इस बार भी वही होगा।

यह भी पढ़ें:

भारत-रूस हथियार डील: अमेरिका की चिंता और हमारी मुश्किलें

अरे भाई, ये S-400 वाली कहानी तो अब सूपरहिट हो चुकी है! लेकिन असल में मामला क्या है? आइए बिना पॉलिटिकल जार्गन के समझते हैं – जैसे दोस्तों के बीच चाय की चुस्कियों के साथ बातचीत होती है वैसे।

रूस से क्या-क्या खरीद सकता है भारत?

देखो, हमारी shopping list थोड़ी जबरदस्त है। S-400 तो जैसे मोबाइल में latest iPhone जैसा है – missile defence का बेस्ट। फिर AK-203 rifles… वो भी ऐसे जैसे आपके पुराने मारुति 800 को अचानक नया Brezza मिल जाए। सुखोई और मिग तो हमारे पुराने प्यारे दोस्त हैं न? पर सच कहूं तो aircraft carrier वाली बात अभी थोड़ी कन्फ्यूजिंग लगती है।

अमेरिका का दिल क्यों धड़क रहा है?

असल में बात ये है कि अंकल सैम को अपने CAATSA के नियमों की फिक्र है। समझ लीजिए जैसे आपके घर में कोई नया नियम बने कि “दुश्मन के यहां से सामान नहीं खरीदोगे”, और आप खरीद लें… तो? हालांकि यहां दुश्मन वाली बात थोड़ी कॉम्प्लिकेटेड है। ईमानदारी से कहूं तो अमेरिका को लगता है कि हम उसके दुश्मन (रूस) को पैसे दे रहे हैं।

क्या ट्रंप साहब हमें सजा दे देंगे?

तकनीकी तौर पर तो हां… पर असल में? उतना आसान नहीं। क्योंकि भारत अब वो बच्चा नहीं जिसे कोई भी डांट दे। हमारे यहां के experts कहते हैं कि अमेरिका हमें strategic partner मानता है। मतलब? शायद कुछ छूट मिल जाए। पर ये भी समझ लीजिए – अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कुछ भी fixed नहीं होता!

हमारे पास आखिर क्या विकल्प हैं?

देखा जाए तो दो ही रास्ते हैं – या तो अमेरिका से बात करके middle path निकालें (जैसे हमारे यहां हर पारिवारिक झगड़े का हल निकलता है), या फिर रूस के साथ अपना पुराना रिश्ता जारी रखें। पर याद रखिए – हमारी foreign policy का मूल मंत्र है “strategic autonomy”… मतलब? अपने फैसले खुद लेना। थोड़ा तनाव होगा, थोड़ा बैलेंस करना पड़ेगा… पर यही तो है असली गेम!

कुल मिलाकर? ये कोई simple सा खरीदारी का मामला नहीं है। इसमें दोस्ती, राजनीति, और राष्ट्रीय सुरक्षा – सबका तालमेल बैठाना है। आपको क्या लगता है – हमें किस रास्ते पर चलना चाहिए?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

Exit mobile version