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9 जुलाई की डेडलाइन खत्म! भारत-अमेरिका ट्रेड डील पर अब क्या होगा? ट्रंप का दबाव vs भारत की अड़

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9 जुलाई की डेडलाइन गुज़र गई, पर भारत-अमेरिका डील अभी भी हवा में?

क्या आपने भी नोटिस किया? 9 जुलाई की डेडलाइन तो खत्म हो चुकी है, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच यह ट्रेड डील वाला मामला अभी भी अधर में लटका हुआ है। अमेरिका वालों ने तो हम पर टैरिफ लगाने की धमकी भी दे डाली थी, और उसके बाद से बातचीत का दौर चल निकला। पर यार, इतने राउंड्स के बाद भी कोई हल नहीं निकला! अब हमारी टीम फिर से वाशिंगटन पहुँच गई है, मगर स्थिति अभी भी क्लाउडी ही है।

पूरा माजरा क्या है?

ये सारा झगड़ा तब शुरू हुआ जब अमेरिका ने हम पर “अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज” का इल्ज़ाम लगाया। उनका कहना है कि हमने कुछ सेक्टर्स में उनकी कंपनियों को पर्याप्त एक्सेस नहीं दी। सच कहूँ तो, ये आरोप थोड़े हवा-हवाई लगते हैं। हमने तो जवाब में उन पर प्रतिशोधात्मक टैरिफ लगाने की बात कही थी, लेकिन इसे टालते रहे।

और भी है! जीएसपी (Generalized System of Preferences) का मसला तो दोनों देशों के बीच टेंशन का बड़ा कारण बना हुआ है। पिछले साल अमेरिका ने हमें जीएसपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया, जिससे हमारे एक्सपोर्टर्स को काफी नुकसान हुआ। ये स्कीम हमें अमेरिकी मार्केट में कुछ प्रोडक्ट्स टैरिफ-फ्री भेजने की छूट देती थी।

अब क्या चल रहा है? प्रेशर बढ़ता जा रहा है

इस वक्त हमारे कॉमर्स मिनिस्ट्री का एक टॉप-लेवल डेलीगेशन वाशिंगटन में अमेरिकी अधिकारियों से बातचीत कर रहा है। ट्रंप साहब ने तो फिर से “फेयर ट्रेड डील” की मांग कर डाली है, और टैरिफ की धमकी भी दोहरा दी। उनका कहना है कि हमें अपने मार्केट को और खोलना होगा।

पर हमारी सरकार ने साफ कर दिया है – “नेशनल इंटरेस्ट” से कोई समझौता नहीं होगा। हमारे नेगोशिएटर्स का स्टैंड क्लियर है – डील सिर्फ इक्वल फुटिंग पर ही होगी। और सच तो ये है कि हमने पहले ही कई सेक्टर्स में सुधार करके अमेरिकी कंपनियों को काफी ऑपर्चुनिटीज दी हैं।

एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?

ट्रेड एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर जल्दी कोई समाधान नहीं निकला, तो स्थिति ट्रेड वॉर तक जा सकती है। CII ने चिंता जताई है कि फार्मास्यूटिकल्स, ज्वैलरी और इंजीनियरिंग गुड्स सेक्टर के एक्सपोर्टर्स को भारी नुकसान हो सकता है।

अमेरिकी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव का कहना है कि वो “बैलेंस्ड डील” चाहते हैं, लेकिन इसके लिए हमें भी कुछ छोड़ना होगा। कुछ एनालिस्ट्स का मानना है कि अमेरिका अपने इलेक्शन ईयर में है, इसलिए ज्यादा प्रेशर बना रहा है।

आगे क्या? दो रास्ते…

अगर बात बन जाए, तो एक नया ट्रेड डील हो सकता है जो हमारे एक्सपोर्ट्स को बूस्ट करेगा। जीएसपी जैसी सुविधाएँ भी वापस मिल सकती हैं।

लेकिन अगर डील फेल हो गई तो? अमेरिका टैरिफ लगा देगा, जिससे हमारी इकोनॉमी को झटका लगेगा। हमें भी काउंटर मेजर्स लेने पड़ सकते हैं। सबसे बड़ी टेंशन ये है कि ये मामला हमारे स्ट्रैटेजिक रिलेशनशिप को भी प्रभावित कर सकता है – खासकर चीन के साथ बढ़ते तनाव के इस दौर में जब हमें अमेरिकी सपोर्ट की सबसे ज्यादा जरूरत है।

असल में, ये सिर्फ ट्रेड का मसला नहीं रहा – ये तो हमारी साझेदारी की परीक्षा बन चुका है। आने वाले दिनों में होने वाली बातचीत ही तय करेगी कि भारत-अमेरिका रिश्तों का भविष्य किस राह पर जाएगा।

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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