जयशंकर का बयान: आपातकाल पर DNA टेस्ट और कुर्सी की सच्चाई!
अरे भाई, भारतीय राजनीति में फिर से आपातकाल की चर्चा गर्म हो गई है। और इस बार विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ऐसा बयान दिया है जिसने सियासत की चूलें हिला दी हैं। सच कहूं तो, उन्होंने 1975 के आपातकाल को “लोकतंत्र का सबसे अंधेरा वक्त” बताकर कांग्रेस को सीधे निशाने पर ले लिया। मजे की बात ये कि उन्होंने DNA टेस्ट और ‘कुर्सी का सच’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया – जो सुनने में तो मॉडर्न लगते हैं, लेकिन असल में सत्ता की भूख को बेहद खूबसूरती से उजागर करते हैं। ये कोई साधारण टिप्पणी नहीं, बल्कि इतिहास की धूल चाटने का न्यौता है!
वो दौर जब लोकतंत्र सांस ले भी नहीं पा रहा था
याद कीजिए 25 जून 1975 का वो दिन… जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया। भई, 21 महीने तक देश ने जो झेला, वो शायद ही कोई भूल पाए। अभिव्यक्ति की आजादी? गायब। विपक्ष? जेल में। अखबार? सेंसर हो चुके। और अब जयशंकर ने इस मुद्दे को तब उठाया है जब आपातकाल की 50वीं बरसी करीब आ रही है। संयोग? शायद नहीं। देखा जाए तो ये राजनीति का वो चाल है जिसमें इतिहास को वर्तमान के हिसाब से ढाला जा रहा है।
DNA टेस्ट से क्या निकला? जयशंकर की जबरदस्त दलीलें
असल में जयशंकर ने तीन बातें कहकर सियासत को हिला दिया:
- DNA टेस्ट वाली बात – मतलब साफ है कि कांग्रेस की सत्ता की भूख उसके जींस में ही है
- ‘कुर्सी का सच’ – यानी लोकतंत्र से ज्यादा अहम है सत्ता का सिंहासन
- सबसे जरूरी – ये मानसिकता आज भी कांग्रेस में जिंदा है
और सच कहूं तो, इन बातों में दम तो है। क्योंकि राजनीति में DNA बदलता नहीं, बस रूप बदलता है।
राजनीति गरमाई: किसने क्या कहा?
इस बयान के बाद तो मानो राजनीति की कड़ाही चूल्हे पर चढ़ गई। कांग्रेस वाले तो बिफर ही गए – “झूठ! प्रोपेगैंडा!” चिल्लाते हुए। वहीं भाजपा वालों ने जयशंकर को पूरा बैकअप दिया। पर सच तो ये है कि 2024 के चुनाव को देखते हुए ये सब एक सोची-समझी चाल लगती है। क्योंकि इतिहास को याद दिलाना हमेशा से वोट बैंक के लिए अच्छा रहा है। है न?
आगे क्या? राजनीति का क्रिस्टल बॉल
अब क्या होगा? देखिए:
- आपातकाल की 50वीं बरसी आने वाली है – तो बहस और तेज होगी ही
- संसद में हंगामा? हो सकता है, क्योंकि ये तो भारतीय राजनीति का पुराना शगल है
- सबसे बड़ी बात – ये बयान सिर्फ अतीत की बात नहीं, बल्कि आने वाले चुनावों को प्रभावित करेगा
एक बात तो तय है – ये बहस अभी खत्म होने वाली नहीं। और हमें बस ये देखना है कि ये इतिहास की किताब से निकलकर वर्तमान की सियासत को कैसे प्रभावित करती है।
सच तो ये है कि ये पूरा मामला हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र को हल्के में लेना कितना खतरनाक हो सकता है। पर सवाल ये है कि क्या हमारे नेता वाकई इतिहास से सबक लेते हैं? या फिर सत्ता की भूख हमेशा लोकतंत्र से ऊपर रहेगी? जवाब तो वक्त ही देगा…
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
जयशंकर ने आपातकाल के DNA टेस्ट पर क्या बोला? असल में क्या मतलब निकाला जा सकता है?
देखिए, जयशंकर जी ने जो कहा, वो सुनकर लगता है मानो कोई पुराना जख्म फिर से हरा हो गया हो। उनका कहना था कि आपातकाल का ये DNA टेस्ट… यानी असलियत की जांच… साफ दिखाती है कि उस वक्त की सरकार ने लोकतंत्र के साथ क्या किया। “Black chapter” शब्द का इस्तेमाल करना तो जैसे पूरी तस्वीर ही बयां कर देता है, है न? जब basic rights ही दबा दिए गए हों, तो समझिए कितना बुरा दौर रहा होगा।
कुर्सी का सच – जयशंकर ने जिसे छुआ, वो क्या दर्द है?
अब यहां बात हो रही है सत्ता की भूख की। जयशंकर ने बिल्कुल सही कहा – कुर्सी का सच यही है कि कुछ लोगों को power का नशा इतना चढ़ जाता है कि वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं। चाहे देश का नुकसान ही क्यों न हो! है न हैरानी की बात? पर सच तो यही है।
आज के दौर में आपातकाल का ये DNA टेस्ट क्यों मायने रखता है?
सुनिए, ये कोई पुरानी बातों को उछालने वाली चीज़ नहीं है। बल्कि एक warning है। जैसे कोई बुजुर्ग अपने अनुभव बता रहा हो कि “बेटा, ये गलतियां दोबारा न करना।” जयशंकर का संदेश साफ है – लोकतंत्र को मजबूत रखना है तो हमें, आम नागरिकों को, हमेशा alert रहना होगा। History repeat होने से रोकनी है न? तो सीख लेनी चाहिए।
जयशंकर ने ये बातें कहां और क्यों कहीं? Context समझिए
एक public event में, past की राजनीतिक गलतियों पर बात करते हुए उन्होंने ये उदाहरण दिए। आपातकाल हो या सत्ता का दुरुपयोग… ये सब उन्होंने इसलिए उठाया ताकि present और future में ऐसे हालात न बनें। सीधी सी बात है – गलतियों से सीखो, उन्हें दोहराओ मत। और ये message देने का तरीका भी कमाल का था, है न?
क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी बातें समय-समय पर याद दिलाते रहनी चाहिए? मैं तो यही सोचता हूँ।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com