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कांवड़ यात्रा विवाद: हर साल क्यों बढ़ रहा है बवाल? जानें पूरा मामला

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कांवड़ यात्रा विवाद: हर साल क्यों बढ़ रहा है बवाल? जानें पूरा मामला

अरे भाई, इस बार भी श्रावण के महीने में कांवड़ यात्रा को लेकर वही पुरानी कहानी दोहराई गई – विवाद, तनाव और न जाने क्या-क्या। सच कहूं तो, अब तो यह सालाना रूटीन सा लगने लगा है। कुछ राज्यों में तो हालात इतने खराब हो गए कि यात्री और प्रशासन आमने-सामने आ गए। और भई, पर्यावरण वालों की तो बात ही अलग है – प्लास्टिक waste और noise pollution को लेकर उनकी चिंता भी जायज है न? पर सवाल यह है कि आखिर हर साल यही नाटक क्यों दोहराया जाता है? क्या यह अब सिर्फ भक्ति भाव से आगे बढ़कर कुछ और ही बनता जा रहा है?

मामले की पृष्ठभूमि: परंपरा से विवाद तक

देखिए, कांवड़ यात्रा की परंपरा तो सचमुच पुरानी है – सदियों से चली आ रही है। श्रावण में शिव भक्त गंगाजल लेकर पैदल चलते हैं, और फिर इसे शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। पौराणिक कथा तो आप जानते ही होंगे – समुद्र मंथन वाली। जब शिवजी ने विष पी लिया था और उनके गले से लपटें निकलने लगी थीं, तब इंद्र ने बारिश करके उन्हें ठंडक पहुंचाई थी। इसीलिए तो श्रावण में जलाभिषेक की यह परंपरा शुरू हुई। बिल्कुल दिलचस्प बात है, है न?

पर यहां दिक्कत यह है कि पिछले कुछ सालों में इस यात्रा का असली स्वरूप ही बदल गया है। पहले यह एक शांत, साधारण सा धार्मिक अनुष्ठान हुआ करता था। अब? अब तो DJ, नाच-गाना, शराबखोरी – यहां तक कि कुछ जगहों पर तो ऐसे नज़ारे देखने को मिलते हैं जो बिल्कुल भी शिवभक्ति जैसा महसूस नहीं होने देते। कुछ लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि अब यह मामला धर्म से ज्यादा राजनीति और सामाजिक बहस का विषय बन चुका है। और सच कहूं तो, उनकी बात में दम भी लगता है।

हाल की घटनाएं: प्रतिबंध से लेकर हिंसा तक

इस बार तो कई राज्य सरकारों ने सख्ती दिखाई – DJ बैन कर दिए, ज्यादा शोर-शराबे पर रोक लगा दी। पर क्या हुआ? UP और हरियाणा में तो हालात बिगड़ ही गए। कहीं-कहीं तो यात्रियों और पुलिस में झड़पें हो गईं, लोग घायल हो गए। प्रशासन का कहना है कि law and order बनाए रखना जरूरी था। वहीं कुछ भक्तों को लगा कि यह उनकी धार्मिक आजादी पर हमला है। समझ नहीं आता कि किसकी बात सही है।

और भई, पर्यावरण वाली बात तो बिल्कुल नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती। गंगा किनारे प्लास्टिक bottles का अंबार लगा देखकर तो मन ही दुख जाता है। कई environmental activists सही कह रहे हैं – अगर ऐसे ही चलता रहा तो नदियों का क्या होगा?

विभिन्न पक्षों की प्रतिक्रिया

धर्म गुरुओं की बात सुनिए – “कांवड़ तो श्रद्धा की प्रतीक है, पर कुछ लोग इसे गलत तरीके से पेश कर रहे हैं।” दूसरी तरफ पर्यावरणविदों का स्पष्ट मत – “plastic pollution और noise pollution पर तुरंत लगाम लगाने की जरूरत है।”

प्रशासन भी अपनी जगह सही है – “हम भक्ति भावना का सम्मान करते हैं, पर guidelines तो बनाने ही पड़ेंगे न?” सचमुच, हर कोई अपनी-अपनी डफली बजा रहा है।

भविष्य की संभावनाएं: समाधान की राह

तो अब सवाल यह है कि आगे क्या? केंद्र और राज्य सरकारें नए guidelines ला सकती हैं, organized तरीके से यात्रा करवाने के लिए। कुछ experts का सुझाव तो बिल्कुल सही लगता है – awareness campaigns चलाए जाएं, लोगों को समझाया जाए कि भक्ति और पर्यावरण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।

और हां, राजनीति वालों को तो इस मुद्दे में सोने की खान नजर आ रही होगी। आने वाले elections में यह मुद्दा जरूर उछाला जाएगा, क्योंकि अब यह धर्म और समाज दोनों को छूने लगा है।

निष्कर्ष: संतुलन की जरूरत

एक बात तो तय है – कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व किसी से छिपा नहीं। पर आज के दौर में इसके नए रूप पर सवाल उठना भी स्वाभाविक है। असली चुनौती यही है कि भक्ति और जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे बैठाया जाए। क्या हम ऐसी व्यवस्था बना पाएंगे जहां शिवभक्ति और पर्यावरण दोनों का ख्याल रखा जा सके? यह सवाल न सिर्फ सरकारों के लिए है, बल्कि हम सभी के लिए भी। आखिरकार, समाज तो हम सबसे ही बनता है न?

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कांवड़ यात्रा विवाद: वो सवाल जो हर किसी के मन में हैं

1. कांवड़ यात्रा आखिर है क्या? और इतनी हलचल क्यों?

देखिए, कांवड़ यात्रा सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि भक्तों के लिए एक तरह की तपस्या है। सोचो, सावन की तपती धूप में पैदल चलकर गंगाजल लाना और फिर उसे शिवजी को चढ़ाना… ये उतना ही पवित्र है जितना कि हज या अमरनाथ यात्रा। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ आस्था का मामला है या फिर कुछ और?

2. विवाद की जड़ कहाँ है? सच्चाई क्या है?

असल में बात ये है कि कुछ लोग भक्ति और बदमाशी के बीच का फर्क भूल जाते हैं। DJ पर धार्मिक गाने बजाना एक बात है, लेकिन ट्रैफिक रोककर नाचना? सच कहूँ तो ऐसा व्यवहार न तो धर्म समझता है, न कानून। हालांकि, ये भी सच है कि ज्यादातर यात्री शांतिपूर्वक यात्रा करते हैं।

3. बैन कर देना चाहिए? सीधा सवाल, सीधा जवाब

नहीं भई नहीं! बैन तो बिल्कुल नहीं। ये तो वैसा ही होगा जैसे किसी बच्चे के शरारत करने पर उसे स्कूल से निकाल देना। समस्या परंपरा में नहीं, उसके पालन के तरीके में है। प्रशासन और यात्रियों दोनों को ही अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। वैसे भी, क्या हम भारतीय किसी चीज को बैन करके समस्या हल कर लेते हैं?

4. सुरक्षा? या सिर्फ दिखावा?

CCTV, ड्रोन, पुलिस बल… ये सब तो ठीक है। लेकिन क्या ये काफी है? असल में सुरक्षा तभी होगी जब यात्री खुद समझदारी से काम लेंगे। वैसे भी, technology से ज्यादा जरूरी है common sense। और हाँ, क्या कभी किसी ने ये गिना है कि इन सुरक्षा उपायों पर कितना पैसा पानी की तरह बहाया जाता है?

Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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