फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों का वो बयान जिसने सबको हिला दिया: ‘आज़ादी के लिए डर पैदा करो’
बात 14 जुलाई की है – फ्रांस का राष्ट्रीय दिवस। लेकिन इस बार बैस्टिल डे से पहले ही एक ऐसा बयान आ गया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जो कहा, उसे सुनकर लगा जैसे यूरोप में कोई बड़ा भूचाल आने वाला है। “स्वतंत्रता के लिए डर पैदा करो” वाली उनकी लाइन तो अब हर जगह चर्चा का विषय बन गई है। और हाँ, रक्षा बजट दोगुना करने का वादा तो ऐसा है जैसे किसी ने राजनीतिक तालाब में बड़ा पत्थर फेंक दिया हो!
यूरोप की चिंता: सिर्फ मैक्रों की बात नहीं
अब सवाल यह है कि मैक्रों अचानक इतने डरावने बयान क्यों दे रहे हैं? असल में, यह कोई एकदम से उठाई गई बात नहीं है। पिछले कुछ सालों से यूरोप की हवा में तनाव का जहर घुल रहा है – यूक्रेन-रूस वाला मामला हो, चीन का बढ़ता दबदबा हो, या फिर मध्य पूर्व का पुराना घाव। फ्रांस, जो खुद यूरोपीय संघ का अहम सदस्य है, इन सबके बीच अपनी सुरक्षा नीतियों पर नए सिरे से सोच रहा है। मैक्रों तो पहले भी ‘यूरोपीय संप्रभुता’ की बात कर चुके हैं। लेकिन अब उन्होंने बजट बढ़ाने का ऐलान कर दिया है – GDP का 2% से 4% तक! अगर ऐसा हुआ तो फ्रांस यूरोप का सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश बन जाएगा। क्या यह सही दिशा में उठाया गया कदम है? देखना दिलचस्प होगा।
“डर पैदा करो” वाली लाइन ने मचाई खलबली
मैक्रों का वो वाक्य – “हमें स्वतंत्रता के लिए डर पैदा करना होगा” – सुनकर तो लगता है जैसे कोई थ्रिलर मूवी का डायलॉग हो। पर यहाँ मजाक की बात नहीं है। उन्होंने फ्रांसीसी जनता से ‘सामूहिक जागरूकता’ की बात की है। साथ ही ‘बलिदान’ शब्द का इस्तेमाल करके उन्होंने साफ संदेश दे दिया है कि अब हालात गंभीर हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं? एकदम मिली-जुली। NATO ने इसे सराहा तो रूस ने इसे ‘आक्रामकता’ बताया। सच कहूँ तो, दोनों के अपने-अपने एजेंडे हैं ना?
फ्रांस में शुरू हुई नई बहस
अब घरेलू राजनीति की बात करें तो… विपक्ष तो मैक्रों पर टूट ही पड़ा है। ‘अनावश्यक भय फैलाने’ का आरोप लग रहा है। वहीं सत्तापक्ष इसे ‘दूरदर्शी नेतृत्व’ बता रहा है। सोशल मीडिया पर #MacronFear ट्रेंड कर रहा है – कुछ लोग इसे सच्चाई बता रहे हैं तो कुछ इसे युद्ध की तैयारी। मजे की बात यह कि फ्रांसीसी सेना के पुराने जवानों ने इसका समर्थन किया है। शायद उन्हें पता है कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है?
आगे क्या? बड़ा सवाल!
अब सबकी नजर फ्रांस की संसद पर है। यह रक्षा बजट पास होगा या नहीं? विपक्ष तो education और healthcare पर खर्च करने की मांग करेगा ही। लेकिन अगर यह प्रस्ताव पास हो गया तो… समझ लीजिए, पूरा यूरोप इससे प्रभावित होगा। दूसरे देश भी अपने बजट बढ़ाने लगेंगे। NATO और रूस के बीच का तनाव और बढ़ेगा। ईमानदारी से कहूँ तो, मैक्रों ने कोई साधारण भाषण नहीं दिया है। यह तो एक बड़ी रणनीति का हिस्सा लगता है – जहाँ यूरोप को वैश्विक स्तर पर मजबूत बनाने की कोशिश हो रही है। पर सवाल यह है कि क्या यह कोशिश सफल होगी, या फिर नए संकटों को जन्म देगी? वक्त ही बताएगा।
एक बात तो तय है – अब यूरोप की राजनीति में मैक्रों ने ऐसा तूफान खड़ा कर दिया है जिसकी लहरें लंबे समय तक महसूस की जाएंगी। और हम? हम तो बस popcorn लेकर बैठे हैं यह देखने के लिए कि आगे क्या होता है!
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मैक्रों का वो बयान जिसने यूरोप को हिला दिया: ‘आज़ादी के लिए डर पैदा करो’ और रक्षा बजट का पूरा माजरा
1. मैक्रों ने ‘आज़ादी के लिए डर पैदा करो’ जैसी चौंकाने वाली लाइन क्यों दी?
देखिए, मैक्रों का ये बयान कोई आम राजनीतिक भाषण नहीं था। असल में, पूरे यूरोप में एक तरह की ढीलापन आ गया है – लगता है जैसे सुरक्षा को लेकर लोगों ने हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मैक्रों का पॉइंट साफ है: अगर यूरोप को वाकई आज़ाद रहना है, तो उसे अपनी सुरक्षा खुद संभालनी होगी। और ये ‘डर’ वाली बात? ये कोई धमकी नहीं, बल्कि एक जगाने वाला अलार्म है। जैसे आप रोज़ सुबह अलार्म बजने से नफ़रत करते हैं, लेकिन वो आपको ऑफिस के लिए तैयार होने पर मजबूर कर देता है। बिल्कुल वैसा ही!
2. 2030 तक रक्षा बजट दोगुना? ये फ्रांस क्या सच में कर पाएगा?
अब यहाँ मज़ेदार बात ये है कि मैक्रों सिर्फ़ बजट बढ़ाने की बात नहीं कर रहे। उनका फोकस है – स्मार्ट खर्च। साइबर सुरक्षा, स्पेस टेक्नोलॉजी, नए ज़माने के हथियार… यानी वो चीज़ें जहाँ आज पैसा लगाया, कल दस गुना रिटर्न मिले। पर सवाल ये उठता है – क्या फ्रांस की अर्थव्यवस्था इतना बोझ झेल पाएगी? मेरा ख़याल है, शायद इसीलिए उन्होंने 2030 की डेडलाइन दी है – धीरे-धीरे, पर निश्चित तौर पर।
3. यूरोप के दूसरे देशों पर क्या असर पड़ेगा? क्या सब मैक्रों की राह पर चल पड़ेंगे?
असल में देखा जाए तो ये बयान सिर्फ़ फ्रांस के बारे में नहीं है। ये एक तरह का पैन-यूरोपियन मैसेज है। जर्मनी हो या इटली – सबके लिए एक इशारा है कि ‘भाइयो, अब हाथ पर हाथ रखकर बैठने का वक़्त नहीं है’। NATO और EU में तो इस पर बहस होनी ही है। और रूस-चीन? उनके लिए ये एक साफ़ चेतावनी है – अब यूरोप सिर्फ़ अमेरिका पर निर्भर नहीं रहेगा। पर क्या सच में सब देश इतनी जल्दी बदलाव के लिए तैयार होंगे? ये देखना दिलचस्प होगा।
4. कहीं ये कदम वैश्विक तनाव न बढ़ा दे? Arms race की नई शुरुआत तो नहीं?
ईमानदारी से कहूँ तो, ये डर बिल्कुल वाजिब है। जब कोई बड़ी ताकत अपनी सेना बढ़ाती है, तो दूसरे भी ऐसा ही करने लगते हैं – ये तो प्रकृति का नियम है। लेकिन मैक्रों का तर्क समझ में आता है – कभी-कभी मज़बूत होना ही शांति का एकमात्र रास्ता होता है। जैसे घर में अच्छी ताला-चाबी हो तो चोर का डर कम हो जाता है। फ्रांस की कोशिश है कि वो इतना मज़बूत हो कि कोई उससे टकराने की हिम्मत ही न करे। पर सवाल ये है कि क्या ये संतुलन बन पाएगा? या फिर दुनिया एक नए cold war की तरफ़ बढ़ जाएगी? वक़्त ही बताएगा।
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