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महाराष्ट्र पर्यटन मंत्री शंभूराज देसाई का भावुक पल – बचपन के बंगले में गृह प्रवेश पर आंसू

महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री का वो पल: जब बचपन के बंगले ‘मेघदूत’ में लौटकर छलके आंसू

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे पल आते हैं जब इंसान चाहकर भी अपने आपको संभाल नहीं पाता। कुछ ऐसा ही हुआ महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री शंभूराज देसाई के साथ, जब वो अपने बचपन के बंगले ‘मेघदूत’ में दाखिल हुए। सोचिए, 55 साल पुरानी यादों से भरा वो घर जहां आपका बचपन बीता हो… और फिर एक दिन आप उसमें वापस कदम रखें? भावुक हो जाना तो लाज़मी है न!

असल में ये कोई साधारण बंगला नहीं था। ये वो जगह थी जहां देसाई साहब ने अपने जीवन के सबसे खूबसूरत पल बिताए थे। लेकिन कहानी में मोड़ तब आया जब यह बंगला सरकारी संपत्ति बन गया। पर अब? अब ये फिर से उनके परिवार की मिल्कियत है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब कोई आपके बचपन के घर में वापस आए तो कैसा लगता होगा?

मजे की बात ये है कि बंगले में प्रवेश करते ही मंत्री जी का ध्यान दीवारों पर लगी अपनी बचपन की तस्वीरों पर गया। और फिर? फिर तो भावनाओं का सैलाब ही आ गया। ईमानदारी से कहूं तो, ये सिर्फ एक राजनेता की कहानी नहीं है – ये तो हर उस इंसान की कहानी है जिसने कभी अपने बचपन के घर को याद किया हो।

देसाई जी ने खुद कहा – “ये कोई मकान नहीं, मेरी जिंदगी का एक हिस्सा है।” और सच कहूं तो, उनके परिवार वालों की प्रतिक्रियाएं सुनकर तो लगा जैसे पूरा परिवार ही टाइम मशीन में सवार होकर अतीत में चला गया हो। स्थानीय नेताओं ने भी इस पल को देसाई जी की सादगी का प्रमाण बताया। पर सवाल ये है कि आगे क्या?

अब देसाई परिवार की योजना है कि इस बंगले को संरक्षित किया जाए। शायद इसे एक सार्वजनिक स्मारक बनाया जाए – जहां लोग आकर न सिर्फ इतिहास को, बल्कि उन यादों को भी महसूस कर सकें जो इसकी दीवारों में समाई हुई हैं। एक तरह से ये घर अब सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि पूरे समाज की विरासत बनने जा रहा है।

अंत में बस इतना कहूंगा – चाहे आप मंत्री हों या आम आदमी, बचपन की यादें सबको एक जैसा ही भावुक कर देती हैं। और शंभूराज देसाई का ये पल इस बात का सबूत है कि असली खुशी तो वहीं होती है… जहां हमारी जड़ें होती हैं।

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Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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