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NYC बोडेगा मालिकों की चिंता: ज़ोहरान ममदानी की सरकारी किराना दुकान योजना से खतरे में नौकरियाँ?

NYC बोडेगा मालिकों की टेंशन बढ़ी: क्या ज़ोहरान ममदानी की ‘सरकारी किराना दुकान’ योजना उनके लिए खतरा बन जाएगी?

अभी-अभी NYC के छोटे दुकानदारों और उनके कर्मचारियों को एक झटका लगा है। दरअसल, डेमोक्रेटिक मेयरल उम्मीदवार ज़ोहरान ममदानी ने एक ऐसा प्रस्ताव रखा है जिससे बोडेगा वालों की नींद उड़ गई है। सरकारी किराना दुकानें? जहां सामान सस्ते दामों पर मिलेगा? सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन असल में ये छोटे व्यवसायियों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। और सच कहूं तो, ये सिर्फ दुकानों का सवाल नहीं – पूरे समुदाय और स्थानीय अर्थव्यवस्था का मामला है।

पूरा माजरा क्या है?

NYC की बोडेगा कल्चर तो वैसे ही लीजेंड है। ये छोटी-छोटी दुकानें, ज्यादातर प्रवासी परिवारों द्वारा चलाई जाती हैं, सिर्फ सामान बेचने की जगह नहीं हैं। पीढ़ियों से ये लोगों की दैनिक जरूरतों का केंद्र रही हैं। लेकिन अब ममदानी साहब ने “सिटी-रन ग्रोसरी स्टोर्स” का प्लान पेश किया है। उनका कहना है कि ये महंगाई से जूझ रहे लोगों के लिए राहत लाएगा। सरकार खुद दुकानें चलाएगी, सब्सिडी देगी – कीमतें कम रखेगी। सुनने में तो बढ़िया लगता है ना? पर सवाल ये है कि क्या ये छोटे दुकानदार इस प्रेशर को झेल पाएंगे?

क्या हो रहा है अभी?

हालात गर्म हैं, बिल्कुल। बोडेगा मालिकों ने तो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके साफ कह दिया – ये सरकारी हस्तक्षेप है! NYC स्मॉल बिजनेस एसोसिएशन भी आगाह कर रहा है कि इससे सैकड़ों दुकानें बंद हो सकती हैं। एक दुकानदार तो भावुक होकर बोला – “पहले COVID, फिर महंगाई… और अब ये? ये तो हमारे लिए आखिरी कील साबित होगा।” वहीं ममदानी अपनी बात पर अड़े हैं – उनका कहना है कि उनका मकसद लोगों की मदद करना है, किसी को बर्बाद करना नहीं।

लोगों की राय भी दो हिस्सों में बंटी हुई है। एक तरफ वो जो कह रहे हैं कि सस्ता सामान तो जरूरत है, खासकर उनके लिए जिनकी जेब पर महंगाई ने भारी चोट की है। दूसरी तरफ वो हैं जो बोडेगा कल्चर को बचाने की बात कर रहे हैं – आखिर ये NYC की पहचान का हिस्सा तो हैं न?

अब आगे क्या?

अब तो ये मामला और गरमाने वाला है। सिटी काउंसिल में इस पर बहस होनी है, और व्यवसायी संघ तो कानूनी लड़ाई लड़ने को तैयार बैठे हैं। उनका कहना है कि ये प्रतिस्पर्धा के नियमों के खिलाफ है। अगर ये योजना पास हो जाती है, तो NYC में एक अनोखा प्रयोग देखने को मिलेगा – सरकारी और प्राइवेट दुकानें साथ-साथ। पर सवाल यही है कि क्या ये मॉडल वाकई काम कर पाएगा? क्या ये समुदाय की जरूरतों को पूरा करते हुए छोटे व्यवसायों को बचा पाएगा? देखते हैं आगे क्या होता है…

यह भी पढ़ें:

NYC के बोडेगा मालिकों की चिंता – क्या सच में खतरा है? (FAQs)

1. ज़ोहरान ममदानी की ये ‘सरकारी किराना दुकान’ वाली बात क्या है?

देखिए, मामला ये है कि ज़ोहरान ममदानी NYC में सरकारी किराना दुकानें (government-run grocery stores) चलाने की प्लानिंग कर रहे हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, सस्ते दामों पर groceries मिलेंगी। अच्छी बात लगती है न? पर यहाँ दिक्कत ये है कि बोडेगा वाले पसीना-पसीना हो रहे हैं। उन्हें डर है कि कहीं उनका छोटा-मोटा business ही डूब न जाए। असल में, inflation और food insecurity तो कम होगी, लेकिन क्या कीमत छोटे दुकानदारों को चुकानी पड़ेगी?

2. क्या सच में NYC के बोडेगा वालों की नौकरियाँ खतरे में आ सकती हैं?

सच कहूँ तो हाँ, खतरा तो है। अरे भई, सरकारी दुकान आएगी तो competition तो बढ़ेगा ही न! बोडेगा मालिकों और उनके workers की चिंता समझ आती है – sales कम हुई तो jobs पर भी खतरा आ सकता है। छोटे दुकानदारों की बात करें तो, वो तो यही कह रहे हैं कि “भई सरकार के साथ हमारी क्या टक्कर?” एक तरफ तो सस्ते दाम, दूसरी तरफ सरकारी बैकिंग… मुश्किल है भाई।

3. थोड़ा positive सोचें – क्या economy को कोई फायदा भी हो सकता है?

अच्छा सवाल पूछा! देखिए, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अगर ये सरकारी stores सच में सस्ती और अच्छी quality की groceries देंगी, तो low-income families को तो बहुत राहत मिलेगी। और हाँ, नई दुकानें खुलेंगी तो कुछ नौकरियाँ भी create होंगी। लेकिन यहाँ सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये बोडेगा वालों के लिए मरने का कारण बनेगा या जीने का नया तरीका? अभी तो ये पूरा मामला एक बड़े प्रयोग जैसा लग रहा है।

4. बोडेगा मालिकों ने इसके खिलाफ क्या किया?

अरे, ये लोग बैठे थोड़े ही हैं! कई बोडेगा owners और उनके associations ने तो जमकर protests किए हैं। Local leaders के पास गए, अपनी बात रखी। उनकी माँग साफ है – सरकार उनकी परेशानियाँ सुने और कोई ऐसा रास्ता निकाले जहाँ छोटे businesses भी चल सकें। कुछ तो social media पर जमकर active हो गए हैं – petitions, campaigns, वायरल videos… जो बन पड़ रहा है, कर रहे हैं। कहने का मतलब, लड़ाई जारी है!

Source: NY Post – US News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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