ओडिशा का वो दर्दनाक मामला: जब एक छात्रा ने यौन उत्पीड़न के खिलाफ आग में कूदने को ही आखिरी रास्ता समझा
कभी-कभार जिंदगी ऐसे मोड़ पर आ जाती है जहां से वापसी का कोई रास्ता नहीं दिखता। ओडिशा के बालासोर में एफएम कॉलेज की छात्रा सौम्यश्री बिसी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने के बाद जब कोई सुनने को तैयार नहीं था, तो उसने खुद को आग लगा ली। सच कहूं तो ये कोई आत्महत्या का केस नहीं, बल्कि एक सिस्टम की हत्या का मामला है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या हुआ था? दरअसल, सौम्यश्री पहले ही कॉलेज के एक प्रोफेसर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा चुकी थी। उसने कॉलेज प्रशासन से लेकर स्थानीय अधिकारियों तक, सबके पास गुहार लगाई। लेकिन वो आवाज दीवार से टकराकर लौट आई। और आज हालत ये है कि लड़की अस्पताल में जिंदगी-मौत की जंग लड़ रही है, जबकि आरोपी प्रोफेसर समीर साहू और प्रिंसिपल दिलीप कुमार घोष को गिरफ्तार कर लिया गया है। देर से ही सही, लेकिन न्याय की प्रक्रिया तो शुरू हुई।
मामले की सबसे डरावनी बात ये है कि ये कोई अचानक की गई हरकत नहीं थी। एक लड़की ने बार-बार मदद के लिए चिल्लाया। उसकी आवाज दबा दी गई। और जब उसे लगा कि उसके पास कोई और चारा नहीं बचा, तो उसने ये कदम उठाया। क्या ये सिर्फ उसकी हार है? या फिर पूरे सिस्टम की नाकामी?
अब जैसे-तैसे प्रशासन हरकत में आया है। पुलिस ने जांच तेज कर दी है। राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों में नए दिशा-निर्देशों की बात कही है। लेकिन सच तो ये है कि ये सब बाद के कदम हैं। असली सवाल तो ये है कि आखिर सौम्यश्री को इस हद तक जाने की नौबत क्यों आई? क्यों हमारी शिकायत प्रणाली इतनी फेल हो चुकी है कि एक लड़की को अपनी जान तक दांव पर लगानी पड़ी?
छात्र संगठन सड़कों पर हैं। राजनीतिक दलों ने मौका देखकर अपनी-अपनी रोटियां सेंकनी शुरू कर दी हैं। परिवार रो रहा है। मीडिया में खबरें चल रही हैं। लेकिन क्या कभी कोई सबक सीखा जाएगा? या फिर कुछ दिनों बाद ये केस भी फाइलों में दब जाएगा?
एक बात तो तय है – अगर हमारे शिक्षण संस्थानों में महिला सुरक्षा को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई गई, तो ऐसे मामले बढ़ते ही जाएंगे। सौम्यश्री का केस सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि हमारे सामने एक आईना है। सवाल ये नहीं कि अब क्या होगा। सवाल ये है कि हम इस आईने में झांकने का साहस कर पाएंगे या नहीं।
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ओडिशा छात्रा केस: जब सिस्टम फेल होता है, तो क्या बचता है?
ये केस सिर्फ एक छात्रा की त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की पूरी विफलता की कहानी है। सवाल यह नहीं कि क्या हुआ, बल्कि यह कि ऐसा होने दिया गया? चलिए, पूरी बात समझते हैं।
1. वो आग सिर्फ शरीर की नहीं, सिस्टम के खिलाफ थी
कल्पना कीजिए – एक युवा छात्रा sexual harassment की शिकायत लेकर गई, लेकिन उसकी आवाज़ दबा दी गई। क्या कोई और रास्ता बचा था? असल में, ये आत्मदाह (self-immolation) कोई impulsive action नहीं, बल्कि system के continuous failure का result था। और सबसे दुखद बात? हम अभी भी ऐसे cases से सीख नहीं ले रहे।
2. गिरफ्तारियाँ या सिर्फ eyewash?
पहले professor, फिर principal… लेकिन सच पूछो तो ये सब damage control के steps लगते हैं। असल सवाल तो ये है कि complaint दर्ज होने के बाद action क्यों नहीं लिया गया? क्या ये सिर्फ दो लोगों की गलती है, या पूरी system ही खोखली हो चुकी है?
3. छात्रा की हालत: सिर्फ medical नहीं, social emergency
अस्पताल reports कहती हैं condition critical है। पर सच तो ये है कि हम सबकी collective conscience भी critical condition में है। डॉक्टर्स शायद उसके शारीरिक घाव भर दें, लेकिन समाज के उन घावों का क्या जो उसे इस हालत में लाए?
4. सरकारी action: कागजी खानापूर्ति या real change?
SIT बना दी, guidelines issue कर दिए… पर याद रखिए, ये वही सरकार है जिसके तहत ये पूरा मामला हुआ। क्या नया होगा? सच्चाई तो ये है कि जब तक हम educational institutions में accountability की culture नहीं बनाते, ये सब दिखावा ही रहेगा। एक तरफ तो हम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगाते हैं, दूसरी तरफ… आप समझ ही गए होंगे।
अंत में सिर्फ इतना – ये केस सुनकर हम सबको सोचना चाहिए। क्या हमारी बेटियों के लिए यही सिस्टम safe है? सच कहूँ तो, जवाब डरावना है।
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com