संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर जंग: राजनाथ सिंह vs राहुल गांधी
अरे भाई, संसद का सत्र चल रहा है और बहसों का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। इस बार? एक ऐसा मुद्दा जो देश की सुरक्षा से जुड़ा है और राजनीति को गरमा देने वाला है – ‘ऑपरेशन सिंदूर’। याद है न वो 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक? उसी पर अब तीखी बहस होने वाली है। एक तरफ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं जो सरकार की तरफ से जवाब देंगे, तो दूसरी तरफ विपक्ष की कमान संभाल रहे हैं राहुल गांधी। और सच कहूं तो, विपक्ष को लगता है कि सरकार को इस ऑपरेशन के बारे में कुछ ठोस जवाब देने ही चाहिए। पर सवाल यह है – क्या सरकार ऐसा करेगी?
मामले की पृष्ठभूमि: क्या हुआ था असल में?
देखिए, ये सारा मामला तो फरवरी 2019 से चला आ रहा है। पुलवामा हमले के बाद जब भारतीय वायुसेना ने PoK के बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक की थी, उसी को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम दिया गया। सरकार ने इसे बड़ी सैन्य सफलता बताया। लेकिन… हमेशा की तरह विपक्ष को कुछ शक था। उनके सवाल सीधे थे – क्या वाकई में इतना नुकसान हुआ था जितना दावा किया जा रहा है? और अब यह मुद्दा “राष्ट्रवाद बनाम पारदर्शिता” की लड़ाई बन चुका है। दिलचस्प है न?
संसद में क्या होगा? 32 घंटे की मैराथन बहस!
अब स्थिति ये है कि संसद में इस पर 32 घंटे तक चलने वाली बहस होने वाली है। 32 घंटे! इतने लंबे समय तक बहस होगी। सरकार अपनी सफलता के दावे करेगी, विपक्ष सबूत मांगेगा। और राहुल गांधी? उनके पिछले बयानों को देखें तो लगता है वे अपने पुराने सवाल फिर से उठाएंगे। पर असल में ये बहस सिर्फ सैन्य ऑपरेशन तक सीमित नहीं रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि ये तो राष्ट्रीय सुरक्षा पर बड़ी टकराव की शुरुआत हो सकती है।
कौन क्या कह रहा है?
भाजपा तो पूरी तरह आक्रामक मोड में है। उनके प्रवक्ताओं का कहना है – “ऑपरेशन सिंदूर देश की सुरक्षा का प्रतीक है, और विपक्ष का सैन्य बलों पर सवाल उठाना दुर्भाग्यपूर्ण है।” वहीं कांग्रेस का पक्ष अलग है – वे इसे पारदर्शिता का मुद्दा बता रहे हैं। उनके नेताओं का कहना है – “हमें सच जानने का अधिकार है।” और हां, रक्षा विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि कहीं ये बहस सेना के मनोबल को प्रभावित न कर दे।
आगे क्या होगा? 2024 तक असर?
अब सबसे बड़ा सवाल – अगर सरकार विपक्ष के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो? संसद का ये सत्र और अशांत हो सकता है। सबकी निगाहें अब मोदी जी पर हैं – क्या वे खुद इस पर बोलेंगे? और राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कह रहे हैं कि इस बहस का असर 2024 के चुनावों तक दिख सकता है। क्योंकि ये मुद्दा सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा और सरकार की विश्वसनीयता से जुड़ा है।
असल में ये बहस सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन के बारे में नहीं है। ये तो भारतीय लोकतंत्र के उस बड़े सवाल को उठाती है – राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक जवाबदेही के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए? अब देखना ये है कि ये बहस रचनात्मक होगी या फिर एक और राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगी। क्या आपको लगता है इस बार कुछ अलग होगा?
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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com