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“ओवैसी का चुनाव आयोग से मुलाकात पर बयान: ‘हम SIR के खिलाफ नहीं, बशर्ते…'”

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ओवैसी का चुनाव आयोग से मुलाकात: ‘SIR के खिलाफ नहीं, पर…’

आज एक दिलचस्प घटना हुई। AIMIM के बॉस असदुद्दीन ओवैसी चुनाव आयोग से मिले, और उन्होंने SIR प्रक्रिया पर कुछ ऐसे सवाल उठाए जो सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उनका कहना है कि ये प्रक्रिया “बैकडोर NRC” जैसी होती जा रही है – और ये खतरनाक है। सोचिए, गरीबों और मजदूरों के वोटिंग राइट्स पर सवाल? ये तो लोकतंत्र की बुनियाद को ही हिला देने वाली बात है।

अब SIR है क्या? देखिए, ये तकनीकी तो लगता है – निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं बदलना, सीटें एडजस्ट करना। पर असल मुद्दा ये है कि ये कैसे किया जा रहा है। ओवैसी साहब का कहना सही भी लगता है – इतने बड़े फैसले में पारदर्शिता नहीं? जल्दबाजी? और सबसे बड़ी बात – क्या ये वाकई अल्पसंख्यकों को निशाना बना रहा है? ये सवाल पूछना तो बनता ही है।

मुलाकात में ओवैसी ने क्या मांगा? बस इतना कि प्रक्रिया साफ-सुथरी हो, समय पर हो। उनका कहना दिलचस्प है – “हम SIR के खिलाफ नहीं…” लेकिन फिर वो ‘पर’ जोड़ देते हैं। और ये ‘पर’ ही असली मसला है न? राजनीति में तो हर बात के दो पहलू होते हैं – एक जो दिखता है, एक जो छिपा होता है।

अब तो मजमा लग गया है! कुछ दल ओवैसी के साथ हैं, तो सरकार पलटवार कर रही है। मानवाधिकार वालों ने भी आवाज उठाई है – “जनता से पूछो!” पर चुनाव आयोग चुप्पी साधे हुए है। शायद सोच रहा होगा कि इस गर्मागर्म बहस में क्या बोले।

तो अब क्या? दो ही रास्ते हैं – या तो SIR प्रक्रिया में सुधार हो, या फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए। और हां, अगर राजनीतिक दलों ने इसे मुद्दा बना लिया, तो अगले चुनाव में ये बहस जरूर सुनने को मिलेगी। जनता को जगाने का ये तरीका भी तो होता है न?

आखिर में, एक बात तो साफ है – ओवैसी ने इस मुद्दे को नई जान दे दी है। अब देखना ये है कि चुनाव आयोग और सरकार इस पर कैसे रिएक्ट करते हैं। क्योंकि ये सिर्फ सीटों का खेल नहीं…ये तो हम सबके वोट का सवाल है। और वोट…वो तो लोकतंत्र की धड़कन है न?

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ओवैसी की चुनाव आयोग वाली मीटिंग – और वो सारे सवाल जो आप पूछना चाहते थे!

1. भईया, ओवैसी ने आखिर चुनाव आयोग के सामने क्या रखा?

देखो, ओवैसी साहब ने साफ कहा कि वो SIR (Supreme Court of India’s Ruling) के खिलाफ तो बिल्कुल नहीं… पर एक शर्त पर! कि चुनाव में पूरी इमानदारी बरती जाए। असल में, उन्होंने अपनी तमाम परेशानियां आयोग के सामने रखीं – और हां, ‘साफ-सुथरे चुनाव’ की मांग भी की। समझ रहे हो न?

2. SIR क्या चीज़ है? और ओवैसी ने इसे अचानक क्यों घसीट लिया?

अरे, SIR यानी Supreme Court of India’s Ruling… सुप्रीम कोर्ट का वो फैसला। अब ओवैसी ने इसका जिक्र करके समझदारी दिखाई। उनका कहना है – “कोर्ट का फैसला तो ठीक है, लेकिन…” और यहाँ बटन दबा दिया! उनकी असली चिंता? कि चुनाव के नियम सब पर एक से लगें। Fair play वाली बात, है न?

3. असल मुद्दा क्या था? ओवैसी ने इतनी जल्दी मीटिंग क्यों बुलाई?

सच कहूँ तो? बस यही कि अपनी बात रखनी थी। चुनाव आयोग के सामने वो सारी चिंताएँ – निष्पक्ष चुनाव से लेकर सुरक्षा तक, मीडिया वाले झमेले तक। और हाँ, एकदम स्पष्ट शब्दों में कहा – “कुछ करके दिखाइए!” वैसे भी, election time में तो ये सब discuss होना ही चाहिए न?

4. क्या ये सब बयानबाजी नया विवाद खड़ा कर देगी?

अब ये तो… देखना पड़ेगा! मतलब, ओवैसी ने तो सीधे चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठा दिए हैं। और जब SIR और election rules की बात होती है… तो दूसरे दल क्या कहेंगे? कोई support करेगा, कोई oppose। राजनीति है भई – कुछ भी हो सकता है!

Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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