बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी का बड़ा धमाका! क्या ढाका की सियासत बदलने वाली है?
अरे भई, ढाका में तो इन दिनों राजनीति गर्म है! जमात-ए-इस्लामी ने जो रैली की है, उसने सबको हैरान कर दिया। सच कहूं तो मुझे भी उम्मीद नहीं थी कि इतने लोग जुटेंगे – हजारों की भीड़, पूरा मैदान खचाखच भरा हुआ। ये सिर्फ एक रैली नहीं, बल्कि 1970 के बाद का सबसे बड़ा जनसमूह था। और हां, वही 1970 जब ये देश पाकिस्तान का हिस्सा हुआ करता था। तो सवाल यह है कि क्या ये सब सिर्फ संयोग है?
जमात-ए-इस्लामी: दोस्त या दुश्मन?
देखिए, इस पार्टी की कहानी बड़ी पेचीदा है। 1941 में बनी, सबसे पुरानी इस्लामिक पार्टी… पर सच तो ये है कि 1971 में इन्होंने पाकिस्तान का साथ दिया था। आज भी लोग इन्हें ‘पाकिस्तानी एजेंट’ कहते हैं। 2013 में तो इनके कई नेताओं को युद्ध अपराधों के लिए सजा भी हुई थी। मतलब साफ है – ये पार्टी हमेशा विवादों में घिरी रही है। लेकिन आज फिर से ये मैदान में उतरी है। क्यों? शायद इसलिए कि बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामिक पहचान की बहस फिर से जोर पकड़ रही है।
रैली में क्या हुआ? असली मुद्दे क्या थे?
अब जरा रैली की बात करते हैं। मंच से शफीकुर रहमान का भाषण… उफ्फ! बड़ा भावुक था। “शरिया कानून चाहिए”, “इस्लामिक न्याय व्यवस्था लागू करो” जैसे नारे लग रहे थे। सच कहूं तो कुछ बातें तो ऐसी थीं जो सीधे दिल में उतर जाती हैं। खैर, पुलिस वाले पूरे समय अलर्ट थे, लेकिन शुक्र है कि कुछ हिंसक नहीं हुआ। हालांकि विपक्ष का कहना है कि सरकार ने जान-बूझकर आंखें मूंद लीं। क्या सच में ऐसा है? पता नहीं…
राजनीतिक गलियारों में क्या चल रहा है?
तो अब स्थिति ये है – एक तरफ सरकार जमात को ‘अशांति फैलाने वाला’ बता रही है, दूसरी तरफ BNP जैसे दल सरकार पर धर्म को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर? पाकिस्तान के कुछ नेताओं ने इसे ‘इस्लामिक एकता’ बताया है। मजे की बात ये है कि भारत और America अभी तक चुप हैं। शायद वो भी देख रहे हैं कि आगे क्या होता है।
आगे क्या? मेरी निजी राय…
असल में बात ये है कि बांग्लादेश हमेशा से दो धाराओं के बीच झूलता रहा है – एक तरफ धर्मनिरपेक्षता, दूसरी तरफ इस्लामिक पहचान। अब जमात ने जो कदम उठाया है, वो शायद इस संतुलन को बदल सकता है। अगर सरकार कड़ी कार्रवाई करेगी तो हिंसा हो सकती है। और अगर नहीं करेगी तो जमात का प्रभाव बढ़ेगा। दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं। मेरे हिसाब से तो ये सिर्फ बांग्लादेश का मामला नहीं रहा – पूरे South Asia पर इसका असर पड़ेगा। देखते हैं आने वाले दिन क्या लाते हैं…
एक बात तो तय है – ढाका की सड़कों पर जो हुआ, वो सिर्फ एक रैली नहीं थी। ये एक संदेश था। और वो संदेश अब पूरे देश में गूंज रहा है।
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बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी का प्रदर्शन: क्या है पूरा माजरा?
अभी कुछ दिनों से बांग्लादेश के न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया पर जमात-ए-इस्लामी के प्रदर्शन की खबरें छाई हुई हैं। पर सच क्या है? आइए समझते हैं बिना किसी पक्षपात के।
1. जमात-ए-इस्लामी – कौन हैं ये लोग और क्या चाहते हैं?
देखिए, Jamaat-e-Islami बांग्लादेश की वो पार्टी है जिसके बारे में दो तरह की बातें सुनने को मिलती हैं। एक तरफ तो ये खुद को इस्लामिक मूल्यों की रक्षा करने वाला ग्रुप बताते हैं, वहीं दूसरी तरफ इनकी मांगें – शरिया कानून और पूरी तरह इस्लामिक शासन – कई लोगों को चौंकाती हैं। असल में ये प्रदर्शन सरकार पर दबाव बनाने की एक कोशिश थी। पर क्या ये सच में जनता की आवाज़ हैं? ये सवाल तो बना ही रहता है।
2. क्या बांग्लादेश बनने जा रहा है इस्लामिक स्टेट?
ईमानदारी से कहूं तो… फिलहाल तो ऐसा कोई चांस नज़र नहीं आता। बांग्लादेश की मौजूदा सरकार सेक्युलर है और उसकी नीतियां भी। लेकिन यहां एक ‘पर’ ज़रूर है – अगर Jamaat-e-Islami जैसे ग्रुप्स का प्रभाव बढ़ता रहा तो? राजनीति में कुछ भी तय नहीं होता, है ना?
3. पाकिस्तान का इस सब में क्या रोल है?
अब ये थोड़ा सेंसिटिव टॉपिक है। दरअसल, जमात को पाकिस्तान-समर्थक माना जाता है। और बांग्लादेश-पाकिस्तान के रिश्ते… उफ्फ, कॉम्प्लेक्स से भी ज़्यादा कॉम्प्लेक्स हैं। अगर पाकिस्तान ने इस प्रदर्शन को सपोर्ट किया तो? हालात और भी गरमा सकते हैं। पर ये सब अटकलें हैं फिलहाल।
4. आम जनता क्या सोचती है?
यहां तस्वीर बिल्कुल क्लियर नहीं है। कुछ लोगों को लगता है कि इस्लामिक शासन ही सही रास्ता है। वहीं दूसरी ओर – खासकर युवाओं और एजुकेटेड क्लास में – सेक्युलर सिस्टम को लेकर मोहभंग नहीं हुआ है। एक तरह से कहें तो… देश दो रायों के बीच झूल रहा है।
तो ये थी पूरी स्टोरी संक्षेप में। क्या आपको लगता है इस प्रदर्शन का कोई बड़ा असर होगा? कमेंट में बताइएगा ज़रूर!
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com