NHS के ‘न्यूनतम’ वेटिंग टाइम पर बवाल: क्या सच में मरीजों की परवाह है?
देखिए, ब्रिटेन के निजी हॉस्पिटल्स वालों ने तो NHS को लेकर बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया है। असल में, उनका कहना है कि NHS ने जो ऑपरेशन की ‘न्यूनतम’ वेटिंग पीरियड तय की है, वो बिल्कुल हवाई है। और ये सब ऐसे वक्त पर हो रहा है जब लेबर पार्टी के कीर स्टारमर अपनी 10 साल की हेल्थ प्लान लाने वाले हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, प्राइवेट हेल्थकेयर वालों को लगता है कि NHS के ये नियम मरीजों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
पूरा माजरा क्या है?
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। NHS का वेटिंग टाइम का मसला कोई नया तो नहीं है। सरकार ने 18 हफ्ते का बेसिक वेटिंग पीरियड तो पहले ही सेट कर रखा था। पर कोविड के बाद तो स्थिति और भी बिगड़ गई है। प्राइवेट सेक्टर वाले कह रहे हैं – “भाई, ये NHS के टारगेट तो किसी फंतासी से कम नहीं!” उनका मानना है कि बिना पर्याप्त डॉक्टर्स, नर्सेस और इंफ्रास्ट्रक्चर के ये सब करना उसी तरह असंभव है जैसे बिना तेल के गाड़ी चलाना।
अभी क्या चल रहा है?
अब तो प्राइवेट हॉस्पिटल्स ने खुलकर NHS के इन ‘कागजी टाइमलाइन्स’ को चुनौती दे दी है। और इसी बीच कीर स्टारमर अपनी बड़ी 10-साल की प्लान लेकर आने वाले हैं। अंदाजा लगाया जा रहा है कि इसमें वेटिंग टाइम कम करने पर खास फोकस होगा। एक्सपर्ट्स की राय? “NHS को अब प्राइवेट प्लेयर्स के साथ हाथ मिलाना ही होगा, वरना…”
कौन क्या बोल रहा है?
इस पूरे मामले में हर कोई अपना-अपना राग अलाप रहा है। प्राइवेट सेक्टर वाले तो सीधे कह रहे हैं – “NHS के ये टारगेट सिर्फ दिखावा है!” वहीं NHS के प्रवक्ता का जवाब – “हम मरीजों की सेफ्टी को प्राथमिकता देते हैं।” और पेशेंट राइट्स ग्रुप्स? उनका स्टैंड थोड़ा बैलेंस्ड है – “सरकार को कुछ ठोस करना चाहिए।”
आगे क्या होगा?
अगले कुछ सालों में कीर स्टारमर की प्लान में दो चीजें जरूर देखने को मिलेंगी – NHS के रिसोर्सेज बढ़ाने पर जोर और प्राइवेट सेक्टर के साथ तालमेल। पर सच कहूं तो? अगर जल्दी कुछ नहीं किया गया, तो मरीजों को लंबे इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। स्थिति गंभीर है।
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NHS के सर्जरी वेटिंग लिस्ट का मुद्दा तो अब पुराना हो चुका है, लेकिन हल कहाँ हुआ? सच कहूँ तो, private hospitals की तरफ भागते मरीज़ों की कतारें देखकर लगता है कि हमारी healthcare system की हालत कुछ ज्यादा ही खराब है। हाँ, private sector तेज़ इलाज देने का दावा करता है – और शायद देता भी हो – पर क्या कीमत चुकाकर? ऐसा नहीं कि सरकारी अस्पताल बेकार हैं, लेकिन… आप समझ ही रहे होंगे।
असल में, यहाँ दोष किसी एक पर नहीं। सरकार और private players दोनों को मिलकर काम करना होगा। वरना ये समस्या और बढ़ती जाएगी। सोचिए, अगर NHS और private hospitals बैठकर affordable treatment के लिए कोई sustainable model बना पाएँ? एक तरफ quality, दूसरी तरफ accessibility – balance बनाना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
और हाँ, coordination की बात सही है। बिना teamwork के तो ये पहेली और उलझेगी। Patients के लिए बेहतर विकल्प चाहिए, न कि सिर्फ़ दो अधूरे systems के बीच झूलते रहना। क्या आपको नहीं लगता?
*(थोड़ा कड़वा सच लगा हो तो माफ़ कीजिएगा – पर सच तो सच है!)*
NHS ऑपरेशन की ‘न्यूनतम’ वेटिंग टाइम पर बहस – जानिए पूरी कहानी
क्या सच में 18 हफ्ते का इंतज़ार जायज़ है?
देखिए, NHS (National Health Service) का कहना है कि ज़्यादातर ऑपरेशन्स के लिए 18 हफ्ते का वेटिंग पीरियड ‘राज़ी-खुशी’ स्वीकार कर लेना चाहिए। पर सच पूछो तो? निजी हॉस्पिटल्स वालों को ये समय भी बेहिसाब लगता है। उनका तो यहाँ तक कहना है कि इसमें कटौती होनी चाहिए। और सुनकर हैरानी होगी कि उनकी बात में दम भी है!
निजी सेक्टर को NHS से क्यों है शिकायत?
असल में मामला कुछ ऐसा है – निजी हेल्थकेयर वालों का मानना है कि NHS की ये लंबी वेटिंग लिस्ट मरीज़ों के लिए सजा बन चुकी है। सोचिए, आप दर्द से तड़प रहे हैं और डॉक्टर आपको 4 महीने बाद मिलेगा! ऐसे में समस्या और बढ़ना तो लाज़मी है। है ना? यही वजह है कि वे सरकार से तुरंत सुधार की मांग कर रहे हैं।
क्या पैसे देकर जल्दी ऑपरेशन करवाना समझदारी है?
सीधी बात – हाँ, निजी हॉस्पिटल्स में वेटिंग टाइम NHS से काफी कम है। पर यहाँ एक ‘लेकिन’ ज़रूर है। जेब पर भारी पड़ता है ये विकल्प! आपको पता है कि एक सामान्य ऑपरेशन का खर्चा कितना हो सकता है? शायद आपके महीने भर की सैलरी के बराबर! तो अब आप ही बताइए, क्या हर कोई ये खर्च उठा सकता है?
तो फिर समाधान क्या है?
ईमानदारी से कहूँ तो, ये कोई जादू की छड़ी से ठीक होने वाली बात नहीं। सरकार को चाहिए कि:
– हेल्थकेयर बजट बढ़ाए (और सिर्फ कागज़ों में नहीं!)
– डॉक्टर्स और नर्सेस की कमी पूरी करे
– हॉस्पिटल्स की हालत सुधारे
एक तरफ तो हम दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाते हैं, दूसरी तरफ बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए लाइन में लगना पड़ता है। थोड़ा अजीब नहीं लगता?
Source: Financial Times – Companies | Secondary News Source: Pulsivic.com