राहुल गांधी का बयान: “अंग्रेजी सीखो, पर क्या सिर्फ़ यही रास्ता है?”
अरे भाई, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने तो हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है जिसने सोशल मीडिया से लेकर चाय की दुकानों तक बहस छेड़ दी है। एक education summit में बोलते हुए उन्होंने साफ़ कहा – “English सीखना आज के दौर में गरीबी से निकलने का सबसे बड़ा हथियार है।” सच कहूं तो ये बात कुछ हद तक सही भी लगती है, लेकिन क्या सच में हमारी तरक्की का पैमाना सिर्फ़ अंग्रेजी ही हो सकती है? यहीं से बहस शुरू होती है।
भाषा की लड़ाई: नया नहीं, पर अब भी जारी
देखिए, ये कोई नई बात तो है नहीं। आजादी के बाद से ही हिंदी vs English vs क्षेत्रीय भाषाओं का ये झगड़ा चला आ रहा है। एक तरफ़ तो हमारी अपनी भाषाएं हैं जो हमारी पहचान हैं – तमिल हो या बंगाली। पर दूसरी तरफ़, सच ये भी है कि आजकल के job market में English का दबदबा है। मजे की बात ये कि जिसे हम ‘अंग्रेजियत’ समझते थे, वही अब ‘ग्लोबल स्किल’ बन गई है। है न मजेदार?
बयान के अंदर की बात
राहुल ने अपनी बात रखते हुए कहा – “English सीखना गरीबी से बाहर निकलने का सबसे बड़ा हथियार है।” सुनने में तो लगता है सीधी-सादी बात, पर इसके नीचे कितने सारे मुद्दे दबे हुए हैं। हालांकि उन्होंने हिंदी या अन्य भाषाओं के महत्व को नहीं नकारा, पर ज़ोर practical benefits पर था। और फिर क्या था – ट्विटर पर #EnglishVsRegionalLanguages ट्रेंड करने लगा। अब आप ही बताइए, क्या सच में ये मुद्दा इतना ब्लैक एंड व्हाइट है?
प्रतिक्रियाएं तो दोनों तरफ़ से आईं। कुछ industry experts ने कहा – “हां भई, ये तो सच्चाई है।” वहीं DMK जैसे दलों ने इसे भारतीय भाषाओं का अपमान बताया। एक DMK नेता तो बिल्कुल गरमा गए – “तमिल हमारी संस्कृति है, English को थोपना गलत है।” सच कहूं तो दोनों के अपने-अपने पॉइंट्स हैं।
राजनीति का नया मैदान?
अब तो ये मामला राजनीति के दायरे में भी आ गया है। BJP वाले तो मौके की तलाश में ही रहते हैं – उन्होंने तुरंत राहुल पर “colonial mindset” का आरोप लगा दिया। वहीं कांग्रेस के जयराम रमेश ने इसे “personal opinion” कहकर पल्ला झाड़ लिया। पर असली सवाल ये है कि क्या 2024 के elections में ये मुद्दा तमिलनाडु या बंगाल जैसे राज्यों में BJP के लिए फायदेमंद साबित होगा? क्योंकि वहां तो भाषा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है।
आगे क्या?
अब देखना ये है कि ये बहस कहां तक जाती है। शिक्षा मंत्रालय शायद कोई नई language policy लेकर आए। कुछ राज्य अपने यहाँ English medium schools बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं। corporate sector में भी इस पर चर्चा तेज़ होगी। पर सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या हम एक balanced approach नहीं अपना सकते? जहां English भी सीखें, पर अपनी भाषाओं को भी न भूलें। आखिरकार, जापान और चीन जैसे देशों ने तो बिना English के ही तरक्की कर दिखाई है। है न?
एक बात तो तय है – राहुल के इस बयान ने एक ज़रूरी बहस को फिर से जिंदा कर दिया है। अब देखना है कि ये बहस किस दिशा में जाती है। आपकी क्या राय है? क्या सच में English ही सफलता की एकमात्र कुंजी है, या फिर हमें कोई मध्यम मार्ग ढूंढना चाहिए? कमेंट में ज़रूर बताइएगा!
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com