रखाइन कॉरिडोर: क्या बंगाल की खाड़ी अब महाशक्तियों का चेसबोर्ड बनने वाली है?
देखिए न, बंगाल की खाड़ी का यह रखाइन कॉरिडोर मामला कितना दिलचस्प होता जा रहा है! अमेरिका और चीन की इस टकराहट ने तो पूरे दक्षिआशिया की राजनीति की चाल ही बदल दी है। असल में बात सिर्फ एक आर्थिक गलियारे की नहीं रह गई है – अब तो सवाल बांग्लादेश की आज़ादी से लेकर पूरे इलाके की सुरक्षा तक पहुँच गया है। और सबसे मजेदार बात? बांग्लादेश की सरकार और सेना दोनों की नींद उड़ गई है। उन्हें डर सता रहा है कि कहीं उनका देश भी पाकिस्तान की तरह किसी महाशक्ति का “strategic pawn” न बन जाए। और अमेरिका वाला मोहम्मद यूनुस प्रकरण? उसने तो बांग्लादेश की राजनीति में घी-आटा सा गुंथ दिया है!
क्या यह नई ‘ग्रेट गेम’ है? सच कहूँ तो…
अब इस रखाइन कॉरिडोर को समझिए। चीन ने इसे अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत पेश किया है। म्यांमार के रखाइन को बांग्लादेश और हमारे भारत से जोड़ने वाला यह गलियारा सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि चीन की नौसैनिक महत्वाकांक्षाओं का भी प्रतीक है। पर अमेरिका को यह रास नहीं आ रहा। उसकी नजर में तो यह चीन के बढ़ते प्रभाव का एक और हथियार है। और बेचारा बांग्लादेश? वह तो बीच में फंसकर रह गया है – जैसे दो बैलों की लड़ाई में फंसा मेंढक!
एक तरफ तो चीन का दबाव, दूसरी तरफ अमेरिका की धमकियाँ। स्थिति ठीक वैसी ही हो गई है जैसे हमारे यहाँ कहते हैं – “न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी।”
हालिया घटनाएँ: आग में घी डालने वाले
पिछले कुछ हफ्तों में तो मामला और गरमा गया है। बांग्लादेशी सेना ने खुलकर कह दिया है कि इस परियोजना से उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। खासकर अगर चीन इस इलाके में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने लगे। और अमेरिका? उसने तो अपने राजदूत को ही बांग्लादेश भेज दिया है इस मामले पर बातचीत करने। चीन वालों ने तो सीधे-सीधे कह दिया – “यह तो बस आर्थिक विकास का मॉडल है, राजनीति मत घुसाओ इसमें।” पर कौन माने?
राजनीतिक चालें: किसके हाथ में है पत्ता?
बांग्लादेश सरकार तो बीच की राह निकालने में लगी है। उनका कहना है कि वे किसी के दबाव में नहीं आएँगे। पर सच पूछो तो? उनकी मुश्किल समझी जा सकती है। अमेरिका वाले “debt-trap diplomacy” का राग अलाप रहे हैं, तो चीन “आर्थिक सहयोग” की बात कर रहा है। मजे की बात यह है कि दोनों ही बांग्लादेश की संप्रभुता का सम्मान करने की बात कर रहे हैं। पर असल में? दोनों की नजरें तो अपने-अपने हितों पर हैं!
आगे क्या? एक सवाल जो सबके मन में है
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि बांग्लादेश कैसे इस चक्रव्यूह से निकलेगा? अगले कुछ महीने तो उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं। एक तरफ अमेरिका-चीन के बीच संतुलन बनाना, दूसरी तरफ भारत की चिंताओं को भी ध्यान में रखना। क्योंकि भारत भी तो इस इलाके में चीन के बढ़ते कदमों को लेकर परेशान है। और अमेरिका अगर बंगाल की खाड़ी में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाता है तो? फिर तो खेल और भी दिलचस्प हो जाएगा!
अंत में बस इतना: यह रखाइन कॉरिडोर अब सिर्फ एक आर्थिक परियोजना नहीं रहा। यह तो पूरे दक्षिण एशिया की राजनीति को नई दिशा देने वाला मोड़ साबित हो सकता है। क्या हम एक नई ‘ग्रेट गेम’ के गवाह बन रहे हैं? वक्त ही बताएगा। पर एक बात तो तय है – छोटे देशों के लिए महाशक्तियों के इस खेल में फँसना कितना मुश्किल होता है, यह हम इस घटनाक्रम से सीख सकते हैं।
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रखाइन कॉरिडोर और बंगाल की खाड़ी की ‘ग्रेट गेम’ – जानिए क्या है पूरा माजरा?
रखाइन कॉरिडोर: म्यांमार का वो हिस्सा जिस पर सबकी नज़र क्यों है?
देखिए, रखाइन कॉरिडोर को लेकर इतना हंगामा सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि ये म्यांमार में है। असल बात ये है कि यहाँ चीन ने अपने पैर जमा लिए हैं – और वो भी बड़े पैमाने पर। अब सोचिए, जब बंगाल की खाड़ी के इलाके में trade और military दोनों के लिए एक strategic रास्ता बन जाए, तो किसका फ़ायदा? India का? China का? या फिर…? इसीलिए तो ये मामला अंतरराष्ट्रीय राजनीति की गर्मागर्म चर्चा में शामिल हो गया है।
क्या सच में बंगाल की खाड़ी बन रही है नए कूटनीतिक खेल का मैदान?
ईमानदारी से कहूँ तो हाँ। अब सिर्फ़ मछुआरों और समुद्री तूफ़ानों वाली ये खाड़ी नहीं रही। US, China, India – सबकी नज़र इस इलाके पर है। ports बन रहे हैं, naval bases expand हो रहे हैं…और ये सब चुपचाप। कुछ experts तो इसे 21वीं सदी का नया ‘ग्रेट गेम’ बता रहे हैं। पर सच क्या है? शायद वक़्त ही बताएगा।
इस पूरे खेल में भारत का क्या रोल है?
अब यहाँ हमारी सरकार भी बैठी नहीं है। अंडमान-निकोबार को मज़बूत करने की कोशिशें चल रही हैं – वो भी तेज़ी से। Bangladesh के साथ relations सुधारने की बात हो या फिर QUAD जैसे alliances के ज़रिए regional balance बनाए रखने की कोशिश…हम पीछे नहीं हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये काफ़ी है?
रखाइन विवाद: क्या ये पूरे region को अस्थिर कर सकता है?
देखा जाए तो हालात पहले से ही नाज़ुक हैं। Myanmar का internal conflict, Rohingya crisis…अब इसमें अगर major powers अपनी military presence बढ़ाएँगी, तो स्थिति और भी ख़राब हो सकती है। Indo-Pacific region में instability? बिल्कुल possible है। एक तरफ़ तो economic opportunities हैं, दूसरी तरफ़ tensions। कुल मिलाकर…जटिल स्थिति है।
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com