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“जब रावण ने लक्ष्मण रेखा पार की तो लंका जल गई… ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में क्या बोले रिजिजू?”

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस: “रावण ने लक्ष्मण रेखा पार की तो लंका जल गई”

आज संसद में जो हुआ, वो किसी रोमांचक राजनीतिक ड्रामे से कम नहीं था। मानसून सत्र 2025 का यह दिन शायद इतिहास में दर्ज हो जाए – जब पहलगाम हमले और भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर पर बहस इतनी गरमाई कि सदन का तापमान लगभग उबाल पर पहुँच गया। और फिर? किरण रिजिजू साहब ने तो बैठे-बिठाए रामायण का ज़िक्र छेड़ दिया! उनका यह वाक्य – “जब रावण ने लक्ष्मण रेखा पार की…” – आज पूरे देश की चर्चा बन गया है। सच कहूँ तो, इस एक बयान ने पूरे माहौल को ही बदल दिया।

पर पहले थोड़ा पीछे चलते हैं। याद है न वो 15 जुलाई 2025 का वो भीषण हमला? पहलगाम में CRPF के जवानों पर हुए उस आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। 5 बहादुर जवान शहीद… और फिर? भारतीय सेना ने जो जवाबी कार्रवाई की, वो वाकई काबिले-तारीफ है। सिर्फ 48 घंटे! इतने कम समय में POK में घुसकर 3 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त कर देना कोई मामूली बात नहीं। लेकिन यहाँ से ही राजनीति शुरू हो गई। विपक्ष का कहना है कि सरकार सेना की बहादुरी को अपनी जीत बता रही है। सच्चाई क्या है? यही तो बहस का मुद्दा है।

अब आज की ताज़ा खबर ये है कि संसद में इस मुद्दे पर 16 घंटे तक बहस होगी। कांग्रेस ने तो जैसे पूरी ताकत झोंक दी है – तीन-लाइन व्हिप तक जारी कर दिया! वहीं दूसरी तरफ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी ने ऑपरेशन को देशहित में बताया। पर सवाल ये है कि क्या ये सिर्फ सुरक्षा का मुद्दा है या फिर राजनीति का नया खेल?

सोशल मीडिया पर तो माजरा और भी दिलचस्प है। #SindoorStrike ट्रेंड कर रहा है, और ज्यादातर युवा सेना के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी जी का तो सीधा सा सवाल है – “सेना की बहादुरी का श्रेय लेने की कोशिश बंद करो।” हालाँकि, रिजिजू जी अपने बयान पर अड़े हुए हैं – उनका कहना है कि सीमा पार करने वालों का हश्र रावण जैसा ही होगा। थोड़ा कड़ा लगता है, लेकिन क्या ये सच नहीं?

अब आगे क्या? देखिए, राजनीतिक विश्लेषक तो यही कह रहे हैं कि ये विवाद और बढ़ेगा। विपक्ष सफेद पत्र की माँग कर रहा है, पाकिस्तान UN में शिकायत कर चुका है, और खबरें ये भी हैं कि सेना सीमा पर और सख्त होने वाली है। एक तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरी तरफ राजनीति – ये टकराव किस मोड़ पर जाएगा, ये तो वक्त ही बताएगा।

एक बात तो तय है – आज का दिन संसद के इतिहास में याद किया जाएगा। सेना की बहादुरी पर गर्व होना चाहिए या नहीं? ये सवाल ही गलत है। असली सवाल ये है कि क्या हम अपने जवानों के बलिदान को राजनीति का मोहरा बनने देंगे? सोचने वाली बात है… सच्चाई ये है कि देश की सुरक्षा और राजनीति के बीच की ये लकीर कभी-कभी धुंधली हो जाती है। और जब ऐसा होता है, तो असली हार तो देश की ही होती है।

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रिजिजू का वो बयान, जिसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को रामायण के लंका दहन से जोड़ा, संसद में आग लगाने जैसा था। सच कहूं तो, मैं पहले तो यही सोच रहा था – क्या वाकई ये तुलना सही है? लेकिन फिर गौर किया तो लगा, हमारे पुराणों की कहानियां आज भी कितनी ज़िंदा हैं।

असल में बात ये है कि ये घटना सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं है। ये हमें दिखाती है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ें कितनी गहरी हैं। ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा तो हो ही रही थी, लेकिन इस तरह रामायण से जोड़कर देखने से बात और साफ हो गई। मजे की बात ये कि इसने दोनों ही विषयों को नई रोशनी में दिखाया।

एक तरफ तो ये मामला सेना के ऑपरेशन को लेकर जागरूकता बढ़ाता है, वहीं दूसरी तरफ हमारे पौराणिक प्रसंगों की प्रासंगिकता को भी उजागर करता है। क्या आपने कभी सोचा था कि आज के डिजिटल युग में भी हमारे पुराण इतने ज़िंदा हो सकते हैं? मैं तो अब यही कहूंगा – जबरदस्त कनेक्शन है यार!

Operation Sindoor और लक्ष्मण रेखा पर संसद की बहस – जानिए पूरा मामला

1. Operation Sindoor आखिर है क्या? और लक्ष्मण रेखा से इसका क्या लेना-देना?

देखिए, Operation Sindoor भारतीय सेना का कोई सामान्य ऑपरेशन नहीं था। असल में, ये एक स्पेशल मिशन था जिसमें हमारे जवानों ने रावण की तरह घुसपैठ करने वालों को सीमा पार करने से रोका। अब लक्ष्मण रेखा वाली बात… ये तो आप सभी को पता ही है न? वो रेखा जिसे पार करते ही रावण की खैर नहीं रही थी। ठीक वैसे ही, आज के समय में ये हमारी सीमा सुरक्षा का प्रतीक बन चुकी है। कोई हिम्मत करे तो जवाब मिलना तय है!

2. संसद में किरण रिजिजू ने क्या कहा? जानिए उनके बयान का असली मतलब

ईमानदारी से कहूं तो रिजिजू का बयान काफी दमदार था। उन्होंने सीधे-सीधे कहा – “जैसे रावण ने लक्ष्मण रेखा पार की थी, वैसे ही अगर कोई हमारी सीमा को छूने की कोशिश करेगा…” बाकी का आप समझ ही गए होंगे! उन्होंने Operation Sindoor को लेकर भी काफी गर्व से बात की। सच कहूं तो उनके शब्दों में एक तरह का दृढ़ संकल्प साफ झलक रहा था।

3. लक्ष्मण रेखा का आज के समय में क्या महत्व है? समझिए इसका असली मतलब

असल में बात ये है कि लक्ष्मण रेखा सिर्फ रामायण की कहानी नहीं रह गई है। देखा जाए तो आज ये हमारी सीमाओं के लिए एक चेतावनी की तरह है। एक तरफ तो ये हमारी सुरक्षा का प्रतीक है, वहीं दूसरी तरफ ये दुश्मनों के लिए एक स्पष्ट संदेश भी है। क्या संदेश? वही जो रावण को मिला था! सीमा पार करने वालों के लिए ये रेखा आज भी उतनी ही खतरनाक है जितनी त्रेतायुग में थी।

4. क्या Operation Sindoor और रामायण की कहानी में कोई सीधा संबंध है?

नहीं यार, बिल्कुल नहीं! यहां समझने वाली बात ये है कि ये सिर्फ एक प्रतीकात्मक तुलना है। Operation Sindoor तो एक रियल-टाइम मिलिट्री ऑपरेशन था – बंदूकें, जवान, स्ट्रैटेजी वाला। वहीं लक्ष्मण रेखा वाला मामला तो पौराणिक है। लेकिन फिर भी… दोनों में एक चीज कॉमन है – सीमा की अहमियत और उसे पार करने के नतीजे। सीधे शब्दों में कहें तो – रावण की गलती से सीख लो वाली बात!

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