निमिषा प्रिया की ज़िंदगी बचाने की आखिरी लड़ाई! आज SC में होगी वो सुनवाई जिस पर सबकी नज़र
आज का दिन केरल की नर्स निमिषा प्रिया के लिए जीवन-मौत का सवाल बन गया है। सच कहूं तो, ये केस पिछले कुछ सालों से मेरी नींद उड़ाए हुए है। यमन की एक अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई है – वो भी एक ऐसे मामले में जहां पूरा देश उनकी निर्दोषिता पर यकीन करता है। 16 जुलाई 2025… ये तारीख अभी से उनके परिवार के लिए एक डरावना सपना बन चुकी है। लेकिन आज Supreme Court में होने वाली सुनवाई शायद इस सजा को टालने का आखिरी मौका हो सकता है।
कहानी शुरू होती है 2017 से, जब निमिषा यमन में नर्सिंग करते हुए अपना छोटा-मोटा business शुरू करने की कोशिश कर रही थीं। पर ये सपना कब एक बुरे सपने में बदल गया, शायद उन्हें खुद भी पता नहीं चला। उनके business partner की हत्या के बाद जो हुआ, वो तो जैसे किसी बॉलीवुड थ्रिलर से भी ज्यादा डरावना है। 2020 में यमन की अदालत ने फांसी का फैसला सुना दिया, और तब से भारत सरकार की तरफ से चल रही कोशिशें अब तक क्यों नाकाम रहीं? ये सवाल मेरे जैसे लाखों लोगों को परेशान कर रहा है।
आज की सुनवाई… देखिए, मैं तो यही कहूंगा कि ये केस अब सिर्फ एक नर्स की ज़िंदगी का मामला नहीं रहा। ये तो भारत की पूरी न्याय व्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय कानूनों की परीक्षा बन चुका है। केरल सरकार से लेकर केंद्र तक, सबने clemency plea पर जोर दिया है। निमिषा के परिवार का वो बयान – “हमें भारत सरकार और न्यायपालिका पर भरोसा है” – सुनकर तो दिल ही दहल जाता है। क्योंकि असल सवाल ये है कि क्या हमारी व्यवस्था उनके इस भरोसे को कायम रख पाएगी?
सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, इस केस ने जो आक्रोश पैदा किया है, वो दिखाता है कि जनता की नज़र में निमिषा निर्दोष हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का तो यहां तक कहना है कि यमन की कानूनी प्रक्रिया में इतनी खामियां हैं कि अगर ये फैसला कायम रहा, तो ये अंतरराष्ट्रीय न्याय व्यवस्था पर एक काला धब्बा होगा।
आज का दिन… हालांकि मैं ये नहीं कहूंगा कि आज ही सब कुछ तय हो जाएगा। लेकिन इतना ज़रूर है कि अगर Supreme Court निमिषा के पक्ष में कोई राहत देता है, तो भारत सरकार के पास यमन पर दबाव बनाने का एक मजबूत हथियार मिल जाएगा। वरना… वरना तो सिर्फ यमन के राष्ट्रपति से सीधी clemency की गुहार ही एकमात्र रास्ता बचेगा। और उसके बाद? राजनयिक रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा? ये सवाल तो और भी बड़ा है।
अंत में बस इतना – निमिषा प्रिया का मामला अब सिर्फ एक केस नहीं रहा। ये तो हमारी व्यवस्था, हमारी कूटनीति और हमारे मानवाधिकारों के मापदंडों की परीक्षा बन चुका है। आज का फैसला न सिर्फ एक ज़िंदगी, बल्कि इन सभी सवालों की दिशा तय करेगा। और हां, एक बात और – क्या हम वाकई ऐसी दुनिया बना पाए हैं जहां न्याय की उम्मीद करना बेमानी न हो?
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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com