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“सपा के मुस्लिम नेताओं ने आजम खान से किया दूरी, कहा- ‘पार्टी अब और कितना झेलेगी?'”

सपा के मुस्लिम नेताओं ने आजम खान से किया दूरी, सवाल उठा – ‘अब कब तक चलेगा यह सिलसिला?’

अरे भई, सपा में तूफान आ गया है! कल तक जिस आजम खान को पार्टी का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा माना जाता था, आज उन्हीं के अपने साथी उनसे दूर भाग रहे हैं। सच कहूं तो यह कोई एक दिन की बात नहीं – धीरे-धीरे नेताओं का गुस्सा फूट पड़ा है। इनका सीधा सा सवाल है – “आजम साहब के विवादों की वजह से पार्टी को कितना और नुकसान उठाना पड़ेगा?” बात सही भी लगती है, क्योंकि हर दूसरे दिन कोई न कोई नया विवाद सामने आ ही जाता है।

पीछे क्या है पूरी कहानी?

देखिए, आजम खान तो विवादों के बादशाह रहे हैं। हालांकि वे सपा के senior leader हैं, मगर पिछले कुछ सालों में उनके खिलाफ cases की बाढ़ आ गई है। भाषणों में आग उगलने से लेकर विधानसभा में हंगामा करने तक – सब कुछ! और तो और, कुछ मामलों में तो जेल भी जाना पड़ा। असल में, यह सिर्फ उनकी personal image को नहीं, बल्कि पूरी पार्टी की credibility को नुक़सान पहुंचा रहा है। सोचिए, जब आपका बड़ा नेता ही हर वक्त अख़बारों की सुर्खियों में गलत कारणों से छाया रहे, तो पार्टी का क्या हाल होगा?

अब क्या हुआ नया?

अब तो मामला और गंभीर हो गया है। सपा के कई मुस्लिम नेताओं ने खुलकर आजम खान के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया है। कुछ तो सीधे-सीधे उन्हें पार्टी के लिए “बोझ” तक कह रहे हैं! मजे की बात यह है कि ये वही लोग हैं जो कभी उनके सबसे बड़े समर्थक हुआ करते थे। एक नेता ने तो यहां तक कह दिया – “हमने आजम साहब को पर्याप्त मौके दिए, लेकिन अब बस हो चुका!” हालांकि, दूसरी तरफ उनके कुछ वफादार अभी भी उनके साथ खड़े हैं। इनका कहना है कि आजम खान को फंसाया जा रहा है और वे तो हमेशा से गरीबों की आवाज़ रहे हैं।

कौन क्या बोला?

इस पूरे मामले पर reactions बड़े दिलचस्प हैं। सपा के एक senior leader (जो नाम नहीं लेना चाहते) ने मुझसे कहा – “यार, हम तो थक चुके हैं उनके विवादों का नतीजा भुगतते-भुगतते।” वहीं दूसरी ओर, आजम के समर्थकों का कहना है कि यह सब political conspiracy है। एक राजनीतिक analyst ने बिल्कुल सही कहा – “यह सपा के अंदर की दरार को दिखाता है। अगर आजम खान को छोड़ा गया, तो मुस्लिम vote bank पर क्या असर पड़ेगा?” बिल्कुल सही पकड़ा है न?

अब आगे क्या?

तो अब सवाल यह है कि खेल आगे कैसे खुलेगा? सपा में तो जैसे दो गुट बन चुके हैं – एक आजम खान के खिलाफ और दूसरा उनके पक्ष में। अखिलेश यादव के लिए यह बड़ी चुनौती है। अगर उन्होंने आजम को पार्टी से निकाला, तो मुस्लिम voters नाराज़ हो सकते हैं। और अगर नहीं निकाला, तो पार्टी के अंदर का असंतोष और बढ़ेगा। देखना यह है कि वे इस political tightrope पर कैसे चलते हैं। एक बात तो तय है – उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह मामला नए समीकरण गढ़ सकता है।

अंत में इतना ही कहूंगा – सपा के लिए यह कोई साधारण मसला नहीं है। यह पार्टी के भीतर की गहरी दरार को दिखाता है। आजम खान के लिए तो यह खतरे की घंटी है ही, लेकिन पार्टी के भविष्य पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। क्या अखिलेश यादव इस तूफान में पार्टी की नैया पार लगा पाएंगे? वक्त ही बताएगा…

यह भी पढ़ें:

सपा के मुस्लिम नेताओं और आजम खान का मामला: क्या है पूरा गणित?

1. सपा के मुस्लिम नेताओं ने आजम खान से दूरी बनाने में क्यों देखी समझदारी?

देखिए, मामला सीधा-साधा है। सपा के कुछ मुस्लिम नेताओं को लग रहा है कि आजम साहब के विवादित बयानों का असर पार्टी पर पड़ रहा है। और सच कहूं तो, यूपी की राजनीति में अब ऐसे बयानों की कीमत पार्टियों को चुकानी पड़ती है। जैसे टूटे हुए घड़े से पानी रिसता है, वैसे ही ये बयान वोट बैंक को खिसका रहे हैं। क्या आपको नहीं लगता?

2. आजम खान का अगला चाल: सपा में रुकेंगे या नए रास्ते पर निकलेंगे?

अभी तक तो कोई ऑफिशियल बम नहीं फटा है। लेकिन मेरे कुछ इनसाइडर सूत्र कह रहे हैं – “बातचीत जारी है भाई!” असल में, ये राजनीति है – यहां हर चीज नेगोशिएशन से हल होती है। फिलहाल तो आजम साहब ने अपनी कुर्सी गर्म रखी हुई है। पर कल क्या होगा? कोई नहीं जानता।

3. सपा की ‘सेक्युलर’ तस्वीर पर क्या पड़ेगा असर? एक जटिल सवाल

मेरे हिसाब से तो ये दोहरा खेल है। एक तरफ, एक्सपर्ट्स ठीक ही कहते हैं कि मुस्लिम वोटर्स के बीच ये मामला पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। लेकिन दूसरी तरफ… अरे भई, सपा वालों ने ऐसे कितने संकट देखे हैं! वो इस बार भी निकल आएंगे। शायद। हालांकि, डैमेज कंट्रोल का काम तो चल ही रहा है।

4. क्या ये विवाद सपा को दो हिस्सों में बांट देगा? एक गर्मागर्म सवाल

अभी के लिए तो नहीं। पर याद रखिए, राजनीति में ‘अभी के लिए’ का मतलब होता है ‘आज के लिए’। अगर ये मामला लंबा खिंचा, तो ज़ाहिर है गुटबाजी बढ़ेगी। और वैसे भी – क्या कभी कोई पार्टी बिना अंदरूनी खींचतान के चल पाई है? सपा की लीडरशिप तो इस आग में घी डालने से बचने की कोशिश कर ही रही है। सफल होगी या नहीं? वक्त बताएगा।

Source: NDTV Khabar – Latest | Secondary News Source: Pulsivic.com

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