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“सुधांशु त्रिवेदी का जवाब: मुस्लिम विद्वान सरदार पटेल पर क्यों उठा रहे थे सवाल? वायरल वीडियो!”

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सुधांशु त्रिवेदी बनाम मुस्लिम विद्वान: सरदार पटेल पर बहस क्यों गरमा गई?

अरे भई, क्या हाल है! आपने न्‍यूज18 का वो viral डिबेट सेशन देखा? जी हाँ, वही “आर-पार विद अमीश देवगन” वाला, जहाँ मुस्लिम विद्वान अतीक उर्र रहमान और BJP के सुधांशु त्रिवेदी के बीच जो तूफान खड़ा हुआ, वो अब पूरे social media पर छाया हुआ है। सच कहूँ तो, ऐसी बहसें कभी-कभी इतिहास को नए सिरे से समझने का मौका देती हैं… या फिर नए विवाद खड़े कर देती हैं!

क्या हुआ था असल में? अतीक साहब ने क्या उठाया सवाल?

देखिए न, बात यहाँ से शुरू हुई कि अतीक साहब ने दो बड़े दावे किए – पहला तो यह कि “secularism की राह में मुसलमानों ने सबसे ज्यादा कुर्बानियाँ दी हैं”, और दूसरा यह कि “BJP ने सरदार पटेल के विचारों को तोड़-मरोड़कर पेश किया है”। अब यहाँ दिक्कत यह हुई कि उन्होंने पटेल के कुछ बयानों को संदर्भ से अलग करके पेश किया। ठीक वैसे ही जैसे कोई फिल्म का एक सीन काटकर पूरी कहानी बदल दे। पर सच तो यह है कि सरदार पटेल को ‘आयरन मैन’ कहा जाता था न? तो क्या उनके फैसलों पर सवाल उठाना इतना आसान है?

सुधांशु त्रिवेदी का जवाब: “इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं!”

अब BJP के सुधांशु त्रिवेदी कहाँ चुप बैठने वाले थे! उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि यह “इतिहास को मनमाने ढंग से पेश करने की कोशिश” है। और सच भी तो है – क्या सरदार पटेल वाकई मुस्लिम विरोधी थे? त्रिवेदी ने हैदराबाद और जूनागढ़ के विलय का उदाहरण देकर समझाया कि पटेल का मकसद तो बस एक मजबूत भारत बनाना था। पर यहाँ दिक्कत यह है कि जब secularism और nationalism पर बहस होती है, तो लोग भावुक हो ही जाते हैं। है न?

Social Media पर क्या चल रहा है?

अरे भई, Twitter तो मानो मैदान-ए-जंग बन गया! #SudhanshuVsAtiq ट्रेंड कर रहा है, जहाँ एक तरफ BJP supporters त्रिवेदी के तर्कों की तारीफ कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ कुछ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि “पटेल के कुछ फैसलों पर सवाल तो उठाए ही जाने चाहिए”। सच तो यह है कि social media पर हर कोई अपनी-अपनी रोटी सेक रहा है। कभी आपने गौर किया है कि ऐसे विवादों में सच कहीं बीच में ही फंस जाता है?

आगे क्या होगा? 2024 elections का कोई लिंक?

देखा जाए तो यह बहस सिर्फ एक TV डिबेट से कहीं आगे जाने वाली है। कुछ experts कह रहे हैं कि यह “इतिहास को राजनीतिक नजरिए से देखने” की बड़ी लड़ाई का संकेत है। और हाँ, 2024 elections को देखते हुए तो यह मुद्दा और भी दिलचस्प हो जाता है। क्या political parties इसका फायदा उठाएँगी? शायद। पर एक बात तो तय है – historians को अब और स्पष्टता के साथ सामने आना होगा। वरना तो यह बहस और भी गर्म होगी… बिल्कुल चाय की तरह जो धीरे-धीरे उबलने लगती है!

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Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com

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