सुप्रीम कोर्ट के नए नियम: क्या अब बदलेगी छात्रों की तस्वीर?
बात करनी होगी उन 15 नियमों की जो सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पेश किए हैं। वो भी तब, जब श्वेता सिंह जैसे मामलों ने हम सबको झकझोर कर रख दिया। सच कहूं तो, ये सिर्फ नियम नहीं, एक सामाजिक ज़रूरत बन चुके थे। BDS की होनहार छात्रा श्वेता, नोएडा की ज्योति, अहमदाबाद की वो 15 साल की बच्ची – ये सभी academic pressure के उस ज़हरीले चक्रव्यूह का शिकार हुईं जिससे निकलना उनके लिए मुश्किल हो गया।
क्या सच में बढ़ रही है ये समस्या? आंकड़े क्या कहते हैं?
देखिए, ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं। पिछले पांच सालों में student suicides के मामले 40% बढ़े हैं – ये आंकड़ा डराने वाला है। श्वेता का केस तो जैसे पूरे system पर सवालिया निशान लगा देता है। सोचिए, एक लड़की जिसने डॉक्टर बनने का सपना देखा, वो pressure में आकर खुदकुशी कर लेती है। क्या ये हमारी education system की असफलता नहीं? नोएडा की ज्योति तो सिर्फ exam stress से हार गई। और वो अहमदाबाद वाली बच्ची? मार्क्स के डर ने उसकी जान ले ली। सच में, ये सब सुनकर दिल दहल जाता है।
कोर्ट ने क्या कदम उठाए? क्या ये काम करेंगे?
तो अब सुप्रीम कोर्ट ने जो 15 guidelines दिए हैं, वो काफी practical लगते हैं। पर सवाल यह है कि क्या ये सिर्फ कागज़ों तक सीमित रहेंगे? चलिए समझते हैं कुछ अहम बिंदु:
पहली और सबसे ज़रूरी बात – हर कॉलेज-स्कूल में अब counseling sessions compulsory होंगी। एकदम सही फैसला। दूसरा, exam system में सुधार की बात। ये तो वैसे भी ज़रूरी था। और तीसरी बड़ी बात – अब parents को child psychology की basic training मिलेगी। क्योंकि अक्सर माता-पिता समझ ही नहीं पाते कि उनका बच्चा किस दबाव से गुज़र रहा है।
सबसे दिलचस्प बात? एक national emergency helpline जो 24×7 students की मदद करेगी। और हां, social media monitoring का प्रावधान भी है। मतलब अब students की online activities पर भी नज़र रखी जाएगी ताकि उनकी mental health का पता चल सके। थोड़ा controversial लगता है, पर शायद ज़रूरी भी।
क्या कह रहे हैं experts? क्या ये नियम काम कर पाएंगे?
अब सुनिए विशेषज्ञ क्या कहते हैं। डॉ. राजेश कुमार, जो education field के बड़े नाम हैं, उनका कहना है – “ये तो अच्छी शुरुआत है, पर असली मुश्किल तो implementation में आएगी।” बिल्कुल सही बात।
वहीं student leader प्रियंका शर्मा की राय थोड़ी अलग है – “इन नियमों का फायदा तभी होगा जब teachers और parents बच्चों से खुलकर बात करेंगे।” सच्चाई यही है। और psychiatrist डॉ. अमित सिंह तो यहां तक कहते हैं – “हमारे यहां mental health को लेकर awareness ही नहीं है। ये guidelines game changer साबित हो सकते हैं।”
आगे का रास्ता: आसान नहीं, पर नामुमकिन भी नहीं
अब सवाल यह है कि इन नियमों को कैसे लागू किया जाएगा? शायद एक special task force बनेगी जो students की mental health पर नज़र रखेगी। पर मेरी निजी राय? सिर्फ government और institutions ही नहीं, हम सबको मिलकर काम करना होगा।
अगर सब ठीक से होता है, तो future में student suicide के मामले कम हो सकते हैं। पर याद रखिए – ये कोई जादू की छड़ी नहीं जो रातों-रात सब ठीक कर देगी। ये तो सिर्फ एक शुरुआत है। सुप्रीम कोर्ट ने पहला कदम तो उठा दिया, अब बारी हम सबकी है। क्या हम इस मौके को गंवाने वाले हैं? या फिर एक बेहतर कल की शुरुआत करेंगे?
Source: News18 Hindi – Nation | Secondary News Source: Pulsivic.com