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“तीस्ता विवाद से सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक: भारत-बांग्लादेश तनाव और चीन-पाकिस्तान की भूमिका | क्या हैं भारत के विकल्प?”

तीस्ता विवाद से सिलीगुड़ी कॉरिडोर तक: भारत-बांग्लादेश तनाव और चीन-पाकिस्तान की भूमिका | क्या हैं भारत के विकल्प?

देखिए, भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में फिर से वही पुरानी खटास आ गई है। और ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं। असल में, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस के कार्यकाल में कुछ ऐसे फैसले हुए हैं जो भारत के लिए सिरदर्द बन गए हैं। सोचिए – एक तरफ तो चीन और पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की बढ़ती दोस्ती, दूसरी तरफ पूर्वोत्तर भारत को लेकर विवादित बयानबाजी। और तो और, तीस्ता नदी का मामला तो जैसे हमेशा के लिए अटक गया है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर दबाव तो जैसे चेरी ऑन द केक है। ये सब मिलकर भारत की सुरक्षा चिंताओं को कितना बढ़ा रहे हैं, ये तो आप खुद ही समझ सकते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि: 1971 से आज तक

यार, 1971 में जब भारत ने बांग्लादेश को आज़ाद करवाया था, तब लगा था कि ये दोस्ती हमेशा कायम रहेगी। और सच कहूं तो काफी समय तक ऐसा ही चला भी। लेकिन पिछले कुछ सालों में? हालात बदल गए। सबसे बड़ा खतरा कहां से आ रहा है? आपने सही पकड़ा – चीन और पाकिस्तान। चीन तो जैसे बांग्लादेश में पैसा बरसा रहा है – सड़कें, बंदरगाह, infrastructure projects… नाम लो और चीन वहां मौजूद है। और पाकिस्तान? उसका तो सैन्य सहयोग बढ़ना हमारे लिए सीधा खतरा है।

और भूल ही गए तीस्ता नदी के मामले को! ये विवाद तो जैसे कभी खत्म ही नहीं होगा। सिलीगुड़ी कॉरिडोर? अरे भई, वो तो हमारे पूर्वोत्तर की जान है। अगर बांग्लादेश ने वहां पर कोई गलत कदम उठाया तो? सोचकर ही डर लगता है।

हाल की घटनाएँ: क्या हो रहा है असल में?

पिछले कुछ महीनों में तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने खुलकर भारत-विरोधी बयानबाजी शुरू कर दी है। और चीन? वो तो मौके की नज़ाकत समझकर बांग्लादेश को सैन्य और आर्थिक सहायता बढ़ाने में जुट गया है। सच कहूं तो ये हमारे लिए बिल्कुल अच्छा संकेत नहीं। पाकिस्तान के साथ सुरक्षा समझौते? उस पर तो भारत ने साफ नाराजगी जताई है। और तीस्ता नदी समझौता? वो तो फिर से टल गया। मानो ये विवाद कभी सुलझेगा ही नहीं।

भारत सरकार क्या कह रही है? वो तो हमेशा की तरह कूटनीतिक भाषा में बात कर रही है – “संबंध सुधारने के प्रयास जारी हैं, लेकिन सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं।” पर विपक्ष? उनका तो सीधा सा मतलब है – बांग्लादेश के साथ सख्ती से पेश आना होगा। सुरक्षा विशेषज्ञों की चिंता? सिलीगुड़ी कॉरिडोर को लेकर। उनका कहना है कि संवाद बनाए रखना ही एकमात्र रास्ता है। और बांग्लादेश? वो भी तो कह रहा है कि वो दोस्ती चाहता है, पर अपने हितों से समझौता नहीं करेगा। तो फिर सवाल यह है कि आगे क्या?

भविष्य: भारत के पास क्या विकल्प हैं?

अब सवाल यह है कि भारत आगे क्या करे? पहली बात तो ये कि तीस्ता नदी और सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर वार्ता को प्राथमिकता देनी होगी। पर सिर्फ बातें करने से काम नहीं चलेगा। चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए? हमें बांग्लादेश में अपनी आर्थिक और सामरिक उपस्थिति मजबूत करनी होगी। सिलीगुड़ी कॉरिडोर? उसकी सुरक्षा तो हमारे लिए सबसे ज्यादा जरूरी है। अंत में, सच तो यही है कि हमें एक संतुलित रणनीति की जरूरत है – न ज्यादा सख्त, न ज्यादा नरम। तभी इस पूरे मामले में स्थिरता आ पाएगी। आपको क्या लगता है? क्या भारत सही दिशा में आगे बढ़ रहा है?

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Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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