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ट्रम्प ने घोषणा की: अमेरिका से बाहर बने सेमीकंडक्टर्स पर 100% टैरिफ, घरेलू व्यवसायों को झटका

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ट्रम्प ने फिर छेड़ी बाजी: विदेशी सेमीकंडक्टर्स पर 100% टैरिफ, अमेरिकी बिज़नेस के लिए बड़ा झटका?

भई, डोनाल्ड ट्रम्प ने तो इस बार बिल्कुल बाजी मार ली! पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया जिसने पूरी टेक दुनिया की नींद उड़ा दी। उन्होंने अमेरिका से बाहर बनने वाले सेमीकंडक्टर्स पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। सीधे शब्दों में कहें तो, जो कंपनियाँ अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के वादे से पीछे हट रही थीं, उनके लिए यह एक तमाचे जैसा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह फैसला अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों को महंगा पड़ेगा? शायद हाँ।

पूरी कहानी क्या है?

देखिए, अमेरिका पिछले कुछ सालों से सेमीकंडक्टर की किल्लत से जूझ रहा है – ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहाँ प्याज़ के दामों का संकट होता है! इसकी वजह से car बनाने वालों से लेकर smartphone कंपनियों तक सबकी छाती पर मूंग दल रही थी। कई कंपनियों ने तो अमेरिकी सरकार को यह भरोसा भी दिलाया था कि वे अपने प्लांट वहीं लगाएंगी। लेकिन…हमेशा की तरह एक ‘लेकिन’ तो होता ही है न? कुछ कंपनियों ने चीन और ताइवान जैसी जगहों पर उत्पादन जारी रखा, क्योंकि वहाँ लागत कम आती है। ट्रम्प तो पहले भी अपने “America First” वाले राग अलाप चुके हैं। यह नया कदम उसी गीत का अगला पैरा लगता है।

अब क्या होगा? असली मुद्दा यह है

ट्रम्प ने यह ऐलान एक चुनावी रैली में किया – और इसमें कोई हैरानी की बात नहीं, है न? उनका दावा है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों को बचाने और घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़रूरी है। पर असल मज़ा तो तब आएगा जब Apple, NVIDIA और Qualcomm जैसी बड़ी कंपनियों का बिल आएगा। ये सब तो विदेशी सेमीकंडक्टर्स पर निर्भर हैं। एक्सपर्ट्स की मानें तो इससे न सिर्फ गैजेट्स महंगे होंगे, बल्कि पहले से खराब supply chain और भी बिगड़ सकती है। और अंत में इसका खामियाजा तो आम अमेरिकी को ही भुगतना पड़ेगा। थोड़ा unfair लगता है, है न?

किसने क्या कहा? राजनीति का पुराना खेल

इस घोषणा के बाद तो हर तरफ अलग-अलग रिएक्शन आ रहे हैं। बिज़नेस वाले तो लगभग रोने लगे हैं, इसे “अर्थव्यवस्था के लिए जहर” बता रहे हैं। राजनीति वालों का तो काम ही है बयानबाजी करना – Democrats इसे “चुनावी नाटक” कह रहे हैं, वहीं कुछ Republicans खुशी से झूम रहे हैं। और चीन? वो तो मानो आग बबूला हो गया है! उन्होंने इसे “व्यापार युद्ध को न्यौता” बताते हुए जवाबी कार्रवाई की धमकी दे डाली। सच कहूँ तो, यह सब देखकर लगता है जैसे कोई पुरानी फिल्म का रीरन हो रहा है।

आगे क्या? क्रिस्टल बॉल से देखते हैं

अगर यह टैरिफ वाकई लागू हुआ तो… अरे भई, मामला गर्म हो जाएगा! एक तरफ तो चीन और ताइवान के साथ तनाव बढ़ेगा, जो पहले से ही टेक्नोलॉजी को लेकर छत्तीस का आंकड़ा बना रहे हैं। दूसरी ओर, अमेरिकी कंपनियों पर दबाव बनेगा कि वे घर में ही उत्पादन बढ़ाएँ। पर समस्या यह है कि यह रातों-रात होने वाला काम नहीं। समय और पैसा – दोनों ही ज्यादा लगेंगे। और नवंबर में अमेरिकी चुनाव हैं न? तो यह मुद्दा वहाँ ज़रूर गरमायेगा। क्योंकि यह सिर्फ पैसे की बात नहीं, बल्कि नौकरियों और टेक्नोलॉजी की आज़ादी से जुड़ा मसला है।

एक बात तो तय है – अगले कुछ महीने देखने लायक होंगे। क्या ट्रम्प का यह दांव चलेगा? या फिर यह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए उल्टा पड़ जाएगा? वक्त बताएगा। फिलहाल तो हम पॉपकॉर्न लेकर बैठते हैं!

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ट्रम्प का सेमीकंडक्टर टैरिफ – जानिए पूरा माजरा!

1. ट्रम्प सेमीकंडक्टर्स पर 100% टैरिफ लगा रहे हैं… पर क्यों?

असल में देखा जाए तो ट्रम्प का यह मूव अमेरिकी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को पंख लगाने की कोशिश है। वो चाहते हैं कि देश foreign imports पर कम निर्भर रहे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह plan वाकई काम करेगा? उनका goal तो clear है – घरेलू manufacturing को boost करना। पर इतना भारी-भरकम टैरिफ… थोड़ा जोखिम भरा नहीं लगता?

2. अमेरिकी बिज़नेस पर क्या गुजरेगी?

सीधी बात – imported सेमीकंडक्टर्स अब महंगे होंगे। और इसका सीधा असर? Production cost बढ़ेगा। Short term में तो यह एक बड़ा झटका होगा ही। हालांकि, long term में अगर local manufacturing बढ़ी तो फायदा भी हो सकता है। पर यह ‘अगर’ बहुत बड़ा है!

3. क्या भारतीय टेक कंपनियों की छुट्टी हो जाएगी?

अगर आपकी कंपनी अमेरिका को सेमीकंडक्टर export करती है, तो ज़रा संभल जाइए! इस टैरिफ का असर तो पड़ेगा ही। Products की कीमतें बढ़ेंगी, और फिर global market में compete करना और भी मुश्किल हो जाएगा। एक तरफ तो ‘मेक इन इंडिया’… दूसरी तरफ यह टैरिफ। ईमानदारी से कहूं तो, स्थिति थोड़ी पेचीदा है।

4. क्या अमेरिका में सेमीकंडक्टर की किल्लत हो जाएगी?

शुरुआत में तो हलचल तो होगी ही – supply chain disruptions तो लगभग तय हैं। लेकिन अमेरिका की कोशिश है कि वो अपनी manufacturing capacity बढ़ाए। Time लगेगा, शायद कुछ साल। पर अगर यह plan सफल रहा तो… game changer हो सकता है। वैसे, मेरा personal opinion? बहुत risky move है। देखते हैं क्या होता है!

Source: NY Post – US News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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