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उत्तराखंड-हिमाचल में बारिश का कहर: दो रेन जोन और हिमालय की दीवार से जुड़ी हैरान करने वाली वजह!

उत्तराखंड-हिमाचल में बारिश का कहर: क्या हिमालय अब हमें रोकने का संकेत दे रहा है?

जुलाई 2025… यह महीना उत्तराखंड और हिमाचल के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। सच कहूं तो, ये सिर्फ बारिश नहीं थी – बल्कि मानो आसमान फट पड़ा हो। पहाड़ों से उतरते पानी के सैलाब ने जो किया, उसकी तस्वीरें देखकर लगता है जैसे किसी हॉलीवुड डिजास्टर मूवी के दृश्य हों। गाँवों को निगल लिया, सड़कें गायब हो गईं, और पुल? वो तो बह गए जैसे खिलौने हों। है ना डरावना? मौसम वालों ने इसे ‘असामान्य’ तो कहा, पर असल में ये जलवायु परिवर्तन का सीधा चेहरा था।

अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? देखिए, भारत में बारिश दो मुख्य सिस्टम से आती है – उष्णकटिबंधीय मानसून और सवाना जलवायु। ये जहाँ एक तरफ हमारे खेतों के लिए वरदान हैं, वहीं जरा सा संतुलन बिगड़ा नहीं कि… बस! और हिमालय में तो मामला और भी नाजुक है। ऊंचाई, पहाड़ों का ढलान, ग्लेशियर – सब मिलकर एक ऐसा जटिल समीकरण बनाते हैं जिसे समझ पाना मुश्किल है। पिछले 10 सालों में जो बाढ़ और भूस्खलन बढ़े हैं, वो साफ दिखाता है कि प्रकृति का गुस्सा बढ़ रहा है।

इस बार तो हालात ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए! कुल्लू-मनाली में 48 घंटे में 400mm बारिश? ये कोई मजाक नहीं है भाई। चमोली और रुद्रप्रयाग के हालात तो और भी भयानक थे – पूरे के पूरे गाँव दुनिया से कट गए। NDRF और सेना की टीमें जान की बाजी लगा रही हैं, पर पहाड़ों के दुर्गम इलाकों तक पहुँचना? असंभव सा लगता है।

स्थानीय लोगों की बात करें तो… एक बुजुर्ग ग्रामीण ने मुझसे कहा – “बेटा, हमारे बाप-दादाओं ने भी ऐसा नहीं देखा।” और सच में, ये सिर्फ उनकी बात नहीं है। मौसम वैज्ञानिक भी चौंके हुए हैं। उनका कहना है कि ये सब ग्लेशियर पिघलने और मौसम पैटर्न बदलने का नतीजा है। सरकार relief operations में जुटी है, पर क्या ये काफी है? शायद नहीं।

आगे क्या? विशेषज्ञों की चेतावनी साफ है – ऐसी extreme weather events अब और बढ़ेंगी। बस! कोई दो राय नहीं। हमें अभी से flood management सिस्टम मजबूत करने होंगे, early warning बेहतर करना होगा। पर सबसे जरूरी? Sustainable development। वरना… अगली बार नुकसान और भी भयानक होगा।

सच तो ये है कि ये कोई सामान्य प्राकृतिक आपदा नहीं थी। ये प्रकृति का एक स्पष्ट संदेश था – “अब बस!” हमें relief के साथ-साथ policy level पर गंभीर कदम उठाने होंगे। वरना… अगली बार की तस्वीरें और भी डरावनी होंगी। क्या हम समझेंगे? यही सवाल है।

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उत्तराखंड और हिमाचल में इतनी तेज बारिश का राज क्या है?

देखिए, असल में यहां दो मॉनसून जोन एक साथ एक्टिव हो गए हैं। साथ ही, हिमालय की ये ऊंची दीवारें… जैसे प्राकृतिक बैरियर का काम कर रही हैं। मॉनसूनी हवाएं जब इनसे टकराती हैं तो पानी की बौछार छोड़ देती हैं। और हां, यही वजह है कि अचानक flood और landslides जैसी स्थिति पैदा हो गई। कुछ जगहों तो हालात बिल्कुल डरावने हैं, सच कहूं तो!

क्या यह सब climate change का नतीजा है? सच जानना चाहते हैं?

ईमानदारी से कहूं तो हां। Experts लगातार चेतावनी दे रहे हैं ना? पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड-हिमाचल में बारिश का पैटर्न बदल गया है। पहले जहां धीरे-धीरे बारिश होती थी, अब एक साथ कई दिनों का पानी एक ही दिन में बरस जाता है। Global warming का असर है भाई… ये सिर्फ हमारी मुसीबत नहीं, पूरी दुनिया की समस्या बन चुका है।

इस आफत का local economy पर क्या असर पड़ेगा?

अरे भई, सीधी बात करें तो tourism तो बुरी तरह चौपट हो गया है। जून-जुलाई में यहां हजारों tourists आते थे, अब सब cancel। Agriculture? उसकी तो बात ही मत कीजिए… खेत बह गए, फसलें डूब गईं। और सड़कें? पूछिए मत! Bridges टूटने से transportation पूरी तरह ठप है। छोटे-मोटे local businesses वाले तो रो रहे हैं… उनका सीजन ही खराब हो गया।

तो फिर आगे ऐसी मुसीबतों से कैसे निपटें?

सुनिए, एक तरफ तो हमें better disaster management systems चाहिए – early warnings, quick response वगैरह। लेकिन सिर्फ यही काफी नहीं। Long term में sustainable development पर ध्यान देना होगा। Deforestation रोकनी होगी, नहीं तो ये landslides और भी बढ़ेंगे। और हां, eco-friendly policies… वो तो बनानी ही पड़ेंगी। वरना ये ‘अन्नदाता’ पहाड़ हमें सबक सिखा देंगे, समझे?

Source: Aaj Tak – Home | Secondary News Source: Pulsivic.com

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