7 मासूमों की दर्दनाक मौत: सिस्टम की लापरवाही या फिर…?
सुबह की वो आवाज़ें अचानक चीखों में बदल गईं। राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की इमारत ढही, और उसके नीचे दब गए क्लासरूम में बैठे मासूम। 7 बच्चे… सिर्फ 7 नहीं, 7 पूरी दुनियाएं खत्म हो गईं। और कितने घायल? असल में, ये कोई एक दिन की कहानी नहीं है। ये तो वो दर्द है जो सालों से दीवारों पर पसीने की तरह दिख रहा था।
मजे की बात ये है कि ये एक्सीडेंट नहीं, एक तरह से मर्डर था। स्कूल की हालत देखकर लगता था जैसे कोई भूत बंगला हो – दरारें, टूटी दीवारें, लेकिन फिर भी बच्चों को अंदर ठूंस दिया जाता था। टीचर्स ने कितनी बार शिकायत की? पूछिए मत। मॉनसून में तो दीवारों से पानी टपकता था, लेकिन repair का काम? वो तो कागजों में ही होता रहा। और सबसे हैरानी वाली बात? एजुकेशन डिपार्टमेंट की खुद की रिपोर्ट में इस बिल्डिंग को “अनसेफ” बताया गया था! फिर भी…?
अब जरा उन परिवारों के बारे में सोचिए जिनके बच्चे स्कूल गए और लाश बनकर लौटे। 5 लड़कियां, 2 लड़के… 8 से 12 साल की उम्र। कल्पना कीजिए, आपका बच्चा सुबह टिफिन लेकर निकला और फिर…? रेस्क्यू ऑपरेशन अभी चल रहा है, मगर क्या ये जिंदगियां वापस आ सकती हैं? सरकार ने 5-5 लाख के मुआवजे की घोषणा कर दी है। क्या ये पैसा उन मांओं के आंसू पोंछ देगा?
राजनीति शुरू हो गई है ना? विपक्ष education मिनिस्टर का इस्तीफा मांग रहा है। जिला कलेक्टर ने “दुर्भाग्यपूर्ण” घटना बताकर एक्शन का वादा किया है। लेकिन असल सवाल ये है – क्या ये सब कागजी खानापूर्ति से आगे जाएगा? हम सब जानते हैं ना, कैसे ये केस भी फाइलों में दब जाएगा।
तो अब क्या? जांच कमेटी बनेगी, रिपोर्ट आएगी, कुछ ठेकेदार और अफसर सस्पेंड होंगे। स्टेट में सभी स्कूल बिल्डिंग्स का ऑडिट होगा। लेकिन क्या ये सब दिखावा नहीं? सिस्टम को बदलने की जरूरत है, वरना कल फिर किसी और झालावाड़ में…
सच कहूं तो, ये कोई अकेली घटना नहीं है। ये तो हमारी सोच का नतीजा है – जहां बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा अहमियत फाइलों में चापलूसी करने को दी जाती है। क्या हम सच में बदलना चाहते हैं? या फिर अगली खबर का इंतज़ार कर रहे हैं?
यह भी पढ़ें:
- Road Accident News
- Air India Accident Preventable Victims Families React
- Putin Russian Deaths Odisha Kgb India Game
Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com