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“क्या भारत अमेरिका से खरीद रहा है कबाड़? अपाचे ‘उड़ते टैंक’ से किनारा करने की वजह जानिए!”

क्या भारत अमेरिका से खरीद रहा है कबाड़? अपाचे ‘उड़ते टैंक’ से किनारा करने की असली वजह!

देखिए न, भारत सरकार के रक्षा सौदों पर बहस तो नई बात नहीं है। लेकिन इस बार जो मामला सामने आया है, वो कुछ ज्यादा ही दिलचस्प है। अमेरिका से खरीदे गए अपाचे AH-64E हेलीकॉप्टरों को लेकर क्या सच में कुछ गड़बड़ है? या फिर ये सिर्फ राजनीति का एक और खेल? असल में, रक्षा विशेषज्ञों से लेकर विपक्षी नेताओं तक सभी की भौंहें तन गई हैं। और सवाल सिर्फ पैसों का नहीं है – बात ये भी है कि क्या ये हेलीकॉप्टर हमारी जरूरतों के हिसाब से हैं भी या नहीं? स्थिति तब और पेचीदा हो गई जब दक्षिण कोरिया ने इन्हीं हेलीकॉप्टरों को लेने से मना कर दिया। अब आप ही बताइए, क्या हम कुछ ज्यादा ही भाव दे रहे हैं?

11,500 करोड़ का सवाल: क्या ये सौदा सच में इतना ‘गोल्डन’ है?

कहानी शुरू होती है 2015 से, जब हमने Boeing से 22 अपाचे हेलीकॉप्टर खरीदने का फैसला किया। कीमत? लगभग 11,500 करोड़ रुपये! यानी एक हेलीकॉप्टर पर लगभग 500 करोड़। भईया, इतने में तो छोटा-मोटा एयरपोर्ट ही बन जाए! इन्हें “उड़ते टैंक” कहा जाता है, और हमारी सेना ने इन्हें अपनी हवाई ताकत बढ़ाने के लिए चुना था। लेकिन अब दक्षिण कोरिया ने इन्हें “अप्रचलित” और “बेहद महंगा” बताकर ठुकरा दिया है। तो सवाल यह है कि क्या हम अमेरिका का पुराना माल खरीद रहे हैं? या फिर हमारी जरूरतें अलग हैं?

अमेरिकी नीति: क्या भारत के साथ हो रहा है भेदभाव?

यहाँ सबसे बड़ा मुद्दा है कीमत का। सुनकर हैरानी होगी कि अमेरिका FMF (Foreign Military Financing) के तहत फिलीपींस और इंडोनेशिया जैसे देशों को सब्सिडी दे रहा है। लेकिन हमारे देश ने पूरी रकम खुद चुकाई है। अब सोचिए, अगर हमें भी वही डील मिलती तो कितना बचता? कुछ रिपोर्ट्स तो यहाँ तक कहती हैं कि हमने दूसरे देशों से ज्यादा कीमत अदा की है। ये कैसा न्याय है भई?

सरकार बनाम विपक्ष: कौन सही, कौन गलत?

रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये सौदा पूरी तरह पारदर्शी है और अपाचे दुनिया के सबसे एडवांस्ड हेलीकॉप्टरों में से एक हैं। वहीं विपक्ष, खासकर Rahul Gandhi, इसे “अनुचित” बता रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसे सौदों से देश का खजाना खाली हो रहा है। सच क्या है? शायद समय ही बताएगा।

स्वदेशी बनाम विदेशी: क्या LCH एक विकल्प हो सकता था?

यहाँ एक और मजेदार पहलू आता है – हमारा खुद का Light Combat Helicopter (LCH) प्रचंड। कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि हमें अपाचे जैसे विदेशी सिस्टम्स पर निर्भरता कम करनी चाहिए थी। लेकिन दूसरी तरफ, ये भी सच है कि LCH अभी अपाचे जितना काबिल नहीं है। तो फिर क्या करते? इंतजार करते रहते?

आगे क्या? संसद से लेकर जांच तक का सफर

अब ये मामला संसद में गरमा-गरम बहस का विषय बनने वाला है। विपक्ष जांच की मांग कर रहा है, जबकि सरकार अपने फैसले पर अडिग है। ईमानदारी से कहूँ तो, ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिरकार सच क्या निकलकर आता है। क्या ये सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा है? या फिर सच में कुछ गड़बड़झाला है? वक्त बताएगा।

एक बात तो तय है – जब भी भारत बड़ा रक्षा सौदा करता है, बहस तो होनी ही है। पर क्या ये बहस देश के हित में है? या फिर सिर्फ राजनीति का एक नया अध्याय? आप क्या सोचते हैं?

यह भी पढ़ें:

क्या भारत अमेरिका से सच में ‘कबाड़’ खरीद रहा है? – जानिए पूरी कहानी

अक्सर सुनने में आता है कि भारत अमेरिका से पुराना डिफेंस equipment खरीद रहा है। पर सच क्या है? आइए इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं।

1. अपाचे हेलीकॉप्टर्स से भारत ने मना क्यों कर दिया?

देखिए, अपाचे को ‘उड़ते टैंक’ कहना गलत नहीं होगा। लेकिन असल मुद्दा यह है कि इनकी कीमत और maintenance cost… बस, सोचकर ही पसीना आ जाता है! ईमानदारी से कहूं तो, क्या हम इतना खर्च कर सकते हैं जब हमारे पास स्वदेशी विकल्प मौजूद हैं? सरकार ने सही फैसला लिया है।

2. अमेरिकी डिफेंस equipment – सच में ‘कबाड़’ या फिर कुछ और?

अरे भाई, ‘कबाड़’ तो बिल्कुल नहीं! ये बात अलग है कि कभी-कभी price-to-performance ratio पर सवाल उठते हैं। अमेरिकी टेक्नोलॉजी दुनिया की सबसे advanced है, यह तो मानना पड़ेगा। पर क्या हर बार महंगा मतलब बेहतर? यही तो सवाल है!

3. अपाचे का विकल्प? हमारे पास तो LCH और Rudra हैं न!

एकदम सही पकड़ा! HAL के ये हेलीकॉप्टर्स सिर्फ cost-effective ही नहीं, बल्कि हमारी अपनी तकनीक पर आधारित हैं। थोड़ा सा patriotic feeling भी आ जाता है न? हालांकि, ये भी सच है कि अपाचे जैसी maturity अभी हमें achieve करनी है। पर कोई बात नहीं, समय लगेगा ही न!

4. क्या इससे भारत-अमेरिका रिश्तों पर असर पड़ेगा?

अच्छा सवाल! पर चिंता की कोई बात नहीं। दोनों देशों का डिफेंस partnership तो इतना strong है कि एक-दो deals से कुछ नहीं बिगड़ने वाला। ये तो बस business as usual है। असल में, अभी भी कई और projects पर collaboration चल रहा है। तो relax!

फाइनल वर्ड? हर फैसला अपने फायदे-नुकसान के साथ आता है। पर इस बार तो लगता है हमने सही चुनाव किया है। क्या आपको नहीं लगता?

Source: Navbharat Times – Default | Secondary News Source: Pulsivic.com

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