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“एयर इंडिया क्रैश: पीड़ित के पिता AAIB की प्रारंभिक रिपोर्ट से ‘संतुष्ट नहीं’, मांगी गहरी जांच”

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एयर इंडिया क्रैश: जब एक पिता का दर्द ‘प्रारंभिक रिपोर्ट’ से बड़ा हो जाता है

कल्पना कीजिए – आपका बेटा, जिसे आपने इतने सपने देखकर बड़ा किया, एक फ्लाइट में बैठा और फिर कभी वापस नहीं आया। संकेत गोस्वामी के पिता आज भी उसी दर्द से गुजर रहे हैं। और अब जब AAIB (एयरक्राफ्ट एक्सिडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो) ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की है, तो उनका कहना है – “यह काफी नहीं है।” सच कहूँ तो, किसी भी माँ-बाप के लिए यह कभी काफी नहीं होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई में इस रिपोर्ट में कुछ कमी है? या फिर यह दर्द ही है जो हर जवाब को अधूरा बना देता है?

वो काला दिन जब AI171 ने खोए इतने सपने

तारीख थी [तारीख], एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 [स्थान] के पास क्रैश हुई। संकेत जैसे [संख्या] यात्रियों की जान चली गई। बात सिर्फ आँकड़ों की नहीं है – हर नंबर के पीछे कोई संकेत था, कोई सपना था। AAIB ने तो अपनी जिम्मेदारी निभाई और जल्दी प्रारंभिक रिपोर्ट दे दी। पर क्या यह पर्याप्त है? खासकर तब, जब रिपोर्ट में मानवीय भूल या तकनीकी खामी जैसे शब्दों के पीछे इतनी जिंदगियाँ दफन हो गई हों?

“यह रिपोर्ट सिर्फ कागज है, मेरा बेटा था असलियत”

संकेत के पिता का गुस्सा समझ आता है। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा – “यह रिपोर्ट अधूरी है।” और सच कहूँ तो, किसी भी पिता के लिए यह रिपोर्ट कभी पूरी नहीं होगी। उनके सवाल सही हैं – क्या वाकई में सभी पहलुओं की जाँच हुई? क्या कोई लापरवाही छिपाई जा रही है? सरकार चुप है, लेकिन विमानन एक्सपर्ट्स की बात सुनें तो लगता है जाँच में कुछ तकनीकी पॉइंट्स मिस हुए हैं। एक तरफ तो प्रोटोकॉल है, दूसरी तरफ एक बाप का सवाल – “मेरे बेटे को न्याय कब मिलेगा?”

एयर इंडिया का जवाब: सहानुभूति या जिम्मेदारी?

एयर इंडिया का प्रवक्ता बोला – “हम दुख समझते हैं।” लेकिन असल सवाल यह है कि क्या वे जिम्मेदारी भी समझते हैं? कंपनी ने साफ नहीं किया कि वे और जाँच कराएँगे या नहीं। मजे की बात यह है कि इंडस्ट्री के अंदरूनी लोग पहले से ही एयर इंडिया के सेफ्टी सिस्टम पर सवाल उठा रहे हैं। तो फिर सच क्या है? सहानुभूति दिखाना आसान है, लेकिन क्या जवाबदेही तय करना उतना ही आसान होगा?

आगे क्या? सिर्फ इंतज़ार या कोई एक्शन?

अब सरकार के पास दो रास्ते हैं – या तो नई जाँच समिति बनाए, या फिर AAIB की फाइनल रिपोर्ट का इंतज़ार करे जो आने में महीनों लग सकते हैं। पर संकेत के पिता जैसे लोगों के लिए हर दिन एक यातना है। यह केस सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि हम सभी के लिए एक सवाल है – क्या हमारी हवाई सफर वाकई में सुरक्षित है? या फिर हर टेकऑफ़ के साथ हम जुआ खेल रहे हैं?

एक बात तो तय है – जब तक संकेत जैसे लोगों को सच्चा न्याय नहीं मिलता, यह मामला सिर्फ एक रिपोर्ट फाइल में दफन नहीं होगा। सच पूछिए तो, होना भी नहीं चाहिए।

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Source: Hindustan Times – India News | Secondary News Source: Pulsivic.com

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